देश में सिर्फ 10त्न स्टार्टअप ही सफल हुए हैं। 90त्न स्टार्टअप फेल हो चुके हैं, इनमें 80त्न में तो शुरुआत के 5 साल के अंदर ही ताला लग जाता है। मार्केट के लिए अनफिट प्रोडक्ट, खराब मार्केटिंग, खराब टीम, फंडिंग नहीं जुटा पाना, मैनपावर का अभाव, मेंटर की नहीं होना और अपने पर्सनल फाइनेंस को तवज्जो नहीं देने के कारण अधिकतर स्टार्टअप फेल हो जाते हैं।
देश में सिर्फ 10% स्टार्टअप ही सफल हुए हैं। 90% स्टार्टअप फेल हो चुके हैं, इनमें 80% में तो शुरुआत के 5 साल के अंदर ही ताला लग जाता है। मार्केट के लिए अनफिट प्रोडक्ट, खराब मार्केटिंग, खराब टीम, फंडिंग नहीं जुटा पाना, मैनपावर का अभाव, मेंटर की नहीं होना और अपने पर्सनल फाइनेंस को तवज्जो नहीं देने के कारण अधिकतर स्टार्टअप फेल हो जाते हैं। स्टार्टअप से जुड़ी इस दूसरी सीरीज में जाने कि कैसे स्टार्टअप शुरू करने से पहले अपने पर्सनल फाइनेंस को मैनेज करें और निवेशक किसी स्टार्टअप में निवेश करने से पहले क्या देखते हैं…
स्टार्टअप शुरू करने से पहले अपने लिए और अपने परिवार के लिए कम से कम 2 साल तक खर्च करने के लायक पूंजी जमा करें, इसके बाद ही स्टार्टअप शुरू करें। खुद के पर्सनल फाइनेंस और बिजनेस के लिए जरूरी फाइनेंस को मिक्स न करें। निवेशक के पैसे को अपना पैसा न समझें, वह बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए है, आपके परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए नहीं।
नियमित खर्च के अलावा 6 महीने के खर्च लायक इमरजेंसी फंड बनाएं। मान लीजिए आपका मासिक खर्च 50,000 रुपए है तो इमरजेंसी फंड में कम से कम 3 लाख रुपए रखें। इस पैसे को आप छोटी अवधि वाले डेट फंड्स में निवेश कर सकते हैं या सेविंग अकाउंट में रख सकते हैं।
अपने और परिवार के लिए पर्याप्त कवरेज वाला टर्म इंश्योरेंस और हेल्थ इंश्योरेंस कराएं जिसमें क्रिटिकल इलनेस भी कवर हो। अगर स्टार्टअप शुरू करने के लिए नौकरी छोड़ रहे हैं तो अपने ग्रुप इंश्योरेंस को पर्सनल बीमा में कन्वर्ट कराएं। एडवांस में 2 से 3 साल का बीमा प्रीमियम चुकाने की भी कोशिश करें।
स्टार्टअप शुरू करने से पहले ही इससे बाहर निकलने का एग्जिट प्लान तैयार रखें। अगर किसी कारणवश स्टार्टअप फेड हो गया तो आपका बैकअप प्लान क्या होगा, इसकी पूरी तैयारी पहले से ही कर लें। अपने प्रोफेशनल नेटवर्क को भी जिंदा रखें, ताकि इमरजेंसी में दोबारा नौकरी पाने में परेशानी न हो।
अगर पहले से ही होम-कार-पर्सनल लोन की ईएमआइ चुका रहे हैं तो स्टार्टअप के शुरुआती चरण में नया कर्ज न लें। साथ ही पुराने कर्ज को भी चुकाने की कोशिश करें।
शुरुआती चरण में स्टार्टअप के लिए फंडिंग जुटाना सबसे मुश्किल काम है। किसी भी स्टार्टअप में निवेशक ऐसे ही पैसे नहीं लगा देते हैं। वे निवेश करने से पहले कई चीजों की जांच-पड़ताल करते हैं।
बिजनेस मॉडल: निवेशक देखते हैं कि स्टार्टअप का बिजनेस मॉडल यूनीक और प्रॉफिटेबल है या नहीं, इसमें निवेश करने पर उन्हें रिटर्न मिलेगा या नहीं। बिजनेस, कंपनी के ग्रोथ, मुनाफा, राजस्व और भविष्य में अर्निंग ग्रोथ को लेकर फाउंडर का विजन साफ है या नहीं।
व्यवसाय की प्रगति: निवेशक स्केलेबिलिटी की संभावना वाले व्यवसायों की तलाश में रहते हैं। वे जानना चाहते हैं कि एक खास व्यवसाय बड़े पैमाने पर कैसा प्रदर्शन करेगा और क्या बनने वाला उत्पाद मार्केट के लिए फिट है।
मजबूत प्रबंधन: कोई स्टार्टअप उतना ही अच्छा है जितनी उसकी टीम और प्रबंधन। निवेशक जुनूनी फाउंडर्स की तलाश में रहते हैं, जो अपना पूरा समय अपने बिजनेस को देते हैं। निवेशक एक से अधिक फाउंडर वाले स्टार्टअप को तवज्जो देते हैं।
प्रोडक्ट की प्रोफाइल: निवेशक उन आयडियाज को फंड करना चाहते हैं जिनमें प्रतिस्पर्धा की कोई विशेषता हो और उत्पाद में कुछ ऐसा हो जो इसे अलग बनाता है। उत्पाद टिकाऊ हो और बाजार में उसकी मांग होनी चाहिए।