Jaya Ekadashi Shubh Yog: एकादशी को हरी वासर यानी भगवान विष्णु का दिन कहा जाता है। विद्वानों का कहना है कि एकादशी व्रत यज्ञ और वैदिक कर्म-कांड से भी ज्यादा फल देता है।
Jaya Ekadashi Shubh Yog: हिंदू धर्म में एकादशी को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है जो व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से करता है उसे उसके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। एकादशी व्रत करने वाला व्यक्ति इस लोक में समस्त सुख भोगकर मृत्य के बाद स्वर्ग में स्थान पाता है।
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 07 फरवरी को रात 09:26 मिनट पर हो रही है। वहीं एकादशी तिथि का समापन 08 फरवरी को रात 08:15 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का विशेष महत्व है। ऐसे में जया एकादशी व्रत 08 फरवरी को किया जाएगा।
जया एकादशी के दिन रवि योग का निर्माण हो रहा है। साथ ही भद्रावास का भी संयोग है। इसके अलावा, रात में शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है। ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। ये महीने में दो बार आती है। एक शुक्ल पक्ष के बाद और दूसरी कृष्ण पक्ष के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं।
इस शुभ अवसर पर मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्र का संयोग है। इन योग में जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी।
साल 24 एकादशी तिथियों को अलग-अलग नाम दिए गए हैं। हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी व्रत हर माह में 2 बार पड़ता है एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत की महिमा स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को मोक्ष मिलता है और सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं, दरिद्रता दूर होती है। अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता, शत्रुओं का नाश होता है, धन, ऐश्वर्य, कीर्ति, पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है। माघ माह की जया एकादशी व्रत को करने से विष्णु जी की कृपा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि स्कन्द पुराण में कहा गया है कि हरिवासर यानी एकादशी और द्वादशी व्रत के बिना तपस्या, तीर्थ स्थान या किसी तरह के पुण्याचरण द्वारा मुक्ति नहीं होती। पदम पुराण का कहना है कि जो व्यक्ति इच्छा या न चाहते हुए भी एकादशी उपवास करता है। वो सभी पापों से मुक्त होकर परम धाम वैकुंठ धाम प्राप्त करता है।
कात्यायन स्मृति में जिक्र किया गया है। कि आठ साल की उम्र से अस्सी साल तक के सभी स्त्री-पुरुषों के लिए बिना किसी भेद के एकादशी में उपवास करना कर्त्तव्य है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सभी पापों ओर दोषों से बचने के लिए 24 एकादशियों के नाम और उनका महत्व बताया है।
जया एकादशी के दिन सूर्योदय के समय या पहले उठें। इस समय भगवान विष्णु को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। घर की साफ-सफाई करें। सभी कामों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इसके बाद आचमन कर पीले रंग के कपड़े पहनें। अब सूर्य देव को जल अर्पित करें और पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें।
पूजा के समय भगवान विष्णु को पीले रंग के फल, फूल, मिठाई आदि चीजें अर्पित करें। इस समय विष्णु चालीसा और विष्णु स्तोत्र का पाठ करें। पूजा का समापन आरती से करें। दिन भर उपवास रखें। शाम में आरती-अर्चना करने के बाद फलाहार करें। रात्रि में भगवान विष्णु के निमित्ति भजन-कीर्तन करें। अगले दिन पूजा-पाठ के बाद व्रत खोलें।