Godhan Puja 2025: उत्तर प्रदेश में मनाई जाने वाली गोधन पूजा एक अनोखी परंपरा है जिसमें बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए जीभ में कांटे डालकर व्रत करती हैं। जानिए गोधन पूजा 2025 की तारीख, विधि, कथा और इसका धार्मिक महत्व।
Godhan Puja 2025: बिहार और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में गोवर्धन पूजा की तरह ही एक अनोखा त्योहार मनाया जाता है, जिसे गोधन पूजा कहा जाता है। यह पूजा पूरी तरह से भाई की सुरक्षा और लंबी उम्र की कामना के लिए की जाती है। इस पारंपरिक पूजा को सुहागिन महिलाएं और लड़कियां मिलकर करती हैं। इसमें गाय के गोबर से सांप, बिच्छू और गोधन बाबा की आकृतियां बनाई जाती हैं, और पूजा के अंत में महिलाएं अपनी जीभ में रेंगनी के कांटे डालकर अपने भाइयों की सलामती की प्रार्थना करती हैं।
सुबह-सुबह गांव की सभी लड़कियां और महिलाएं एक जगह इकट्ठा होती हैं। सबसे पहले वे उस स्थान की सफाई करती हैं जहां पूजा होनी होती है, फिर गोबर से जगह की पुताई की जाती है। गोबर से ही जमीन पर सांप, बिच्छू और गोधन बाबा की आकृति बनाई जाती है। इसके बाद महिलाएं घर जाकर पूजा का सामान तैयार करती हैं और फिर सभी एक साथ पूजा स्थल पर लौट आती हैं।
हर महिला अपने भाई की संख्या के अनुसार मिट्टी के बर्तन में चिवड़ा, पटौरा, कुटकी या कोई मिठाई रखती है। इन बर्तनों को सुंदर कपड़े से ढक दिया जाता है। इस पूजा का मुख्य प्रसाद चना होता है। लोक मान्यता के अनुसार, इस प्रसाद को खाने से दाढ़ी-मूंछ आती है, इसलिए लड़कियां इस प्रसाद को नहीं खातीं। इस साल गोधन पूजा 23 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन महिलाएं दिनभर व्रत रखती हैं और शाम को यह विशेष पूजा करती हैं।
लोककथाओं के अनुसार, एक बहन और उसके भैया-भाभी की कहानी गोधन पूजा से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि बहन की भाभी का एक प्रेमी था, जो इच्छाधारी नाग था। एक दिन भाई ने अनजाने में उस नाग को मार डाला। दुखी होकर भाभी ने नाग के शरीर के टुकड़े अपने बालों, दीये और खटिया के नीचे छिपा दिए। बाद में जब बहन को यह रहस्य पता चला, तो उसने अपने भाई की रक्षा के लिए गोधन बाबा से प्रार्थना की और यह व्रत शुरू किया। तब से यह परंपरा चली आ रही है।
गोधन पूजा के दौरान महिलाएं रेंगनी पौधे के कांटे अपनी जीभ में डालती हैं। यह साहस, त्याग और भाई के प्रति प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद वे गोधन बाबा को कूटती हैं, गीत गाती हैं और भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। आज भी उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण इलाकों में यह परंपरा श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाई जाती है। यह त्योहार भाई-बहन के गहरे प्रेम, विश्वास और त्याग का प्रतीक है।