हाथीगांव से धार्मिक अनुष्ठान के नाम पर गुजरात भेजे गए 25 से अधिक हाथी अब तक नहीं लौटे। सुप्रीम कोर्ट में अवैध परिवहन पर केस लंबित है, फिर भी वन विभाग लापरवाही बरत रहा है। महावतों पर खरीद-फरोख्त के आरोप लगे हैं।
जयपुर: देश के एकमात्र हाथीगांव से धार्मिक अनुष्ठान के नाम पर तीन-चार साल पहले गुजरात भेजे गए दो दर्जन हाथियों में से एक भी वापस नहीं लौटा है। वन विभाग ने उन्हें महज दो या तीन साल की परिवहन स्वीकृति दी थी। जो ज्यादातर हाथियों की पूरी हो चुकी है।
बता दें कि इनमें कई हाथियों पर सुप्रीम कोर्ट में अवैध परिवहन को लेकर केस लंबित है। फिर वन विभाग ने न तो मॉनिटरिंग की और न ही किसी हाथी मालिक के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई की है।
दरअसल, राज्य सरकार ने साल 2010 में हाथीगांव विकसित किया था। यहां हाथियों के लिए थान, महावतों के लिए मकान बनाए थे। हाथियों के तालाब, निगरानी के लिए चौकी और सफारी के लिए ट्रैक भी बनाए थे। उस वक्त वहां 110 हाथी थे, लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 76 ही रह गई है।
क्योंकि यहां से हाथियों को धार्मिक उपयोग का हवाला देकर हाथी मालिक गुजरात भेज रहे हैं। अब तक यहां से 25 से ज्यादा हाथी भेजे जा चुके हैं। छह महीने पहले भी एक हाथी भेजा गया था। इन हाथियों को ले जाने के लिए वन विभाग आसानी से दो या तीन साल की परिवहन मंजूरी दे रहा है। जबकि इनमें कई हाथियों के अवैध परिवहन को लेकर हाईकोर्ट में केस लंबित है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायालय में अवैध परिवहन के मामले लंबित होने के बाद भी वन विभाग का रवैया लापरवाह है। न कोई पूछताछ, न कोई जांच। नतीजा यह कि हाथीगांव, जिसे हाथियों के संरक्षण और पर्यटन के लिए बनाया था, आज अपनी पहचान खोने की कगार पर है।
एक हाथी मालिक ने बताया कि जो हाथी भेजे हैं, उनमें से 60 फीसदी से ज्यादा हाथियों की परिवहन स्वीकृति की अवधि पूरी हो चुकी है। उसके बावजूद एक भी हाथी वापस नहीं लौटा है। इसकी वजह है कि हाथी यहां से झूठ बोलकर ले गए और वहां 50 से 70 लाख रुपए में बेच दिए। यहां तक कि खरीद-फरोख्त के ऑडियो भी वायरल हो चुके हैं।