Marburg Virus outbreak in Africa: मारबर्ग वायरस की मौत दर 88% तक पहुंच सकती है। जानें यह वायरस कहां से आया, कैसे फैलता है और क्यों दुनिया इसके प्रकोप से डरी हुई है।
Marburg Virus outbreak: इथियोपिया में पहली बार मारबर्ग वायरस का प्रकोप सामने आया है और हालात तेजी से चिंता पैदा कर रहे हैं। अब तक 5 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 10 लोग संक्रमित पाए गए हैं। इसके अलावा 3 और मौतों का शक है, लेकिन उनकी रिपोर्ट आना अभी बाकी है।
जैसे ही शुरुआती केस मिले, स्वास्थ्य विशेषज्ञ और मेडिकल टीमें तुरंत दक्षिणी इथियोपिया के उस इलाके में पहुंच गईं जहां यह संक्रमण फैल रहा है। चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि यह इलाका केन्या और साउथ सूडान की सीमा के पास है, जिससे जोखिम बढ़ जाता है कि अगर वायरस पर समय रहते काबू न पाया गया, तो यह पड़ोसी देशों तक भी पहुंच सकता है।
मारबर्ग वायरस एक खतरनाक हैमरेजिक फीवर (खून से जुड़ी गंभीर बीमारी) फैलाने वाला वायरस है, जो फ्रूट बैट्स (फलों पर रहने वाली चमगादड़) से इंसानों में फैलता है। यह वायरस पहली बार उन लोगों में पाया गया था जो गुफाओं और खदानों में चमगादड़ों के संपर्क में आए थे। एक बार इंसान संक्रमित हो जाए, तो यह बीमारी शरीर के तरल पदार्थों के जरिए दूसरों में फैलती है, जैसे पसीना, खून, उल्टी, लार आदि। इसलिए मरीज के नजदीक रहने वाले लोग जैसे डॉक्टर, नर्स, परिवार के सदस्य या अंतिम संस्कार की तैयारी करने वाले लोग सबसे ज्यादा जोखिम में होते हैं।
मारबर्ग वायरस, अपने लक्षणों और खतरों के कारण, एबोला माना जाता है। इसकी मृत्यु दर 50% से लेकर 88% तक हो सकती है, यानी 10 संक्रमित लोगों में 8 तक की मौत का खतरा रहता है। इसके लक्षण आमतौर पर तेज बुखार, गंभीर कमजोरी, शरीर में दर्द, उल्टी-दस्त, आंतरिक खून बहना अब तक इस वायरस की कोई मंजूरशुदा वैक्सीन या दवा उपलब्ध नहीं है, हालांकि कुछ वैक्सीन टेस्टिंग स्टेज में हैं और आपात स्थितियों में इस्तेमाल हो सकती हैं।
यह वायरस पहले भी अफ्रीका के कई देशों में कहर बरपा चुका है। पिछले साल रवांडा में मारबर्ग वायरस के 66 केस मिले थे, जिनमें 15 लोगों की मौत हो गई थी। इससे पहले 2023 में इक्वेटोरियल गिनी में 40 लोग संक्रमित हुए और उनमें से 35 की जान चली गई। सबसे भयानक प्रकोप 2004 से 2005 में अंगोला में देखा गया, जहां 252 संक्रमितों में से 227 लोग नहीं बच पाए। अब तक यह बीमारी डीआर कांगो, युगांडा, गिनी, घाना, तंजानिया और रवांडा जैसे अफ्रीकी देशों तक सीमित रही है, लेकिन इसकी हाई मौत दर ने दुनिया भर में चिंता बढ़ा दी है। इतिहास में अब तक 500 से ज्यादा लोगों की मौत इस वायरस से हो चुकी है।
मारबर्ग वायरस पहली बार 1967 में जर्मनी और सर्बिया की प्रयोगशालाओं में सामने आया था। माना जाता है कि यह अफ्रीकी ग्रीन मंकी से इंसानों में पहुंचा। यह कोरोना की तरह हवा से नहीं फैलता, बल्कि संक्रमित व्यक्ति के खून या शरीर के तरल पदार्थ के संपर्क से फैलता है। यही वजह है कि इसे बेहद खतरनाक माना जाता है।