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प्रदूषण ऐसे खाली कर रहा है मिडिल क्लास की जेब! अगला नंबर आपका हो सकता है?

प्रदूषण से सांस की गंभीर बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. 2024 में 68,000 से ज्यादा मामले दर्ज हुए. इलाज का खर्च परिवारों पर भारी पड़ रहा है, हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम में प्रदूषण वाली बीमारियां अब 8% तक पहुंच गई हैं.

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Dec 14, 2025
प्रदूषण की वजह से एक आम मिडिल क्लास फैमिली पर भारी वित्तीय दबाव पड़ता है (PC: Canva)

दिल्ली-NCR में वायु प्रदूषण की स्थिति सबसे खराब कैटेगरी में पहुंच चुकी है. दिल्ली के कई इलाकों में आज सुबह AQI का स्तर 500 तक पहुंच गया. इसलिए सरकार ने GRAP-4 को लागू कर दिया है. दिल्ली ही नहीं इससे सटे नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद जैसे इलाकों में भी प्रदूषण का हाल खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है. लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है, आंखों में जलन और खांसी की शिकायतें भी आ रही हैं. सबसे ज्यादा दिक्कत उन्हें हो रही है, जिन्हें अस्थमा, COPD या दिल की बीमारियां हैं. प्रदूषण हर साल कई लोगों की जिंदगियां ले लेता है. State of Global Air 2025 की रिपोर्ट बताती है कि साल 2023 में वायु प्रदूषण की वजह से 20 लाख लोगों की मौत हो गई थी. हर साल लोग वायु प्रदूषण की वजह से कई गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं. मगर प्रदूषण सिर्फ इंसान की सेहत ही नहीं बल्कि वित्तीय सेहत भी खराब होती है.

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प्रदूषण बन सकती है एक वित्तीय आपदा


वायु प्रदूषण कितना गंभीर हो चुका है, ये सरकार खुद भी जानती है. सरकार ने संसद को बताया है कि साल 2024 में दिल्ली के सेंटिनल अस्पतालों में 'एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस' के 68,411 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 10,819 मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ी. इन मामलों की वजह से मेडिकल बिल बढ़ रहे हैं, दवा की दुकानों पर ज्यादा चक्कर लग रहे हैं और परिवारों पर आर्थिक तनाव बढ़ता जा रहा है.

अगर आप तैयार नहीं है, तो वायु प्रदूषण आपके लिए किसी बड़ी वित्तीय आपदा से कम साबित नहीं होगा. ये आपकी जेब पर कैसे भारी पड़ेगा, इसको प्रैक्टिकल अप्रोच से समझना जरूरी है.
प्राइवेट हॉस्पिटल्स में खर्च शहर और अस्पताल की कैटेगरी पर निर्भर करता है. मतलब अगर आप दिल्ली या NCR में रहते हैं, जहां पर अपोलो, फोर्टिस जैसे अस्पताल हैं, तो जाहिर है आपका मेडिकल बिल ज्यादा आएगा. अब चूंकि दिल्ली-NCR में प्रदूषण की वजह से इससे जुड़े मामले ज्यादा आते हैं. इनके इलाज के लिए खास तौर से रेस्पिरेटरी केयर जैसे कि नेबुलाइजेशन, ऑक्सीजन वगैरह शामिल होती हैं.

अब इन पर कितना खर्च आएगा, इसका एक अनुमानित आंकड़ा दिया गया है. जो कि शहर और अस्पताल के हिसाब से बदल सकता है. हमने खर्चों को तीन हिस्सों में बांटा है, एक हल्की बीमारियां जिसमें आपको अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती, दूसरा जिसमें आपको अस्पताल में भर्ती होना पड़े और तीसरा कि अगर ICU में भर्ती होने की नौबत आ जाए तो कितना खर्च आएगा.

हल्की परेशानी, अस्पताल में भर्ती नहीं हुए


प्रदूषण की वजह से आजकल स्वस्थ लोग भी बीमार हो रहे हैं, लोगों को लगातार खांसी, गला चोक होना, आंखों में जलन की शिकायत हो रही है. आप किसी अस्पताल में जाएं तो कुल कितना बिल आएगा, इसका अनुमान ये है.

OPD कंसल्टेशन फीस: इस केस में आपको पल्मोनोलॉजिस्ट के पास जाना होता है. जिसकी फीस 1000-2000 के बीच होती है.
टेस्ट:
आपकी स्थिति को देखते हुए डॉक्टर आपको कई तरह के टेस्ट लिख सकता है. जिसमें PFT, ब्लड टेस्ट शामिल है, जो कि 3,000-5,000 के बीच हो सकते हैं
दवाएं:
हफ्ते की भर की दवा की कीमत कम से कम 1,000 रुपये होगी
डिवाइस:
अगर डॉक्टर आपको नेबुलाइज करने को कहता है, जो कि ज्यादातर केस में होता है, तो दवाओं के साथ इसकी कीमत 1,500-2,000 होगी
TOTAL:
यानी एक विजिट में कम से कम आपका 6,500-10,000 रुपये का बिल बन जाएगा.

