एक नौजवान माफिया जिसने प्रदेश सरकार के नाक में दम कर दिया। दहशत ऐसी कि खिलाफ बोलना तो दूर…कोई उसकी बात तक नहीं कर सकता था। हम बात कर रहे हैं नब्बे के दशक के कुख्यात गैंगस्टर श्री प्रकाश शुक्ला की।
साल 1993…दोपहर ढल रही थी। स्कूल की घंटी के बाद 16 साल की एक लड़की किताबें सीने से लगाए घर की ओर बढ़ रही थी। तभी राकेश तिवारी नाम के शोहदे ने उससे छेड़खानी शुरू कर दी। लड़की किसी तरह खुद को छुड़ाकर भागी। आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे। घर पहुंचते ही वह अपने मास्टर पिता से लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़ी। कांपती आवाज में उसने पूरी बात बताई। इस पर पिता तिलमिला उठे और पुलिस के पास जाने लगे। इसी बीच बहन की बेइज्जती की बात उसके भाई तक पहुंच चुकी थी। वह सीधे राकेश तिवारी के सामने पहुंचा। कोई बहस नहीं, कोई चेतावनी नहीं। बस एक के बाद एक दिनदहाड़े राकेश तिवारी के सीने में गोली उतार दी। ये युवा कोई और नहीं श्री प्रकाश शुक्ला था।
गोरखपुर के मामखोर गांव में 1973 में एक सरकारी शिक्षक के घर जन्मा श्रीप्रकाश शुक्ला आगे चलकर पूर्वांचल का कुख्यात गैंगस्टर बना। पहलवानी में रुचि रखने वाले श्रीप्रकाश ने 1993 में अपनी बहन से छेड़छाड़ करने वाले राकेश तिवारी की हत्या की। राकेश तिवारी, पूर्वांचल के बाहुबली हरिशंकर तिवारी का कट्टर विरोधी और विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही का करीबी माना जाता था। इसी कारण अपराध की दुनिया में पहचान बनाने के लिए श्रीप्रकाश ने गोरखपुर में सबसे पहला हमला विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही पर किया। वीरेंद्र किस्मत से बच गए।
कुछ दिन बाद जब यह बात श्रीप्रकाश तक पहुंची, तो उसने एक बार फिर शाही को निशाने पर ले लिया। 31 मार्च 1997 को वीरेंद्र शाही इंदिरा नगर स्थित एक स्कूल के पास श्रीप्रकाश शुक्ला अपने साथियों के वीरेंद्र शाही की हत्या कर दी।
इसके कुछ ही महीनों बाद, 1 जुलाई 1997 को लखनऊ एक बार फिर गोलियों की आवाज से दहल उठा। हुसैनगंज के दिलीप होटल के कमरा नंबर 102 में श्रीप्रकाश शुक्ला अपने चार साथियों के साथ एके-47 लेकर घुसा। कमरे में मौजूद दो लोगों पर उसने ब्रस्ट फायरिंग शुरू कर दी। शुक्ला ने एक ही बार में एके-47 से 94 गोलियां दाग दीं। जब इससे भी उसका मन नहीं भरा, तो उसने 45 बोर की पिस्टल से 12 और गोलियां चला दीं। इस ताबड़तोड़ फायरिंग में एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दूसरा मरणासन्न हो गया। बाथरूम के दरवाजे को भेदती हुई तीन गोलियां उसके शरीर में लगीं। कमरे की फर्श और बेड खून से सन गए थे। इस हमले में मारा गया युवक ठेकेदार भानू प्रकाश मिश्रा था।
लखनऊ में हुए इन दोहरे हत्याकांडों ने श्रीप्रकाश को देश का मोस्ट वांटेड बना दिया। पूरे देश में उसके गैंग के सदस्य तैयार हो गए। इसी बीच, सनसनीखेज खबर फैली कि श्रीप्रकाश शुक्ला ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली है। इस खूंखार अपराधी को रोकने के लिए साधारण पुलिसिंग काफी नहीं थी। नतीजन, 4 मई 1998 को, आईपीएस अरुण कुमार की कमान में 50 तेज तर्रार जवानों की एक विशेष टीम बनाई गई, जिसका नाम रखा गया एसटीएफ (STF)-स्पेशल टास्क फोर्स। एसटीएफ टीम में शामिल आईपीएस अफसर रहे राजेश पांडेय ने अपने संस्मरण में इससे जुड़े कई किस्से बयान किए हैं।
