इटावा

Gopaldas Neeraj: लिखे जो खत तुझे…जैसे गीत रचे, फिर भी खुद को क्यों बदकिस्मत कवि मानते थे ‘नीरज’?

Gopaldas Neeraj Death Anniversary: मूलरूप से उत्तर प्रदेश के इटावा के रहने वाले प्रख्यात कवि गोपालदास 'नीरज' ने एक से बढ़कर एक सदाबहार गीत रचे। इसके बावजूद वो खुद को बदकिस्मत कवि मानते थे। आइए जानते हैं इसका कारण क्या था?

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Jul 19, 2025
हिन्दी के जाने माने कवि और बॉलीवुड को कई सदाबहार गीत देने वाले कवि गोपालदास नीरज। (फोटोः IANS)

Gopaldas Neeraj Death Anniversary: उत्तर प्रदेश के इटावा में जन्मे प्रख्यात कवि और बॉलीवुड को तमाम सदाबहार गीत देने वाले गोपालदास 'नीरज' किसी पहचान के मोहताज नहीं है। 19 जुलाई यानी शनिवार को उनकी सातवीं पुण्यतिथि है। ऐसे हम आज आपको बताने जा रहे हैं कि अपने गीतों से दुनियाभर में अपने नाम का डंका बजाने वाले गोपालदास 'नीरज' खुद को बदकिस्मत कवि क्यों मानते थे? आखिर उनकी वो कौन सी इच्छा थी, जो इन मशहूर होने के बाद भी पूरी नहीं हुई। इससे पहले आप जान लीजिए कि गोपालदास 'नीरज' कौन हैं?

गोपालदास 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को यूपी के इटावा जिले के गांव पुरावली में एक साधारण कायस्‍थ परिवार में हुआ था। मात्र छह साल की अवस्‍था में गोपालदास 'नीरज' के सिर से पिता का साया उठ गया। इसके बाद गोपालदास की जिंदगी में मुश्किलों का दौर आ गया। हालांकि बाद में उन्हें उनके फूफा अपने साथ एटा ले आए। जहां उनका पालन-पोषण हुआ। इस दौरान उन्होंने साल 1942 में हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में पास किया।

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कवि गोपालदास 'नीरज' बीमार पड़े तो उनका हाल जानने के लिए मुलायम सिंह यादव पहुंचे थे। (फोटोः IANS)

कविता लिखकर जीता लोगों का दिल

गोपालदास 'नीरज' को कविता लिखने का शौक स्कूल के दिनों से ही था। वह सबसे ज्यादा हरिवंश राय बच्चन से प्रेरित थे। हरिवंश राय बच्चन की कविताएं पढ़कर उन्होंने आधुनिक हिन्दी कविता की संभावनाओं को तलाशना शुरू किया। इसके बाद गोपालदास 'नीरज' ने न सिर्फ कविताकोष को समृद्ध किया, बल्कि कई कवि सम्मेलनों में अपनी भावपूर्ण प्रस्तुतियों से लाखों लोगों के दिलों पर राज भी किया।

गोपालदास 'नीरज' के प्रमुख गीत, जो बहुत फेमस हुए

गोपालदास 'नीरज' ने बॉलीवुड फिल्मों के लिए तमाम गीत लिखे। जो सदाबहार बन गए। लोग उन गीतों को आज भी गुनगुनाते हैं। इसके बावजूद 'लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में, हजारों रंग के नजारे बन गए…जैसे गीत गढ़ने वाले गोपालदास 'नीरज' खुद को बदकिस्मत मानते थे। हालांकि ये बात सुनकर उनके प्रशंसकों को जमती नहीं थी। लोगों के मन में सवाल उठते थे कि आखिर इतने सहज और सुंदर शब्दों में पिरोए गीत जो लोगों को प्रेरणा देते हैं, उन्हें लिखने वाला कवि भला खुद को बदकिस्मती का टैग क्यो दे रहा है?

खुद को बदकिस्मत कवि कहने के पीछे का कारण कवि गोपालदास 'नीरज' ने इंटरव्यू में बताया था। (फोटोः IANS)

एक इंटरव्यू में गोपालदास 'नीरज' ने बताई थी मन की बात

इस बात का गोपालदास 'नीरज' ने एक टेलीविजन साक्षात्कार में खुद ही जवाब दिया। उन्होंने पहले तो खुद को 'बदकिस्मत कवि' कहा। एंकर ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वह फिल्मी गीतों के बजाय कविता पर ज्यादा ध्यान देना चाहते थे, लेकिन समय और परिस्थितियों ने उन्हें इससे दूर कर दिया। गोपालदास 'नीरज' ने बताया कि जयकिशन और एसडी बर्मन जैसे संगीतकारों के निधन के बाद वह अवसाद में चले गए थे। इसके चलते उनके फिल्मी गीत लेखन के कॅरिअर पर भी बड़ा गहरा असर पड़ा था।

कविताओं में गहराई थी, जो फिल्मी गीतों में व्यक्त नहीं हो पाई

गोपालदास 'नीरज' का मानना था कि उनकी कविताओं में वह गहराई थी। जो फिल्मी गीतों में पूरी तरह व्यक्त नहीं हो पाई। फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और कवि सम्मेलनों में अपनी रचनाओं से लोगों को मंत्रमुग्ध किया। नीरज की कविताएं सादगी और गहरे भावों का संगम थीं। उनकी पंक्तियां जैसे 'स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लूट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से' और 'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे' आज भी लोगों को भाव-विभोर कर देती हैं। उनकी रचनाओं में प्रेम, प्रकृति, दुख और समय की मार को सरल शब्दों में पिरोया गया। जो आम और खास, दोनों को छू लेता था।

फिल्मी दुनिया को दिए कई सदाबहार गीत

उनकी कविता 'अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए' सामाजिक एकता का संदेश देती है। इसके अलावा फिल्मी दुनिया में भी नीरज ने अपनी अमिट छाप छोड़ी। ‘प्रेम पुजारी’ के 'रंगीला रे, तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन' और 'फूलों के रंग से, दिल की कलम से' जैसे गीतों ने उन्हें घर-घर में मशहूर किया। ‘मेरा नाम जोकर’ का 'ए भाई, जरा देख के चलो' और ‘कन्यादान’ का 'लिखे जो खत तुझे' जैसे गीत आज भी सदाबहार हैं। नीरज ने शंकर-जयकिशन और एस.डी. बर्मन जैसे संगीतकारों के साथ मिलकर कई यादगार गीत दिए। लेकिन इन संगीतकारों के निधन ने उन्हें गहरा सदमा दिया।

हिन्दी साहित्य और शिक्षा जगत में योगदान देने पर गोपालदास 'नीरज' को सम्मानित किया गया था। (फोटोः विकीपीडिया)

19 जुलाई 2018 को एम्स में ली आखिरी सांस

नीरज को उनके योगदान के लिए साल 1991 में पद्म श्री और 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर और मंगलायतन विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में भी उन्होंने शिक्षा जगत में योगदान दिया। 19 जुलाई 2018 को दिल्ली के एम्स में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी कविताएं और गीत आज भी जिंदा हैं। नीरज का मानना था कि कविता आत्मा की सुंदरता का शब्द रूप है, और यही उनकी रचनाओं की ताकत थी।

आईएएनएस से इनपुट

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