जयपुर

Rajasthan News: लाक्षागृह बना रहे बस बॉडी बिल्डर, बोले- जैसा चाहोगे, वैसा बना देंगे… RTO में भी सब हो जाएगा, कोई दिक्कत नहीं होगी

जयपुर सहित कई जिलों में बसों की बॉडी में बदलाव इस कदर आम हो गए है कि लगता है परिवहन विभाग का काम बस 'कागज पर साइन कर देना' ही रह बस गया है। लाइसेंसधारी और गैर-लाइसेंसधारी संचालक अपनी मनमर्जी से बसे मॉडिफाई कर रहे हैं और यात्रियों की जान विभाग के लिए केवल 'साइड इफेक्ट' बनकर रह गई है।

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Oct 17, 2025
बसों में नियम विरुद्ध बदलाव करते बस बॉडी बिल्डर, पत्रिका फोटो

जयपुर सहित कई जिलों में बसों की बॉडी में बदलाव इस कदर आम हो गए है कि लगता है परिवहन विभाग का काम बस 'कागज पर साइन कर देना' ही रह बस गया है। लाइसेंसधारी और गैर-लाइसेंसधारी संचालक अपनी मनमर्जी से बसे मॉडिफाई कर रहे हैं और यात्रियों की जान विभाग के लिए केवल 'साइड इफेक्ट' बनकर रह गई है।

राजस्थान पत्रिका की पड़ताल में इस मामले के कई चौकाने वाले पहलू सामने आए। जैसलमेर हादसे के बाद पत्रिका संवाददाता जब बॉडी बिल्डर के पास बस संचालक बनकर गया, तो बॉडी बिल्डर ने साफ कह दिया कि बस की डिजाइन दे देना, जैसा चाहोगे वैसा ही बदलाव कर देंगे। जब कोई बस की बॉडी बनवाता है, तो मालिक को बिल के साथ यह दस्तावेज दिया जाता है कि बॉडी किस श्रेणी में बनाई गई है।

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मॉडल के हिसाब से सब बदल जाएगा

  • रिपोर्टर: नई बस को मॉडिफाई करवाना चाहते हैं।बॉडी बिल्डर मॉडल के हिसाब से सब बदल जाएगा। रिपोर्टरः सीटें बढ़ानी होगी।बॉडी बिल्डर- मॉडल देखना पड़ेगा, उसी हिसाब से बढ़ा देंगे। रिपोर्टरः डिक्की भी लग सकती है क्या?बॉडी बिल्डर- मॉडल बताओ और वाहन यहां ले आओ, लगा देंगे। रिपोर्टर: आरटीओ से कोई दिक्कत नहीं होगी?बॉडी बिल्डर- नहीं, सब हो जाएगा, कोई दिक्कत नहीं है।

लाइसेंस 12 के पास, बना रहे 400

जयपुर सहित प्रदेश में करीब 400 से अधिक कारखानों में बसों की बॉडी बनाई जाती है। इसमें एसी और नॉन एसी दोनों ही बसें शामिल हैं। इनमें से केवल 10 से 12 कारखाने केंद्र की गाइडलाइन के अनुसार सभी प्रकार के लाइसेंसधारी हैं। शेष एक्रीडिटेशन' के नाम पर दुकानें चला रहे हैं। इन कारखानों की अब तक किसी एजेंसी ने जांच नहीं की है। जयपुर शहर में करीब 8 कारखाने पूरी तरह से लाइसेंसधारी हैं, शेष झोलाछाप तरीके से काम कर रहे हैं।

तीन एजेंसियां देती हैं लाइसेंस

बसों की बॉडी बनाने के लिए तीन एजेंसियां लाइसेंस जारी करती हैं:

  1. आइकेईटी, मानेसर, गुरुग्राम
  2. सीआइआरटी, पुणे
  3. एआइआर, पुणे

तीन तरह का होता लाइसेंस

एआइएस 052: नॉन एसी बसों के लिए
एआइएस 119: एसी बसों के लिए
एआइएस 153: नया कोड, जिसमें सेंसर के जरिए फायर सिस्टम कंट्रोल और इंजन के चारों ओर फायर सिस्टम शामिल है
नहीं है जानकारी

ऐसी होती है आदर्श बस, मापदंड पूरे करना जरूरी

कंपनी की ओर से पूरी बस तैयार की जाती है, जिसमें एआइएस (ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड) 153 लागू होता है। इसके अलावा कंपनी चेसिस करती है, जिसमें परिवहन विभाग के अधिकृत बॉडी बिल्डर ही बॉडी तैयार करते हैं। नियमों के अनुसारः
वाहन का 60 फीसदी से अधिक ओवरहेंग नहीं होना चाहिए।
छत पर लगेज करियर नहीं होना चाहिए।
एआइएस 119 के तहत स्लीपर कोच में चार आपातकाल गेट होने चाहिए।
बस के पीछे इमरजेंसी गेट होना चाहिए, ऊंचाई 1250 और चौड़ाई 550 मिमी।
ड्राइवर साइड में एक आपातकाल गेट बीचों-बीच होना चाहिए।
फायर अलार्म सिस्टम अनिवार्य है।
एआइएस 52 के तहत दो गेट छत पर होने चाहिए।
स्लीपर की लंबाई न्यूनतम 1800 मिमी, फर्श से ऊंचाई 200-350 मिमी, और ऊपर स्लीपर की छत से ऊंचाई 800 मिमी।
यशपाल शर्मा, परिवहन निरीक्षक और सर्टिफाइड रोड सेफ्टी ऑडिटर

इनका कहना है

कुछ लोग खेतों में कारखाने खोल चुके हैं और अभी तक इन कारखानों की किसी भी एजेंसी ने जांच नहीं की। -महावीर प्रसाद, सचिव, ऑल राजस्थान बस-ट्रक बॉडी बिल्डर एसोसिएशन

Published on:
17 Oct 2025 09:10 am
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