राजधानी जयपुर में बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) जनता के काम नहीं आया। जबकि, इस 170 करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन कनेक्टिविटी के अभाव में कॉरिडोर ने दम तोड़ दिया। यही हाल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और इंदौर का भी है। भोपाल में 400 करोड़ और इंदौर में कॉरिडोर विकसित करने पर 360 […]
राजधानी जयपुर में बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) जनता के काम नहीं आया। जबकि, इस 170 करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन कनेक्टिविटी के अभाव में कॉरिडोर ने दम तोड़ दिया। यही हाल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और इंदौर का भी है। भोपाल में 400 करोड़ और इंदौर में कॉरिडोर विकसित करने पर 360 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। यानी दो राज्यों के तीन बड़े शहरों में 930 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं, पड़ोसी राज्य गुजरात के अहमदाबाद और सूरत के बीआरटीएस में बसें सरपट दौड़ रही हैं।
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जयपुर: सीकर रोड पर हटना शुरू
वर्ष 2008 में जयपुर की सीकर रोड और न्यू सांगानेर रोड पर कॉरिडोर बनाने काम शुरू हुआ। जयपुर सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड आज तक यहां बसों का व्यवस्थित संचालन नहीं कर पाया। अव्यवस्थित कॉरिडोर में हादसे खूब हुए। ऐसे में स्थानीय लोग इसे बंद करने की मांग करने लगे। पिछले कुछ वर्ष से कॉरिडोर हटाने की बात सरकार स्तर तक हुई। बीते दिनों राज्य सरकार ने इसे हटाने का फैसला कर लिया। सीकर रोड पर इसे हटाना भी शुरू कर दिया।
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सूरत: सभी ई-बसें चल रहीं
सूरत का बीआरटीएस देश का पहला बीआरटीएस है, जिसकी सभी बसें इलेक्ट्रिक हैं।
रूट की लम्बाई: 110.74 किमी
रूट की संख्या: 26
इन रूट पर प्रतिदिन 353 बसें संचालित होती हैं, जो 4500 फेरे करती हैं। प्रतिदिन 20,000 यात्री सफर करते हैं।
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सफलता: ये कारण बताए
-कॉरिडोर को लोगों और पर्यटकों की जरूरत के हिसाब बनाया गया है।
-तड़के 4 बजे से रात 12 बजे तक बसों का संचालन होता है।
-शहर के प्रमुख क्षेत्रों को जोड़ता है।
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अहमदाबाद: बन गया जनमार्ग
बीआरटीएस को जनमार्ग के रूप में जाना जाता है।
रूट की लम्बाई: 160 किमी
रूट की संख्या: 18
इन रूट पर प्रतिदिन 380 बसों का संचालन होता है। इनमें से 150 इलेक्ट्रिक बसें हैं। रोजाना 2.20 लाख यात्री सफर करते हैं।
सफलता: ये कारण बताए
-पीक आवर्स के दौरान बसों की हाई फ्रीक्वेंसी रहती है।
-एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन से सीधा जुड़ाव है।
-बसों में जीपीएस के साथ रीयल-टाइम ट्रैकिंग का भी लाभ लेते हैं।
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भोपाल-इंदौर: चला नहीं पाए
भोपाल और इंदौर में कॉरिडोर प्रोजेक्ट पूरी तरह फेल हो गया है। भोपाल में तो इसे तोड़कर सामान्य सड़क बना दिया गया है। वहीं, इंदौर में भी इसे तोड़ा जा रहा है। रोड के बीच में बस की डेडिकेटेड लेन एक बड़ा मुद्दा बनी। मुख्य सड़क पर इसे जाम की वजह माना गया। विरोध किया और अंतत: सरकार ने इसे हटाने का फैसला किया।
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