ज्यादा परेशानी, अस्पताल में भर्ती हुए


ये तब है जब आप पहली बार डॉक्टर को विजिट करने पहुंचे हैं. अगर स्थिति में सुधार नहीं होता है या फिर किसी मरीज की तबीयत इतनी खराब हो चुकी है कि उसे अस्पताल के ऑब्जर्वेशन में रखना पड़े तो बिल इससे कहीं ज्यादा आ सकता है. मान लीजिए आप 2 दिन तक अस्पताल में भर्ती हुए

रूम चार्ज: 5,000 - 10,000 रुपये प्रति दिन
डॉक्टर की फीस:
1000-2,000 रुपये प्रति विजिट
दवाएं, इंजेक्शन:
2,000 रुपये
ऑक्सीजन थेरेपी+नेबुलाइजेशन:
2,000-3,000 रुपये प्रति दिन
टेस्ट और मॉनिटरिंग: 10,000-20,000 रुपये प्रति दिन
TOTAL: दो दिन तक अस्पताल में रहने का बिल 40,000 - 74,000 रुपये तक आ सकता है. ध्यान रहे कि ये औसत और अनुमानित बिल है. जो कि इससे ज्यादा भी आ सकता है और कम भी, ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस अस्पताल में इलाज करा रहे हैं.

बहुत ज्यादा परेशानी, ICU में भर्ती हुए


प्रदूषण से उन लोगों को ज्यादा खतरा होता है जो पहले ही किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं, जैसे कि अस्थमा, COPD या हार्ट पेशेंट. क्योंकि हल्का सा प्रदूषण भी इनके लिए गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है. कई मौकों पर इन्हें ICU में भी भर्ती करना पड़ सकता है, ऐसे में आपके पास इतना पैसा होना चाहिए कि आप इलाज का खर्च उठा सकें.

अस्पतालों के हिसाब से ICU चार्ज अलग-अगल होते हैं, मैं यहां पर BLK-Max हॉस्पिटल के ICU चार्ज उदाहरण के तौर पर ले रहा हूं, जिनकी वेबसाइट के मुताबिक - इकोनॉमी ICU का चार्ज 35,000 रुपये प्रति दिन है और सुईट का चार्ज 90,000 रुपये प्रति दिन है. अब कोई गंभीर स्थित में अस्पताल पहुंचा है तो उसके इलाज में कई दिन लग सकते हैं. मान लेते हैं कि मरीज 5 दिन तक ICU में रहता है तो कुल खर्च कितना आएगा.

ICU: 35,000-90,000 रुपये प्रति दिन
ऑक्सीजन + नेबुलाइजेशन:
3,000-7,000 रुपये प्रति दिन
डॉक्टर विजिट: 1,000-2,000 रुपये प्रति दिन
दवाएं: 2000-4000 रुपये प्रति दिन
TOTAL: 5 दिन तक अगर मरीज अस्पातल के ICU में रहता है तो कुल अनुमानित बिल 2,05,000- 5,15,000 रुपये के करीब आ सकता है. जो कि किसी मिडिल क्लास परिवार के लिए एक बड़ा अमाउंट है और जिसका इंतजाम करने में मुश्किल आ सकता है. इसलिए जरूरी है कि हेल्थ इंश्योरेंस हो.

प्रदूषण से हेल्थ इंश्योरेंस भी महंगा होगा


अब आपको इस तरह के खर्चों से निपटने के लिए जरूरी है कि आपके पास पर्याप्त हेल्थ इंश्योरेंस हो, अगर आपने इसे ले रखा है तो अच्छी बात है. लेकिन आगे की बात ये है कि प्रदूषण की वजह से आपके हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम भी बढ़ सकता है. पॉलिसीबाज़ार की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियां अब हेल्थ इंश्योरेंस में अस्पताल भर्ती के कुल क्लेम्स का 8% हो गई हैं. पहले यह कम था, लेकिन पिछले 4 सालों में बढ़ता गया है. 2022 में यह 6.4% था, और 2025 में 9% तक पहुंच गया है. यानी क्लेम्स में 14% की बढ़ोतरी देखने को मिली है. खासकर सितंबर 2025 में तो लगभग 9% क्लेम प्रदूषण से जुड़े थे.

दिल्ली में अकेले ही 38% क्लेम्स प्रदूषण से जुड़े थे. अब चूंकि लगातार कई सालों से प्रदूषण बढ़ रहा है तो बीमा कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम 10% से 15% बढ़ाने के बारे में सोच रही हैं. चर्चा इस बात की भी हो रही है कि प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के इलाज के लिए अलग से एक हेल्थ कवर लॉन्च किया जाए.

प्रदूषण की समस्या आमतौर पर मेट्रो शहरों जैसे, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू में होती है. चूंकि यहां पर रहने वाले लोग को हेल्थ रिस्क ज्यादा होता है, इसलिए इनका प्रीमियम भी ज्यादा होता है. इंश्योरेंस कंपनियां शहरों को तीन हिस्सों में बांटती हैं. जोन 1 जिसमें मेट्रो शहर आते हैं, जोन 2 जिसमें टियर 1 शहर आते हैं और तीसरा जोन 3 जिसमें देश के बाकी शहर आते हैं. मेट्रो शहरों में रहने वाले लोग आमतौर पर 10-20% ज्यादा प्रीमियम देते हैं.

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Updated on:
14 Dec 2025 12:59 pm
Published on:
14 Dec 2025 12:25 pm
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