Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी का पर्व जहां देशभर में धार्मिक आस्था और भक्ति का प्रतीक माना जाता है, वहीं बिलासपुर में यह पर्व पिछले 25 वर्षों से सामाजिक एकता और भाईचारे की मिसाल बन गया है।
Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी का पर्व जहां देशभर में धार्मिक आस्था और भक्ति का प्रतीक माना जाता है, वहीं बिलासपुर में यह पर्व पिछले 25 वर्षों से सामाजिक एकता और भाईचारे की मिसाल बन गया है।
शहर के तीन प्रमुख इलाकों में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर गणेशोत्सव मनाते हैं। इस दौरान पूजा-अर्चना से लेकर आरती और विसर्जन में दोनों समुदाय के लोग शामिल होते हैं। यह दृश्य केवल धार्मिक उत्सव तक सीमित नहीं रहता, बल्कि गंगा-जमुनी तहज़ीब का जीता-जागता प्रतीक बन जाता है। तालापारा क्षेत्र की युवा एकता सर्वधर्म समिति में पिछले 4 वर्षों से हिन्दू और मुस्लिम युवा मिलकर गणेश पूजा करते हैं।
मूर्ति स्थापना, सजावट, प्रतिदिन की आरती, सांस्कृतिक कार्यक्रम और विसर्जन तक की जिम्मेदारी सभी मिलकर निभाते हैं। समिति के सारिक, वसीम खान, आहद खान ने बताया कि समिति का नाम इसी लिए सर्वधर्म रखा गया है। जब पहली बार हमारे साज के युवा ने आरती में हिस्सा लिया तो पूरे क्षेत्र में भावनात्मक लहर दौड़ गई थी। पंडाल की साज सज्जा से लेकर भजन मंडली और आरती में मुस्लिम समाज के सदस्य बराबरी से शामिल होते हैं। परिवार का इसमें सहयोग रहता है। समिति का संदेश साफ है, धर्म का असली सार आपसी प्रेम और भाईचारा है।
मां महामाया गणेश उत्सव समिति की परंपरा 25 साल पहले शुरू हुई थी। यहां भी हिन्दू और मुस्लिम समाज मिलकर गणेशोत्सव मनाते हैं। समिति के समीर मोहम्मद, साहिल खान, शादाब खान ने बताया कि गणपति विसर्जन के दौरान जब जुलूस निकलता है तो दोनों समुदाय के युवा साथ मिलकर नाचते-गाते हैं। मुस्लिम समाज के लोग ढोल-नगाड़ों की थाप पर झूमते हैं और ’’गणपति बप्पा मोरया’’ के जयघोष से माहौल गूंज उठता है। विसर्जन के अंतिम क्षणों तक वे मौजूद रहते हैं और आशीर्वाद की कामना करते हैं। हमारा उद्देश्य सामाजिक सद्भाव का संदेश देना है।
भारतीय नगर चौक के पास स्थित एकता सार्वजनिक गणेश पूजा समिति में हर साल गणेशोत्सव का आयोजन हिन्दू, मुस्लिम, क्रिश्चियन और पंजाबी समाज के लोग मिल-जुलकर करते हैं। समिति के सदस्य अमित, डेंजिल रोड्रिग्स, मोहसिन खान, मनीष चावला ने बताया कि समिति का नाम ही एकता इसलिए रखा गया, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि यह पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक है। पिछले 25 वर्षों से यहां हर धर्म के लोग मिलकर आरती, पूजा और कार्यक्रमों में शामिल होते आ रहे हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी इसमें अपनी भूमिका निभाते हैं।