Tea Paper Cups : शहर में चाय के शौकीनों की संख्या लाखों में है। यहां हर गली, मोहल्ले से लेकर मुख्य बाजारों तक और शॉपिंग मॉल्स में चाय की दुकानें मिल जाएंगी।
Tea Paper Cups : शहर में चाय के शौकीनों की संख्या लाखों में है। यहां हर गली, मोहल्ले से लेकर मुख्य बाजारों तक और शॉपिंग मॉल्स में चाय की दुकानें मिल जाएंगी। जहां हजारों कप चाय रोजाना चाय पी जाती है। ये चाय अब स्टील, चीनी मिट्टी के कप और कांच के गिलास की अपेक्षा कागज के कप में ’यादा दी जाती है। यह चलन कोरोना काल से शुरू हुआ है जो अब आदत में शामिल हो गया है। दुकानदार भी धोने मांजने से बचने के लिए सिंगल यूज कागज के कप का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन एक रिसर्च के अनुसार कागज के कप में चाय पीना कैंसर जैसी बीमारी को न्यौता देने के बराबर है। इसी आधार पर भोपाल सीएमएचओ ने जनता से अपील करते हुए कागज के बजाए स्टील, चीनी मिट्टी के कप, कुल्हड़ और कांच के गिलासों में चाय पीने की अपील की है।
कागज के कप का इस्तेमाल बढऩे के साथ ही इसके खतरे भी सामने आने लगे हैं। आईआईटी खडग़पुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और उनकी टीम ने शोध में पाया कि पेपर कप में तरल पदार्थ को लीक होने से बचाने के लिए पतली हाइड्रोफोबिक फिल्म का उपयोग किा जा रहा है। यह गर्म चाय के संपर्क में आने पर टूटने लगती है। चूंकि ये फिल्म पॉलीइथिलीन या अन्य को-पॉलिमर से बनी होती है और जब इसमें गर्म पानी या चाय डाली जाती है तो ये सूक्ष्म कणों में बदलकर उसमें घुल जाती है।
आईआईटी खडग़पुर के शोधकर्ताओं के अनुसार डिस्पोजेबल पेपर कप में डाली गई गर्म चाय या कॉफी में लगभग 25 हजार माइक्रो प्लास्टिक कण मिल जाते हैं। यदि दिन में तीन कप चाय पी गई तो लोग जाने अनजाने में 75 हजार माइक्रो प्लास्टिक के कण पी जाता है। जो आंखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन शरीर में प्रवेश कर कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये न केवल शरीर के लिए हानिकारक हैं, बल्कि कैंसर, हार्मोनल और नर्वस सिस्टम से जुड़ी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
कोरोना काल से पहले होटल और रेस्टोरेंट में स्टील के कप, कांच के गिलास इस्तेमाल किए जाते थे, लेकिन अब कांच के गिलास गायब हो गए हैं। सिरेमिक (चीनी मिट्टी) कप भी बहुत कम देखने को मिल रहे हैं। इनके स्थान पर डिस्पोजेबल कागज के कप का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। सडक़ किनारे चाय की दुकानों पर भी कागज के कप इस्तेमाल किए जा रहे हैं। जानकारी के अनुसार जिले में सिंगल यूज कागज के कप की इतनी डिमांड हो गई है कि अब बमुश्किल दस प्रतिशत दुकानों पर ही कांच के गिलास, चीनी मिट्टी कप और कुल्हड़ में चाय मिल रही है, बाकी 90 प्रतिशत दुकानों में सिंगल यूज कागज के कप उपयोग किए जा रहे हैं।
थोक सिंगल यूज कागज कप व्यापारियों के अनुसार जिले में हर दिन करीब 8 से 9 लाख कागज के कप की खपत होती है। एक छोटे से छोटा दुकानदार भी 500 कप दिन भर में खपत कर देता है। इसकी मुख्य वजह ये सस्ते होने के साथ उपयोगी भी हैं।
सीएमएचओ डॉ. शर्मा ने बताया बहुत से कागज के कपों में प्लास्टिक,कैमिकल कोटिंग होती है। जो एक तरह से अदृश्य होती है। हालांकि कुछ इनके बिना भी आते हैं। लेकिन दोनों को पहचानना मुश्किल होता है। इसलिए भोपाल सीएचएचओ ने यह अपील की है। चाय के लिए सबसे सेफ कुल्डड़, चीनी मिट्टी या स्टील के कप सहित कांच के गिलास हैं। इनके अलावा पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से कागज के कप का ’यादा उपयोग हानिकारक है। ऐसे में यहां भी लोगों को समझना चाहिए कि कागज के कप की अपेक्षा वे पारंपरिक कप का उपयोग करें।