Holi Story In Hindi: हिंदू धर्म के हर पर्व के पीछे कोई न कोई कहानी है और जब देश के सबसे बड़े त्योहारों में से एक होली की बात हो तो इसके पीछे भी कई कथाएं हैं आइये जानते हैं होली और छोटी होली से जुड़ी प्राचीन कथाएं (Holika Ki Kahani)
Holika Ki Kahani: प्राचीन परंपरा के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन पहले महिलाएं परिवार की सुख समृद्धि के लिए चंद्रमा की पूजा करती थीं, और दिन में नवात्रैष्टि यज्ञ किया जाता था। इस यज्ञ में अधपके अन्न का हवन किया जाता था। इस अन्न को होला कहते थे। बाद में इसने उत्सव का रूप ले लिया और यह होलिकोत्सव कहा जाने लगा। कालांतर में होलिकोत्सव छोटी होली के रूप में जाना जाने लगा और होलिका दहन के अगले दिन रंगोत्सव होली पर्व मनाया जाने लगा। आइये जानते हैं होली से जुड़ी प्रमुख कहानियां
होली पर्व से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध है हि प्रह्लाद की। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर पैदा हुआ, उसे अपने बल का अहंकार था। वह चाहता था प्रजा उसकी पूजा करे, इसलिए उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर रोक लगा दी।
लेकिन हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद महान ईश्वर भक्त थे। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से हिरण्यकश्यप नाराज था, उसने प्रह्लाद को समझाने की कोशिश की, लेकिन प्रह्लाद ने अपना मार्ग नहीं छोड़ा। इस पर प्रह्लाद को सबक सिखाने के लिए हिरण्यकश्यप ने दंड दिए, सागर में फेंकवाया, हाथी से कुचलवाने की कोशिश की पर भगवान के आशीर्वाद से प्रह्लाद बच गए।
आखिर में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका होलिका, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था उसे प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया। लेकिन वरदान बेअसर हो गया, होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गए।
बाद में जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को खंभे में बांधकर मारने की कोशिश की तो भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर उसका अंत किया। इसी के बाद से फाल्गुन पूर्णिमा पर प्रह्लाद की याद में होलिका दहन किया जाने लगा यानी छोटी होली मनाई जाने लगी।
होलिका दहन के अगले दिन रंगों वाली होली सेलिब्रेट की जाती है। इस दिन सभी लोग कटुता भुलाकर लोग एक-दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं और बधाी देते हैं। लेकिन यह परंपरा त्रेता युग और द्वापर युग से शुरू हुई। त्रेता युग की कहानी से पहले आपको बताते हैं द्वापर युग की राधा कृष्ण की कहानी, जानें कैसे शुरू हुई रंगों वाली होली ..
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द्वापर युग की कथा के अनुसार जब भगवान कृष्ण शिशु थे, तब कंस ने उन्हें मारने के लिए पूतना नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा। फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन पूतना ने अपने स्तनों पर विष लगाकर कान्हा को स्तनपान करवाया, लेकिन दूध पीते पीते कान्हा ने उसका वध कर दिया। लेकिन इससे सांवले कान्हा का रंग और सांवला हो गया।
इसके बाद कान्हा और बड़े हुए तो उन्हें अपने रंग के सांवले होने का दुःख हुआ। कान्हा ने इसका दुख मैया यशोदा से व्यक्त किया। एक दिन माता यशोदा ने यूं ही कह दिया कि तुम्हें राधा के गोरे रंग से समस्या है तो तू उसे किसी भी रंग में रंग दे। बस इतना सुनना था कि कान्हा अपने मित्रों के साथ कई प्रकार के रंग लेकर फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन बरसाना गांव की ओर दौड़ पड़े।
कान्हा को जैसे ही राधा दिखी, उन्होंने उस पर कई तरह के रंग डाल दिए और मुख लाल-पीला कर दिया। राधा का ऐसा हाल देखकर कई गोपियां भी उन्हें बचाने आईं लेकिन कान्हा के मित्रों से वे भी नहीं बच पाईं। कान्हा और उनके मित्रों ने राधा और गोपियों पर तरह-तरह के रंग डाल दिए तो बदले में गोपियों ने उन पर माखन, पानी इत्यादि से भरी हुई मटकियां फोड़ दीं। इसके बाद से इस दिन रंग वाली होली खेली जाने लगी।
जब श्रीकृष्ण नंदगांव छोड़कर मथुरा चले गए, उसके बाद भी श्रीकृष्ण की याद में होली उसी तरह मनाई जाती रही।
हर वर्ष होली वाले दिन नंदगांव के पुरुष बरसाना गांव में गोपियों संग होली खेलने जाते और वहां की गोपियां उन पर लट्ठ बरसातीं, तब से बरसाने की लट्ठमार होली भी बहुत प्रसिद्ध हो गई। कान्हा और राधा को होली के रंगों में चूर जब बाकी ब्रजवासियों ने देखा तो उन्हें भी बहुत आनंद आया।