जबलपुर

MP High Court: पुलिसकर्मियों को कान पकड़ उठक-बैठक लगवाने वाले बर्खास्त जज की याचिका खारिज

MP High Court: मध्य प्रदेश के जबलपुर का मामला, सिविल जज कौस्तुभ खेड़ा ने कोर्ट रूम में पुलिसकर्मियों और वकीलों को कान पकड़कर लगवाई थी उठक-बैठक, इसके बाद किया गया था बर्खास्त,...

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May 27, 2025
MP High Court

MP High Court: हाईकोर्ट ने कोर्ट रूम में पुलिसकर्मियों और वकीलों को कान पकड़कर उठक-बैठक कराने और मातहतों को दौड़ाने वाले सिविल जज कौस्तुभ खेड़ा की बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखा। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच ने उनकी बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका निरस्त कर दी। कोर्ट ने साफ किया कि बर्खास्तगी अनुशासनात्मक कार्रवाई के आधार पर नहीं, परिवीक्षा के दौरान असंतोषजनक प्रदर्शन के आधार पर की गई थी। उन पर मामलों के निपटारे में आलस्य बरतने का आरोप लगा था।

कोर्ट ने कहा कि कदाचार के लिए दंडात्मक कार्रवाई करना एक बात है, परिवीक्षा अवधि में प्रदर्शन के आधार पर यह संतुष्टि प्राप्त करना कि अधिकारी उपयुक्त अधिकारी बनेगा या नहीं, अलग बात है। दोनों में बहुत अंतर है।

त्रि-स्तरीय प्रक्रिया

खेड़ा 2019 में न्यायिक अधिकारी नियुक्त हुए। आलीराजपुर के जोबट में पदस्थ थे। यहीं उनके खिलाफ मातहतों से अनुचित व्यवहार करने, वकीलों और पुलिस कर्मियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई के नोटिस जारी किए। ८ अगस्त 2024 को हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति की अनुंशसा व 20 अगस्त को फुल कोर्ट के अनुसमर्थन के बाद सरकार ने ५ सितंबर को सेवा से मुक्त किया। याचिकाकर्ता का तर्क था, सेवा काल में एसीआर में अच्छे रिमार्क मिले, फिर भी दंडित कर सेवा से पृथक किया। कोर्ट ने कहा, यह दंडात्मक कार्रवाई नहीं थी, बल्कि इस आकलन पर कार्रवाई की, कि वह कार्य के अनुकूल हैं या नहीं।

खेड़ा की याचिका खारिज

वर्तमान मामले में, यह उपरोक्त आदेशों और प्रस्तावों से विधिवत स्थापित होता है कि याचिकाकर्ता को बिल्कुल भी दंडित नहीं किया गया है और न ही निर्वहन आदेश, किसी भी दृष्टिकोण से, दंडात्मक प्रकृति का है। यह प्रक्रियागत था और उसी क्रम में आगे कार्रवाई की। कोर्ट ने कहा, पूर्व आदेश में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। इसी के साथ खेड़ा की याचिका खारिज कर दी।


Updated on:
27 May 2025 08:12 am
Published on:
27 May 2025 08:11 am
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