Garlic Cultivation : लहसुन की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है, बशर्ते वैज्ञानिक तरीकों और कुछ महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें।
Garlic Cultivation : नकदी फसलों में से एक लहसुन की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है, बशर्ते वैज्ञानिक तरीकों और कुछ महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें। विशेषज्ञों के अनुसार सही जलवायु, मिट्टी, उन्नत किस्मों और उचित प्रबंधन से किसान लहसुन की बंपर पैदावार ले सकते हैं।
लहसुन की बुवाई के लिए रेतीली दोमट से लेकर मध्यम काली, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है, जिसका पीएच मान 6.0 से 7.0 के बीच हो। खेत की गहरी जुताई कर उसे भुरभुरा बनाना और अंतिम जुताई में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद मिलाना जरूरी है।
एग्रीफाउंड सफेद जी-41, यह किस्म 160 से 165 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर औसत उपज 125 से 130 क्विंटल तक होती है। यमुना सफेद 2 जी-50, इसकी खेती से 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार होती है। जी 2820 किस्म की गांठें बड़ी होती हैं। इसकी खेती से प्रति हेक्टेयर 175 से 200 क्विंटल तक पैदावार ले सकते हैं। यमुना सफेद-3 जी-282 किस्म प्रति हेक्टेयर 150-175 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं।
गोबर की खाद के साथ संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करें। मिट्टी परीक्षण के आधार पर सूक्ष्म पोषक तत्त्व भी दें। बुवाई के तुरंत बाद पहली हल्की सिंचाई करें। फसल कटाई से 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें, ताकि बल्ब अच्छी तरह पक सकें।
समय-समय पर निराई-गुड़ाई और विशेषज्ञ की सलाह पर खरपतवारनाशी का प्रयोग करें। थ्रिप्स और माइट्स जैसे कीट और बैंगनी धब्बा और डाउनी मिल्ड्यू जैसे रोगों से बचाव के लिए नियमित निगरानी और उपचार जरूरी है। रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन इस समस्या को कम करने में सहायक होता है।
लहसुन की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगें, तो समझ लें कि फसल कटाई के लिए तैयार है। सावधानी से खोदकर निकालें और 7-10 दिनों तक छायादार स्थान पर सुखाएं। इससे लहसुन की भंडारण क्षमता बढ़ती है। भंडारण ठंडी, सूखी और अच्छी हवादार जगह पर करें, ताकि अंकुरण और सड़न से बचा जा सके।
लहसुन की खेती में सही प्रबंधन, उन्नत किस्में और उचित सिंचाई से किसानों को बेहतर पैदावार और मुनाफा मिल सकता है। कृषक रासायानिक उर्वरकों की बजाए जैविक खाद का उपयोग करें।
डॉ.अशोक कुमार गुप्ता, पूर्व निदेशक, एस.के.एन. कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर