बच्चों के सीखने की क्षमता परखी, ७० स्कूलों में बौद्धिक समझ से खुलेंगे शिक्षा की बेहतरी के रास्ते -हर स्कूल में अधिकतम ३० बच्चों ने की सहभागिता
दमोह. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एनईपी के प्रावधानों के तहत जिले में बच्चों की बौद्धिक समझ और बुनियादी संख्या ज्ञान का पता लगाने के लिए फंडामेंटल लिटरेसी एंड न्युमेरेसी यानि एफएलएन सर्वे कराया गया। इसका उद्देश्य यह जानना है कि कक्षा तीसरी और चौथी के विद्यार्थियों में भाषा, गणित और अन्य विषयों की मूलभूत समझ कितनी मजबूत है। इस सर्वे के नतीजों के आधार पर आगे जिले की शैक्षिक व्यवस्था को नया ढांचा मिलेगा। इसी से शिक्षा के बेहतरी के रास्ते खुलेंगे।
जिले के सात ब्लॉक दमोह, हटा, पथरिया, बटियागढ़, पटेरा, जबेरा और तेंदूखेड़ा के ७० स्कूलों में यह अध्ययन किया गया। सभी स्कूलों में यह सर्वे कार्य पूरा हो चुका है। सर्वे के लिए जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान डाइट में पढऩे वाले छात्रों को फील्ड इंवेस्टिगेटर की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके अलावा राज्य शिक्षा केंद्र की टीम ने भी स्कूलों में पहुंचकर यह सर्वे किया। इनके द्वारा मोबाइल एप के जरिए बच्चों से सवाल पूछते और उनके उत्तर उसी पर दर्ज किए। प्रत्येक स्कूल में अधिकतम ३० विद्यार्थियों को प्रश्नों के लिए चुना गया। इस तरह करीब २ हजार बच्चों ने सर्वे में भाग लिया।
हिंदी, गणित, विज्ञान विषयों की जांच
एनसीईआरटी द्वारा जारी गाइडलाइन और टूल्स के आधार पर इस सर्वे को संचालित किया गया। इसमें हिन्दी, गणित, पर्यावरण अध्ययन, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों की बुनियादी दक्षता को परखा गया। दरअसल, केंद्र सरकार का उद्देश्य है कि शुरुआती कक्षाओं से ही बच्चों की सीखने की क्षमता और सोचने की आदत मजबूत हो। शोध से साबित हुआ है कि जीवन के पहले आठ से दस साल ही समग्र विकास की नींव रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।
सर्वे का उद्देश्य, बच्चों की शिक्षा पर फोकस
शिक्षा विभाग के बीते सर्वे के रिपोर्ट्स में पाया गया है कि 80 से 90 प्रतिशत बच्चे कक्षा 3 पास कर जाते हैं, लेकिन हिन्दी और गणित जैसी बुनियादी जानकारी में कमजोर रह जाते हैं। यही वजह है कि नई शिक्षा नीति में आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता को प्राथमिकता दी गई है। सरकार का मानना है कि यदि शुरुआती स्तर पर बच्चों को सही दिशा मिल जाए तो आगे चलकर पढ़ाई में कठिनाई, पुनरावृत्ति और स्कूल छोडऩे जैसी समस्याएं काफी हद तक कम हो जाएंगी।
किताबों से आगे भी सीखना जरूरी
सरकार की मंशा है कि सिर्फ पाठ्यपुस्तक ही नहीं, बल्कि खेल, कहानियों, तुकबंदी, स्थानीय कला, शिल्प और संगीत के जरिए भी बच्चों को आनंदपूर्वक सिखाने की पहल की जाए। इस तरीके से सीखने पर विद्यार्थी जीवनभर ज्ञान अर्जन की आदत विकसित कर पाते हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित होता है कि पढ़ाई केवल परीक्षा तक सीमित न रहकर बच्चों के व्यवहार और सोचने की शैली में गहराई तक उतरे।
जिले की बेहतरी के रास्ते खुलेंगे
वास्तविक स्थिति का आंकलन- यह साफ होगा कि बच्चे कितनी हद तक बुनियादी पढ़ाई समझ पा रहे हैं। इससे आगे का प्लान बनेगा।
कमजोरियों की पहचान- किन विषयों या कौशल में कमी है, उसका स्पष्ट पता चलेगा। इसी आधार पर शिक्षकों को तैयार किया जाएगा।
भविष्य की रणनीति- सरकार और शिक्षा विभाग नई योजनाएं और पाठ्यक्रम इसी आधार पर तैयार करेंगे। फिर अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
शिक्षकों को मार्गदर्शन- सर्वे के परिणामों से यह तय होगा कि शिक्षण शैली में किन बदलावों की जरूरत है। इसके बाद शिक्षकों को मार्गदर्शन भी दिया जाएगा।
वर्शन
एफएलएल सर्वे का कार्य पूरा हो चुका है। राज्य शिक्षा केंद्र की टीम ने जिले के चयनित स्कूलों में यह सर्वे किया है। इसकी रिपोर्ट अभी आना शेष है। रिपोर्ट आने के बाद ही पढ़ाई के बिंदू तय किए जा सकेंगे।
मुकेश द्विवेदी, डीपीसी दमोह