SIP Vs Lumpsum Investment: म्यूचुअल फंड कई तरह के होते हैं। इक्विटी फंड, डेट फंड, हाइब्रिड फंड, लिक्विड फंड, इंडेक्स फंड और ईएलएसएस फंड म्यूचुअल फंड के प्रकार हैं।
भारत में म्यूचुअल फंड काफी लोकप्रिय निवेश विकल्प है। हर साल बड़ी संख्या में नए निवेशक इस इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट के साथ जुड़ रहे हैं। जो लोग सीधे शेयर बाजार में पैसा लगाने का जोखिम नहीं ले सकते, उनके लिए म्यूचुअल फंड एक अच्छा विकल्प है। यहां आपके पैसों को फंड मैनेजर्स अलग-अलग एसेट में इन्वेस्ट करते हैं। म्यूचुअल फंड प्रमुख रूप से 3 तरह के होते हैं। इक्विटी फंड, डेट फंड और हाइब्रिड फंड। इसके अलावा, लिक्विड फंड, इंडेक्स फंड, ईएलएसएस फंड भी म्यूचुअल फंड के ही प्रकार हैं।
वे फंड जो मुख्य रूप से शेयर बाजार में निवेश करते हैं, इक्विटी फंड कहलाते हैं। ये फंड ज्यादा रिस्की होते हैं। जो फंड मुख्य रूप से बॉन्ड और दूसरे फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करते हैं, डेट फंड कहलाते हैं। ये फंड 3 तरह के होते हैं- लिक्विड फंड, अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड और शॉर्ट टर्म फंड। वहीं, ऐसे फंड जो इक्विटी और डेट दोनों में इन्वेस्ट करते हैं, हाइब्रिड फंड कहलाते हैं। इनमें कंजर्वेटिव हाइब्रिड, बैलेंस्ड हाइब्रिड और एग्रेसिव फंड आते हैं।
म्यूचुअल फंड में एसआईपी और एकमुश्त दोनों तरह से निवेश किया जा सकता है। एसआईपी में हर महीने एक तय राशि निवेश करनी होती है। जबकि एकमुश्त निवेश में एक बार में ही सारा पैसा फंड में डाल दिया जाता है।
-वोलेटाइल मार्केट यानी उतार-चढ़ाव वाले बाजार में एसआईपी ज्यादा फायदेमंद रहती है, क्योंकि इससे जोखिम कम हो जाता है।
-आकर्षक वैल्यूएशन के समय या मार्केट में बड़ी गिरावट के बाद एकमुश्त निवेश किया जाए तो इससे शॉर्ट टर्म में बड़ा मुनाफा हो सकता है।
-कुछ निवेशक एकमुश्त और एसआईपी दोनों तरह से निवेश करते हैं। वे स्टेबल फंड्स में एकमुश्त निवेश करते हैं। वहीं, उचार-चढ़ाव वाली कैटेगरीज में एसआईपी करते हैं। इससे रिस्क और रिटर्न का बैलेंस बन पाता है।
-एसआईपी में टाइमिंग से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। अगल-अलग मार्केट लेवल्स पर शुरू की गई एसआईपी लॉन्ग टर्म में लगभग समान रिटर्न ही देती है। लॉन्ग टर्म में टाइमिंग का रिस्क घट जाता है।
-एकमुश्त निवेश में चक्रवृद्धि ब्याज का फायदा तेजी से मिलता है। लेकिन बाजार में तेजी नहीं रही, तो रिटर्न प्रभावित हो सकता है।