एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की सांभर झील एक बार फिर गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है।
जयपुर। एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की सांभर झील एक बार फिर गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है। विदेशी प्रवासी पक्षियों की मौत का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब नावां उपखंड मुख्यालय से सटे मोहनपुर क्षेत्र में झील किनारे सैकड़ों मृत मछलियां मिलने से हड़कंप मच गया। आज सुबह ग्रामीणों की सूचना पर वन विभाग और पशु चिकित्सालय विभाग की टीमें मौके पर पहुंचीं। प्रारंभिक जांच में पानी के बढ़ते प्रदूषण और खारापन के तेज बढ़ाव को मुख्य कारण माना गया है।
सुबह झील पर पहुंचे पशु चिकित्सालय विभाग के डॉ. मोतीराम कुमावत ने बताया कि झील किनारे कुल 756 मृत मछलियां मिली हैं। इनमें अधिकांश मीठे पानी की प्रजाति थी। उनका कहना है कि बारिश के दौरान झील में मीठा पानी मिलने से यह प्रजातियां तेजी से बढ़ी थी, लेकिन अब जलस्तर घटने और नमक की मात्रा में असामान्य वृद्धि के कारण ये मछलियां मरने लगी हैं।
डॉ. कुमावत ने बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि झील में बोटूलिज्म और टॉक्सिन की आशंका भी सामने आई है। यह वही रसायन है, जिसे सांभर झील में कुछ साल पहले हजारों प्रवासी पक्षियों की मौत का कारण माना गया था। उनका कहना है कि रिफाइनरी और औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाला रासायनिक कचरा ऐसे टॉक्सिन पैदा कर सकता है। अगर पानी ऐसे ही घटता रहा और प्रदूषण का स्तर बढ़ता गया तो मछलियों के साथ-साथ पक्षियों पर भी इसका भारी असर पड़ेगा।
नावां एसडीएम दिव्या सोनी ने बताया कि मछलियों की मौत की सूचना मिलते ही वन विभाग, पशु चिकित्सालय विभाग और प्रशासन की टीमें मौके पर भेज दी गई। झील के आसपास गश्त बढ़ा दी गई है ताकि किसी और खतरे को रोका जा सके। पानी के नमूने प्रयोगशाला भेजे जा चुके हैं, जिनकी रिपोर्ट के बाद वास्तविक कारण स्पष्ट होगा। साथ ही मृत मछलियों को वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारित कराया जा रहा है, ताकि संक्रमण या अन्य प्रभाव झील क्षेत्र में न फैले। ग्रामीणों का कहना है कि झील का जलस्तर लगातार कम हो रहा है। उद्योगों का रासायनिक कचरा, अवैध नमक उत्पादन और प्राकृतिक जलस्त्रोतों का घटता प्रवाह झील को लगातार खतरे में डाल रहा है।