हाइवे हो या ग्रामीण सडक़ें, हर जगह मिट्टी और रेत से लदी बिना नंबर की ट्रैक्टर-ट्रॉलियां रफ्तार भरती नजर आती हैं।
जिले की सडक़ें मौत के खुले मैदान में तब्दील हो चुकी हैं। हाइवे हो या ग्रामीण सडक़ें, हर जगह मिट्टी और रेत से लदी बिना नंबर की ट्रैक्टर-ट्रॉलियां रफ्तार भरती नजर आती हैं। हालत यह है कि छतरपुर में हर साल करीब 700 सडक़ हादसे दर्ज होते हैं, जिनमें 200 से ज्यादा लोग जान गंवा रहे हैं। इनमें लगभग 20 फीसदी हादसों का कारण यही ट्रैक्टर-ट्रॉलियां हैं, जो न केवल बिना नंबर प्लेट और बिना रजिस्ट्रेशन के चल रही हैं, बल्कि सुरक्षा मानकों की भी खुलेआम धज्जियां उड़ा रही हैं।
जिले की सडक़ों पर चल रही ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में न तो ब्रेक-लाइट और इंडिकेटर हैं, न ही रेडियम स्ट्रिप का उपयोग। रात में सडक़ पर खड़ी या चलती ऐसी ट्रॉलियां अचानक सामने आने पर बड़े हादसों का सबब बन जाती हैं। उजाले की कमी में इनसे टकराने वाले कई वाहन चालक अपनी जान गंवा चुके हैं। ग्रामीण बताते हैं कि अंधेरे में रेत लदी ट्रॉलियों से टकराने की घटनाएं आए दिन होती हैं, लेकिन कार्रवाई का नाम तक नहीं है।
छतरपुर और आसपास के इलाकों में रेत का कारोबार हर साल अरबों का है। लेकिन परिवहन विभाग की लापरवाही इस कदर है कि पूरे जिले में महज 125 ट्रैक्टर ही व्यवसायिक श्रेणी में रजिस्टर्ड हैं, जबकि 18 हजार 137 ट्रैक्टर केवल कृषि कार्य के नाम पर पंजीकृत हैं। जिले में 1.60 लाख ट्रैक्टर-ट्रॉलियां चल रही हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल खेती से ज्यादा रेत, ईंट, गिट्टी और मुरम ढोने में होता है।
व्यावसायिक श्रेणी में रजिस्ट्रेशन होने पर 6% टैक्स देना होता है, लेकिन कृषि प्रयोजन वाले ट्रैक्टर कर मुक्त हैं। यहीं से खेल शुरू होता है। किसान या माफिया दोनों ही कृषि वाले रजिस्ट्रेशन का सहारा लेकर लाखों का अवैध मुनाफा कमा रहे हैं और सरकार को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है।
60 फीसदी से ज्यादा ट्रैक्टर-ट्रॉलियां ऐसी हैं जिन पर रजिस्ट्रेशन नंबर तक नहीं लिखा। मोटर व्हीकल एक्ट साफ कहता है कि बिना नंबर प्लेट के वाहन सडक़ पर नहीं चल सकता। इसके बावजूद जिलेभर में हजारों ट्रैक्टर खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
बिना नंबर वाहन पकड़े जाने पर 2000 का जुर्माना, इंश्योरेंस न होने पर 3000 और रजिस्ट्रेशन न कराने पर 2000 के जुर्माने का प्रावधान है। साथ ही वाहन जब्ती और राजसात की कार्रवाई भी संभव है। लेकिन हकीकत यह है कि प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक दबाव के चलते कार्रवाई कभी हो ही नहीं पाती।
जिले में तीन प्रमुख चेक प्वाइंट हैं, जहां से रोजाना सैकड़ों ट्रैक्टर गुजरते हैं। नियमों के मुताबिक यहां हर वाहन की जांच होनी चाहिए, लेकिन वास्तविकता यह है कि चेक प्वाइंट सिर्फ औपचारिकता निभा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार ट्रैक्टर-ट्रॉली रोकने के बाद भी चालान की बजाय समझौते की रकम लेकर उन्हें छोड़ दिया जाता है।
शहर और आसपास के इलाकों में हर दिन करीब 400 से ज्यादा ट्रैक्टर-ट्रॉलियां ईंट और रेत का अवैध कारोबार करती हैं। यह ट्रॉलियां पन्ना रोड, नौगांव मार्ग, बड़ामलहरा, गौरिहार और लवकुशनगर की ओर बेरोक-टोक दौड़ती रहती हैं। आम लोगों का कहना है कि इनकी स्पीड और लापरवाह ड्राइविंग ने सडक़ों को असुरक्षित बना दिया है।
यातायात नियमों के उल्लंघन पर लगाकार कार्रवाई की जा रही है। ट्रैक्ट्रर-ट्रॉलियों पर भी कार्रवाई की जा रही है। समाइश भी दे रहे हैं। अभियान चलाकर कार्रवाई की जाएगी।
बृहस्पति साकेत, प्रभारी, यातायात