IIT Indore : अब बिजली बनाने में न सूरज की जरूरत, न बैटरी का इस्तेमाल और ना ही कोई समस्या। आईआईटी इंदौर ने बना दिया ऐसा उपकरण, जो सिर्फ पानी और वाष्पीकरण से बना देगा बिजली।
IIT Indore : मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी (आईआईटी) अपनी तकनीकी क्षमता और नई खोजों के चलते देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध और चर्चित रहता है। इंदौर आईआईटी की चर्चा एक बार फिर हुई है। इस बार जो खोज यहां की गई है, वो आने वाले समय में ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम साबित हो सकती है। यहां के प्रोफेसरों की निगरानी में छात्रों ने ऐसा उपकरण तैयार किया है, जो सूरज की रोशनी के बिना, किसी भी प्रकार की बैटरी या किसी अन्य मशीन के बिना ही बिजली उत्पादन करने में सक्षम है। बिजली उत्पादन के लिए इस उपकरण को सिर्फ पानी और हवा की आवश्यक्ता होगी। यानी ये सिर्फ इन दो चीजों की सहायता से बिजली पैदा करता है।
आईआईटी इंदौर की सस्टेनेबल एनर्जी एंड एन्वायरन्मेंटल मटेरियल्स लैब में तैयार इस उपकरण को खास तरह के मेम्ब्रेन से बनाया गया है। इसमें ग्रैफीन ऑक्साइड और ज़िंक-इमिडाज़ोल नामक पदार्थ का इस्तेमाल हुआ है। जब इस मेम्ब्रेन को पानी में आंशिक रूप से डुबो दिया जाता है तो पानी धीरे-धीरे ऊपर की ओर चढ़ने लगता है और वाष्पित होता है। इसी प्रक्रिया के दौरान मेम्ब्रेन के दोनों सिरों पर पॉजिटिव और नेगेटिव आयन अलग हो जाते हैं और वहां से स्थिर बिजली पैदा होने लगती है।
इतना ही नहीं, यह उपकरण साफ पानी के साथ-साथ खारे या गंदे पानी में भी लंबे समय तक काम करता रहता है। परीक्षण के दौरान पाया गया कि सिर्फ तीन गुणा दो सेंटीमीटर के एक छोटे से मेम्ब्रेन से 0.75 वोल्ट तक बिजली पैदा की जा सकती है। अगर ऐसे कई मेम्ब्रेन को जोड़ा जाए तो बिजली की मात्रा और बढ़ाई जा सकती है। यही वजह है कि इसे उन जगहों पर बेहद उपयोगी माना जा रहा है, जहां बिजली आसानी से उपलब्ध नहीं होती। जंगलों और खेतों में लगे सेंसर हों, ब्लैकआउट के समय रोशनी की जरूरत हो या फिर दूर-दराज़ के क्लीनिकों में छोटे मेडिकल उपकरणों को चलाना हो, यह तकनीक हर स्थिति में मददगार साबित हो सकती है।
इसकी सबसे बड़ी खूबी तो ये है कि, ये हल्का है, आसानी से कहीं भी ले जाने में बेहद आसान है। घर के अंदर या बाहर, दिन और रात हर समय काम करने में भी सक्षम है। आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास जोशी के अनुसार, जल वाष्पीकरण जैसी सामान्य प्रक्रिया को ऊर्जा उत्पादन का साधन बनाना समाज के लिए बड़ा योगदान है। उनका मानना है कि यह तकनीक ग्रामीण और वंचित इलाकों में जीवन को आसान बना सकती है और स्वच्छ ऊर्जा का नया रास्ता दिखाती है।
वहीं इस शोध का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर धीरेंद्र राय का कहना है कि ये ऐसा सेल्फ-चार्जिंग स्रोत है, जो पानी और हवा से चलता है। जब तक वाष्पीकरण जारी रहेगा, ये उपकरण लगातार शांत तरीके से बिजली बनाता रहेगा। उनकी टीम अब इसे और सस्ता और बड़े पैमाने पर बनाने की दिशा में काम करने जा रही है, ताकि इस तकनीक को जल्द से जल्द देश के उन गांवों तक पहुंचाया जा सके जहां अबतक मौजूदा बिजली पहुंचा पाना संभव नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि, भविष्य में इस उपकरण का इस्तेमाल और भी रोचक तरीकों से किया जा सकेगा।
शोधकर्ताओं की मानें तो आने वाले समय में ये तकनीक ऊर्जा बनाने वाले स्मार्ट कपड़ों या खुद से चलने वाली दीवारों जैसी नई संभावनाओं के रूप में भी सामने आ सकती है। ये खोज साफ दिखाती है कि, भारतीय वैज्ञानिक अब ऐसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं, जो सीधे तौर पर लोगों की जिंदगियों में बदलाव लाने का कारण है।