Mutual Fund Charges: म्यूचुअल फंड हाउसेज आपके पैसे को मैनेज करने के लिए फंड मैनेजर्स रखते हैं। उन्हें पेमेंट किया जाता है। यह पैसा निवेशकों से मैनेजमेंट फीस के रूप में वसूला जाता है।
Mutual Fund Charges: भारत में म्यूचुअल फंड काफी तेजी से लोकप्रिय हुआ है। जो लोग सीधे शेयर मार्केट में पैसा लगाने का जोखिम नहीं उठा सकते, वे म्यूचुअल फंड की तरफ रुख करते हैं। म्यूचुअल फंड में आपका पैसा फंड मैनेजर्स द्वारा मैनेज किया जाता है। फंड मैनेजर्स इस पैसे को अलग-अलग एसेट क्लास में इन्वेस्ट करते हैं। म्यूचुअल फंड मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं। इक्विटी फंड, डेट फंड और हाइब्रिड फंड। इक्विटी फंड में सबसे ज्यादा जोखिम होता है। हालांकि, ये लॉन्ग टर्म में सबसे ज्यादा रिटर्न देते हैं। इक्विटी फंड भी 4 प्रकार के होते हैं- लार्ज कैप, मिड कैप, स्मॉल कैप और मल्टी कैप फंड।
जब आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, तो आपसे कई तरह के चार्जेज लिए जाते हैं। ये चार्जेज आपके रिटर्न को भी प्रभावित कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि ये कौन-कौन से हैं।
अगर निवेशक न्यूनतम बैलेंस रखने की आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाते, तो एसेट मैनेजमेंट कंपनियां उनसे अकाउंट फीस लेती हैं। यह चार्ज निवेशक के पोर्टफोलियो से सीधे काट लिया जाता है।
फंड मैनेजर्स को स्कीम के मैनेजमेंट के लिए पेमेंट किया जाता हैं। यह पैसा निवेशकों से मैनेजमेंट फीस के रूप में लिया जाता है। इसे एक्सपेंस रेश्यो के रूप में भी जानते हैं।
जब निवेशक म्यूचुअल फंड यूनिट खरीदता है, तो फंड हाउस निवेशक से एंट्री लोड वसूलता है। इक्विटी म्यूचुअल फंड पर एंट्री लोड नहीं लगता है।
जब निवेशक म्यूचुअल फंड यूनिट्स को बेचता है या रिडीम करवाता है, तो एसेट मैनेजमेंट कंपनी इन्वेस्टर से एग्जिट लोड लेती है। यह अलग-अलग स्कीम में अलग-अलग हो सकता है। आमतौर पर यह 0.25 फीसदी से 4 फीसदी तक होता है।
एसेट मैनेजमेंट कंपनी प्रिंटिंग, मेलिंग और मार्केटिंग जैसे खर्चों को पूरा करने के लिए निवेशकों से सर्विस और डिस्ट्रीब्यूशन चार्जेज वसूलती हैं।
कई फंड हाउसेज निवेशकों को एक म्यूचुअल फंड स्कीम से दूसरी स्कीम में स्विच करने की सुविधा देते हैं। जब आप इस सुविधा का फायदा उठाते हैं, तो आपसे स्विच फीस वसूली जाती है।