जयपुर

कूचा से किसानों को डबल फायदा… मेड़ का काम करने के साथ ही बनते हैं चारपाई, छप्पर और छाजला

चौसला (नागौर) क्षेत्र में खेतों व मेड़ पर उगने वाली मुंजा घास, जिसे लोकल भाषा में 'कूचाÓ कहते हैं, आमदनी का स्रोत बन रहा है। यह एक तरह की खरपतवार ही होती है। इससे उतरने वाले डंकल व पान्नी से छप्पर, झोंपे सहित विभिन्न वस्तुएं बनाई जाती हैं। इस वजह से किसानों को अच्छी कमाई हो रही है। मेड़ पर कूचे लगाने से किसानों को डबल फायदा मिलता है, मेड़ भी सुरक्षित और दूसरा इनसे होने वाली आमदनी। इसका खाद भी बनाया जाता है। प्रदेश के नागौर, डीडवाना - कुचामन, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, पाली, जालोर, सीकर, चूरू जिलों में कूचों का विशेष महत्व है।

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Jun 15, 2024

चौसला (नागौर) क्षेत्र में खेतों व मेड़ पर उगने वाली मुंजा घास, जिसे लोकल भाषा में 'कूचाÓ कहते हैं, आमदनी का स्रोत बन रहा है। यह एक तरह की खरपतवार ही होती है। इससे उतरने वाले डंकल व पान्नी से छप्पर, झोंपे सहित विभिन्न वस्तुएं बनाई जाती हैं। इस वजह से किसानों को अच्छी कमाई हो रही है। मेड़ पर कूचे लगाने से किसानों को डबल फायदा मिलता है, मेड़ भी सुरक्षित और दूसरा इनसे होने वाली आमदनी। इसका खाद भी बनाया जाता है। प्रदेश के नागौर, डीडवाना - कुचामन, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, पाली, जालोर, सीकर, चूरू जिलों में कूचों का विशेष महत्व है।


फुट के हिसाब से मजदूरी
इनसे बने छप्परों में गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्माहट का अहसास होता है। बुजुर्गों ने बताया, कूचों की पान्नी से झोंपा बनाने में काफी मेहनत लगती है। कुशल कारीगर इसे बनाने के फुट के हिसाब से मजदूरी लेते हैं।
झोला हवा से बचाती है मुंजा घास
यह घास (कूचा) लंबी और मजबूत होती है। इसे मेड़ पर लगाने से झोला हवा से फसल का बचाव होता है, साथ ही खेत से मिट्टी कटाव भी रुक जाता है। इसे जुलाई माह में रेतीली मिट्टी, नदी नालों के किनारे और हल्की मिट्टी वाले इलाके में आसानी से उगाया जा सकता है। घास की रोपाई के लिए एक फीट गहरा, एक फीट लम्बा और एक फीट चौड़ा गढ्डा खोदना जरूरी है। पौधे लगाने के बाद उन्हें दो महीने तक पशुओं की चराई से बचाना चाहिए। जल्दी विकास के लिए समय-समय पर पानी अवश्य दें। इससे पौधे हरे और स्वस्थ रहते हैं। वैज्ञानिक तरीके से मुंजा घास को एक बार लगाने के बाद चार दशक तक कमाई होती है।

  • भंवरलाल शर्मा, सेवा निवृत्त सहायक निदेशक कृषि विस्तार, कुचामनसालभर में एक बार कटाईवैसे कूचे प्रकृति की देन हैं, जो जंगल, नदी किनारे व खेतों में अपने आप उगते हैं, लेकिन किसान इन्हे खेत की मेड़ को मजबूत करने के लिए रोपते हैं। इनकी जड़ें लंबी होने से मिट्टी का कटाव नहीं होता। सालभर में एक बार इनकी कटाई होती है।इस समय करें रोपाईकूचों की रोपाई बरसात आने से पहले की जाती है। सालभर में यह आठ से १० फीट तक बढ़ जाते हैं। अक्टूबर- नवम्बर में इनकी कटाई की जाती है। एक बार लगाने के बाद सालों तक इससे डंकल व पान्नी उतरती है। पान्नी के छप्पर बनाना बहुत महंगा पड़ता है। इस कारण इससे किसानों को अच्छी खासी कमाई हो जाती है।कूचों से बनने वाले उत्पादकूचों के डंकल से पशुओं को चारा डालने का खरोल्या (खारी), चारपाई, बीज साफ करने के लिए छाजला, रस्सी, बच्चों का झूला, झोपड़ी, बैठने का मूडा आदि कई वस्तुएं बनाई जाती हैं। पान्नी से झाडू व रस्सी बनाई जाती है। इन वस्तुओं को खासकर वाल्मीकि और ग्वारियां समाज के लोग बनाते है। - मोतीराम प्रजापत
Published on:
15 Jun 2024 01:21 pm
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