राजेश पांडेय के मुताबिक, बिहार, यूपी और नेपाल में लगातार पुलिस की रेड से परेशान श्रीप्रकाश शुक्ला ने दिल्ली में छिपने की योजना बनाई। उसने अपने करीबी साथी अनुज की मदद से एक फ्लैट किराए पर लिया। पता चला कि फ्लैट के मालिक एक पूर्व प्रधानमंत्री के निजी सचिव रह चुके थे और दिल्ली में उनके कई फ्लैट थे। पहले वहां एक बैंक मैनेजर परिवार सहित रहता था, जिसका हिमाचल प्रदेश ट्रांसफर होने के बाद यह फ्लैट खाली पड़ा था। श्रीप्रकाश को लगा कि रसूखदार व्यक्ति का फ्लैट होने के कारण यहां पुलिस का शक कम जाएगा। उसने तय किया कि फ्लैट से कोई फोन कॉल नहीं की जाएगी। अनुज पांच मोबाइल और 12 प्री-एक्टिवेटेड सिम ले आया। कॉल करनी होती तो ये लोग 20–25 किलोमीटर दूर जाकर, रास्ते बदलते हुए चलती गाड़ी से बात करते थे।
इसी दौरान गोरखपुर में पुलिस ने श्रीप्रकाश के भाई और उसके परिवार को हिरासत में ले लिया। उसके साथी अनुज और सुधीर के परिवार तक भी पुलिस पहुंच गई। यह खबर मिलते ही श्रीप्रकाश बौखला गया और उसने सीधे डीजीपी को फोन कर धमकी दे दी, लेकिन बात नहीं बनी।
दिल्ली में एक दिन श्रीप्रकाश और उसके साथी उसी इलाके में निकल गए, जहां पहले उगाही की बात हुई थी। वहां पुलिस देखकर उन्हें शक हुआ कि मोबाइल कॉल से उनकी लोकेशन ट्रेस हो रही है। बाद में मयूर विहार के पास भी जब दुकानदार ने मोबाइल टावर को लेकर पुलिस के सवालों का जिक्र किया, तो उनका डर और गहरा गया। इतना सुनते ही सभी लोग फिर से गाड़ी में बैठे और वहां से निकल गए।
थोड़ी दूर जाकर उन्होंने एक जगह गाड़ी रोक दी। श्रीप्रकाश ने कहा कि पहले वह कलकत्ता वाले गुरुजी से बात करेंगे। राजेश पांडेय के मुताबिक, ये गुरुजी असल में एक तांत्रिक थे। श्रीप्रकाश परेशान होने या बहुत खुश होने पर अक्सर उनसे बात करता था। श्रीप्रकाश ने तांत्रिक को फोन किया और कहा कि वह बहुत परेशान है। उसने बताया कि वे जहां भी जाते हैं, वहां पुलिस पहुंच जाती है। ऐसा लग रहा है जैसे उनकी हर हरकत पर नजर रखी जा रही हो।
गुरु जी ने कहा, "मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि जितनी जल्दी हो सके, कामाख्या माता के चरणों में नरबलि का आंकड़ा पूरा करो। जब यह पूरा हो जाएगा, तब वहां जाकर माता को प्रणाम करना और रक्त अर्पित करना। उसके बाद तुम अजेय हो जाओगे, तुम्हें कोई हरा नहीं पाएगा। तुम्हें मौत का भी डर नहीं रहेगा।"
फिर तांत्रिक ने पूछा कि अब तक कितनी नरबलि दी जा चुकी है। श्रीप्रकाश ने कहा कि उसने गिनती नहीं की है। इस पर तांत्रिक ने कहा कि 101 का आंकड़ा पूरा करो, उसके बाद कोई डर नहीं रहेगा और कोई तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। इतना कहकर उसने फोन काट दिया।
फोन रखने के बाद श्रीप्रकाश ने अपने साथी अनुज और सुधीर से कहा कि गुरुजी ने अहम बात बताई है। उसने कहा कि अब वे बैठकर हिसाब लगाएंगे कि अब तक कितनी हत्याएं हो चुकी हैं और 101 तक पहुंचने के लिए कितनी करनी होंगी। उनका मानना था कि जैसे ही यह संख्या पूरी होगी, वे बिना डर आगे की योजना पर काम कर सकेंगे। इसके बाद वे दादा सूरजभान से मिलकर आगे का रास्ता तय करेंगे।
आखिरकार, कुछ ही समय बाद श्रीप्रकाश शुक्ला अपने साथियों के साथ गाजियाबाद में यूपी एसटीएफ के साथ हुई मुठभेड़ में मारा गया। उसी दिन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विधानसभा के विशेष सत्र में खड़े होकर श्रीप्रकाश शुक्ला के मारे जाने की आधिकारिक घोषणा की। एक पॉडकास्ट में राजेश पांडेय बताते हैं कि एनकाउंटर में मरने से पहले शुक्ला 86-87 मर्डर कर चुका था। उसने कुल 35 ब्राह्मणों की हत्या की थी।
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