रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में कालदां के इस बियावान जंगल को युवा बाघिन आरवीटी-8 ने अपना नया ठिकाना बना लिया है।
गुढ़ानाथावतान. रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में कालदां के इस बियावान जंगल को युवा बाघिन आरवीटी-8 ने अपना नया ठिकाना बना लिया है। बाघिन ने तीन माह से निरंतर इस क्षेत्र में विचरण कर भीमलत तक के जंगलों का जायजा ले लिया है। कुछ दिनों पूर्व भीमलत में रुकने के बाद वापस कालदां के जंगलों में लौटना बाघिन के इस इलाके को टेरेटरी बनाने के रूप में देखा जा रहा है।
इस क्षेत्र में देवझर महादेव से भीमलत महादेव तक के जंगल में दो दर्जन से अधिक प्राकृतिक जलस्रोत व पहाड़ी हैं। इस क्षेत्र में सदियों से बाघों सहित सभी वन्यजीवों की भी उपस्थिति बनी हुई है। हालांकि कालदां क्षेत्र में ट्रेङ्क्षकग रूट नहीं होने से बाघिन आरवीटी-8 की मॉनिटरिंग में जुटे वनकर्मीयों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्र में जुलिफ्लोरा उन्मूलन व नए ग्रासलैंड बनाने का काम भी अब तक शुरू नहीं हो पाया है।
24 घंटे ट्रेकिंग, आवाजाही रोकी
बाघिन के इलाके में आने से जंगल में विभाग ने चौकसी बढ़ा दी है। लोगों की आवाजाही बंद कर दी है। वन विभाग ने कालदां माताजी, देवझर महादेव, दुर्वासा ऋषि महादेव, सिंधिकेश्वर नारायणपुर, पारा का नाला आदि स्थानों पर श्रद्धालुओं के पैदल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही बाघिन की नियमित मॉनिटरिंग के लिए टेरिटोरियल की टीमें गठित कर 24 घंटे ट्रेकिंग की जा रही है।
यहां विभाग की सुस्ती बाघों पर पड़ेगी भारी
टाइगर रिजर्व के कोर प्रथम से जुड़े बूंदी शहर से भीमलत तक के जंगल को टेरिटोरियल के अधीन रखने से यहां की जैव विविधता को बाघों के अनुकूल बनाने के लिए अभी तक कोई ठोस शुरुआत नहीं हुई है। जिससे यहां की जैवविविधता कुप्रबंधन की भेंट चढ़ने लगी है। टाइगर रिजर्व बनने के बाद इस क्षेत्र में भी विकास की उम्मीद थी, लेकिन टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने अभी तक इस जंगल को विकसित करने के लिए कोई प्रभावी कार्य योजना तैयार नहीं की है। यहां पर अवैध रूप से लोगों की आवाजाही जारी है तथा बाघों के लिए किसी प्रकार की तैयारी अभी तक वन विभाग ने नहीं की है।
तीन की और तैयारी
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के कोर-1 में अभी आधा दर्जन बाघ-बाघिन हो चुके है और तीन बाघिन ओर लाने की तैयारी है। वन महकमा केवल कोर-1 को ही बाघों की शरणस्थली मान कर काम करने में जुटा है। कॉरिडोर को विकसित करने या बफर जोन को बाघों के अनुकूल बनाने में वन विभाग गंभीर नहीं है। जिसका खामियाजा आने वाले समय में बूंदी की जनता व यहां के वन्यजीवों को उठाना पड़ेगा। वन्यजीव प्रेमी लंबे समय से कोर के साथ बफर को भी विकसित करने की मांग कर
रहे हैं, लेकिन वन विभाग ने इस मामले में रुचि नहीं दिखाई है।
तो हाड़ौती से मेवाड़-मालवा तक बढ़े बाघों का आवागमन
रणथंभौर टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बढऩे के साथ ही बाघों को मजबूरी में अन्य टाइगर रिजर्व में शिफ्टिंग करने के प्रयास वन विभाग कर रहा है और इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, लेकिन यह स्थाई समाधान के रूप में नहीं देखा जा रहा है। वन्यजीव और बाघ एक्सपर्ट मानते हैं कि रामगढ़ जो बाघों का सदियों से कॉरिडोर रहा है उसे फिर से बहाल करने की आवश्यकता है। बूंदी में कालदां के जंगल उस कॉरिडोर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसे नजर अंदाज किया जा रहा है।
इनका कहना है
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के टेरिटोरियल जंगल में आने वाले कालदां सहित अन्य बफर जोन को भी बाघों के अनुकूल
बनाने के प्रयास कर रहे हैं और जल्द ही इस क्षेत्र में भी ट्रेङ्क्षकग रूट सहित अन्य आवश्यक वानिकी विकास के कार्य करवाने की कोशिश करेंगे।
आलोकनाथ गुप्ता, उपवन संरक्षक एवं उपक्षेत्र निदेशक, (बफर) रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व, बूंदी