बिलासपुर

आस्था का महासागर या प्रशासन की नाकामी का खुला प्रमाण? अरपा नदी में बिना सुरक्षा इंतजामों के हो रहा बप्पा का विसर्जन, हादसे का बढ़ा खतरा

Bilaspur News: गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन का दौर शुरू हो गया है। लेकिन इस बार भी प्रशासन की लापरवाही साफ नज़र आ रही है। अरपा नदी में प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए स्थायी अथवा अस्थायी कुंड नहीं बनाए गए हैं।

2 min read
अरपा में मूर्तियां विसर्जित (फोटो सोर्स -Ai)

CG News: बिलासपुर में गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन का दौर शुरू हो गया है। लेकिन इस बार भी प्रशासन की लापरवाही साफ नज़र आ रही है। अरपा नदी में प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए स्थायी अथवा अस्थायी कुंड नहीं बनाए गए हैं। नतीजतन शहर के विभिन्न पंडालों और घरों से लाई गई प्रतिमाएं सीधे अरपा नदी में विसर्जित की जा रही हैं।

प्रतिमाओं का सीधे नदी में विसर्जन न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है बल्कि नदी के जलस्तर और बहाव को देखते हुए लोगों की जान के लिए भी ख़तरा पैदा कर सकता है। शहर के समाजसेवियों और पर्यावरण प्रेमियों ने पहले ही प्रशासन से मांग की है कि वैकल्पिक कुंड तैयार कर विसर्जन की व्यवस्था की जाए लेकिन नियमों को धता बताते हुए निगम प्रशासन ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है।

ये भी पढ़ें

झमाझम बारिश से शहर के कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात, कलेक्टर-महापौर छतरी लेकर निकले जायजा लेने

न गोताखोर और न लाइफ जैकेट

लगातार हो रही बारिश के कारण नदी में तेज़ बहाव है, जिससे हादसों की आशंका और बढ़ गई है। इसके बावजूद विसर्जन स्थलों पर सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम नहीं किए गए हैं। न तो गोताखोर तैनात हैं और न ही लाइफ़ जैकेट या बचाव दल की व्यवस्था की गई है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि हर साल प्रशासन केवल आदेश जारी करने तक सीमित रह जाता है, जबकि ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।

अरपा में आस्था या प्रशासन की लापरवाही का विसर्जन?

हर साल की तरह इस बार भी अरपा नदी फिर आस्था और प्रशासन की बेपरवाही की शिकार हो गई। नियम कहते हैं कि प्रतिमाओं के लिए विसर्जन कुंड बनना चाहिए, लेकिन प्रशासन का नियमों से क्या लेना-देना। कुंड बनवाना उनकी प्राथमिकता में नहीं, आखिर जनता की आस्था को प्रदूषण के साथ डुबाना अब एक परंपरा जो बन चुकी है। गणेश जी भी सोच रहे होंगे ऽमैं तो विघ्नहर्ता हूं, पर यहां तो विघ्नकारक खुद व्यवस्था है।ऽ

नदी में प्लास्टर, रंग और केमिकल बहकर जल को जहर बना रहे हैं और जिमेदार अधिकारी शायद ‘दूधिया रिपोर्ट’ तैयार करने में व्यस्त हैं। नगर निगम और प्रशासन की चुप्पी बताती है कि उनका असली कुंड बेबसी और ढिलाई का है। जागरूकता के नाम पर सिर्फ पोस्टर और भाषण छपते हैं, जबकि लोग खुलेआम मूर्तियां नदी में डुबा रहे हैं। सवाल यह है कि जब नियमों का पालन कराने वाला ही सो जाए तो फिर जनता को दोष देना किस हद तक सही है? नदी रो रही है, मछलियां तड़प रही हैं, पानी काला हो रहा है, लेकिन अफसर शायद अगले त्योहार तक ऽफिर देखेंगेऽ की मुद्रा में हैं। सच यही है कि अरपा में आज मूर्तियां नहीं, प्रशासन की जिमेदारी का भी विसर्जन हो रहा है।

ये भी पढ़ें

13 एकड़ में 100 करोड़ रुपये से बनेगी ‘एजुकेशन सिटी’, एक साथ 4800 स्टूडेंट्स कर सकेंगे कोचिंग, जानें Details

Published on:
05 Sept 2025 11:31 am
Also Read
View All

अगली खबर