CG News: आदिवासी अब आर पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं। मुआवजा देने में एनएमडीसी ने रुचि नहीं दिखाई, जिसके चलते पिछले तीन दिनों से आदिवासी ग्रामीण विश्राम भवन में डेरा जमाए हैं।
CG News: पिछले तीन दिनों से आदिवासी ग्रामीणों का समूह विश्राम भवन में डेरा जमाए हुए है, और अब वे आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं। पहाड़ी पार के लाल पानी प्रभावित आदिवासी ग्रामीणों का कहना है कि यदि रविवार को मुआवजे की पहली किश्त नहीं दी जाती, तो वे एनएमडीसी की दोनों परियोजनाओं के चेक पोस्ट पर धरना देने के लिए तैयार हैं और आंदोलन में बैठेंगे।
आदिवासी महासभा और बस्तर राज मोर्चा के संस्थापक सदस्य सुदरु कुंजाम ने कहा कि विगत 28 सितंबर को आयोजित एक दिवसीय धरने और बचेली एनएमडीसी चेकपोस्ट के घेराव के बाद एनएमडीसी ने मुआवजा देने का वादा किया था। उन्होंने बताया कि 4 दिन बाद जब वे एनएमडीसी से बातचीत करने पहुंचे, तो 2 अक्टूबर और बुधवार की छुट्टी होने का हवाला देते हुए कोई भी अधिकारी नहीं मिले।
कुंजाम ने कहा, हमने रविवार तक का अल्टीमेटम देकर पहाड़ी पार के चार गांव डुमरीपालनार, दुगाल, करका, हिरोली गांव के लगभग 200 लोग आदिवासी भवन में रुककर CG News एनएमडीसी के प्रस्ताव का इंतज़ार करते रहे पर कोई भी अब तक मुआवजा के संबंध में चर्चा करने नहीं आया।
यदि रविवार को एनएमडीसी मुआवजे की पहली किश्त का वितरण नगद या सेल्फ चेक के रूप में नहीं करता, तो हम हजारों की संख्या में धरना देंगे और परियोजना को बंद करने के लिए आगे बढ़ेंगे। उन्होंने आगे कहा कि शासन-प्रशासन ने दंतेवाड़ा जिले के प्रभावितों को मनमाने तरीके से मुआवजे की राशि दी है, जिसका कोई आधार नहीं है। इस बार, मुआवजा निर्धारण के मानदंड भी प्रशासन को बताने होंगे।
मोटी पुनेम (हिरोली गांव): लाल पानी हमारे लिए अभिशाप बना हुआ है। इससे पीड़ित लोगों को उपचार तक नहीं मिल पाता। उपचार के लिए मरीज को कावड़ बनाकर पहाड़ी चढ़ानी पड़ती है। अकाशनगर से बचेली ले जाना पड़ता है इतने समय में तो व्यक्ति दम तोड़ देता है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एनएमडीसी की स्थापना के बाद से पहाड़ी पार बीजापुर जिले के इन गांवों में लाल पानी का विपरीत प्रभाव पड़ा है, लेकिन आज तक इन ग्रामीणों को कोई मुआवजा नहीं मिला है। CG News आदिवासी ग्रामीण अपनी आपबीती साझा करते हुए कहते हैं कि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है।
CG News: अर्जुन कर्मा (दुगाल गांव): हमारे मवेशी लोहे चूर्ण के खीचड़ में फंसकर मर जाते है पहाड़ी से आनेवाली लौह अयस्क के तेज़ बहाव में हमारे गांव के कोसा कर्मा की मौत 2016 में हो गई थी । हम गांव वाले मिलकर हर वर्ष इलाके में मेहनत कर खेतों की सफाई करते है पर उसमें अनाज नहीं उग पता और फिर से लाल कीचड़ आ जाता है ।
लच्छु ताती (करका गांव): गांव में पीने का पानी तक नहीं हैं हम उसी गुमरका नदी में लौहाअयस्क मिले लाल पानी को पीने मजबूर हैं।
अर्जुन पुनेम, (डुमरीपालनार गांव): हर वर्ष 3 से 4 माह लाल पानी का तेज बहाव हमारे खेतों को नष्ट करता आ रहा है पर आज तक कोई भी हमारी सुध नही लेता।