दुर्लभ कछुओं और डॉल्फिन संरक्षण के लिए धौलपुर में प्रजनन केन्द्र खोला जाएगा।
धौलपुर। दुर्लभ कछुओं और डॉल्फिन संरक्षण के लिए धौलपुर में प्रजनन केन्द्र खोला जाएगा। इसका प्रस्ताव बना कर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने राजस्थान चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ऑफिस को भेजा गया है। स्वीकृति मिलने के बाद यह राजस्थान का पहला प्रजनन केंद्र होगा जहां कछुओं को संरक्षण दिया जाएगा। प्रजनन केंद्र चंबल नदी के किनारे पर बनाया जाएगा।
धौलपुर में कछुओं के संरक्षण केंद्र के अलावा करौली, सवाई माधोपुर में भी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कार्य योजना भी तैयार की गई है। जिसमें कछुआ, डॉल्फिन, घडिय़ाल शामिल हैं। विभाग कछुआ प्रजनन केन्द्र की मंजूरी मिलने को लेकर उत्साहित है। क्योंकि वन विभाग एवं टीएसए फाउंडेशन इंडिया के संयुक्त संरक्षण प्रयासों के तहत धौलपुर राष्ट्रीय चम्बल घडिय़ाल अभयारण्य ने जून माह में संकटग्रस्त बाटागुर कछुआ प्रजातियों के अंडों का सफलतापूर्वक संरक्षण कर 3 हजार 267 कछुआ शावकों को चंबल नदी में छोड़ा था।
इस सफल प्रयोग के बाद डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के भेजे गए प्रस्ताव को जल्द मंजूरी मिलने की संभावना जताई जा रही है। बारिश के दौरान कछुओं के अंडे और नन्हे शावकों को संरक्षण केंद्र में रखा जाएगा। बारिश के बाद चंबल नदी का बहाव कम होने पर कछुओं को नदी में छोड़ा जाएगा। इससे दुर्लभ प्रजातियों के कछुओं को संरक्षण भी मिलेगा साथ ही इनको बचाया जा सकेगा।
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य के कार्मिकों ने इस साल चम्बल नदी के किनारों से बाटागुर कछुआ प्रजाति के अंडों को एकत्रित किया था और उसके बाद नदी के किनारे सुरक्षित स्थानों पर गड्ढे खोद कर उनमे अंडे रखे गए थे। इसके बाद अंडों की सुरक्षा के लिए लकड़ी के कवर बनाए गए थे, जिससे कोई भी जंगली जानवर अंडों को खा न सके।
कार्मिकों ने चंबल नदी के मोर बसईया गांव के पास कछुओं के 160 नेस्ट संरक्षित किए। जिनमें से 3 हजार 267 शावक सुरक्षित रूप से अस्थाई हैचरी में विकसित होकर चम्बल नदी में छोड़े गए थे। बारिश के दौरान चंबल नदी के उफान में कछुओं के बच्चे मर जाते हैं और नेस्टिंग के दौरान भी जंगली जानवर भी अंडों को खा जाते हैं। इससे कछुओं की दुर्लभ प्रजातियों पर संकट पैदा हो गया है।
चंबल नदी में बाटागुर कछुआ, बाटागुर डोंगोका, कछुआ टेंटोरिया, हारडेला थुरगी, चित्रा इंडिका, निलसोनिया, लेसिमस पंटाटा, लेसिमस ऐंडरसनी की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से बाटागुर कछुआ, टेंटोरिया और निलसोनिया प्रजाति के कछुए विलुप्त हो रहे हैं।
वन्यजीवन संरक्षण के जानकार बताते हैं कि कछुआ हमारे इको सिस्टम के लिए बेहद जरूरी जलीय जीव माने जाते हैं। इसलिए इन्हें पानी का गिद्ध भी कहा जाता है और यह पानी के सफाई कर्मी भी कहलाए जाते हैं। कछुआ पानी में छोटी मछली, सड़ी गली पत्तियों से लेकर डेड बॉडी आदि का भक्षण करता है और पानी को स्वच्छ बनाए रखता है।
दुर्लभ कछुओं को बचाने के लिए प्रजनन केंद्र पर कार्य किया जा रहा है साथ ही करौली, सवाई माधोपुर में भी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कार्य योजना बनाई गई है। जिसमें कछुआ, डॉल्फिन, घडिय़ाल शामिल हैं। इसका प्रस्ताव बना कर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने राजस्थान चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ऑफिस को भेजा गया है।
-डॉ. आशीष व्यास, उप वन संरक्षक धौलपुर