हाथीगांव में 70 लाख रुपए की लागत से बना यह आलीशान रेस्ट हाउस बीते आठ साल से न तो किसी पर्यटक ने देखा, न ही इसकी खिड़कियों से कोई रोशनी झांकी। अंदर लग्जरी कमरे धूल फांक रहे हैं और बाहर गार्डन में उगी झाड़ियां मानो सरकारी सुस्ती की हरियाली बन गई हों। पर्यटन को बढ़ावा देने की यह महत्वाकांक्षी योजना फाइलों की कैद और विभागीय बेरुखी का शिकार बन गई है।
Jaipur Hathigaon: जयपुर में सैलानियों के स्वागत में बना वीआइपी रेस्ट हाउस खुद ही ताले की कैद में है। हाथीगांव में 70 लाख रुपए की लागत से बना यह आलीशान रेस्ट हाउस बीते आठ साल से न तो किसी पर्यटक ने देखा, न ही इसकी खिड़कियों से कोई रोशनी झांकी। अंदर लग्जरी कमरे धूल फांक रहे हैं और बाहर गार्डन में उगी झाड़ियां मानो सरकारी सुस्ती की हरियाली बन गई हों। पर्यटन को बढ़ावा देने की यह महत्वाकांक्षी योजना फाइलों की कैद और विभागीय बेरुखी का शिकार बन गई है।
हाथीगांव में रोजाना सैकड़ों पर्यटक पहुंचते हैं। इसी को देखते हुए वन विभाग और जेडीए ने मिलकर रेस्ट हाउस का निर्माण कराया था। अंदर इंटीरियर, पेंटिंग, वीआइपी कमरे और सुंदर गार्डन सहित तमाम सुविधाएं दी गईं, लेकिन इसके संचालन का जिमा वन विभाग को सौंपा गया, जिसने इसे लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई।
कुछ वर्ष पहले विभाग ने इसे पीपीपी मोड पर निजी फर्म को देने की योजना बनाई थी। टेंडर भी निकाले गए, लेकिन जटिल शर्तों के चलते कोई फर्म आगे नहीं आई।
स्थानीय हाथी मालिकों का कहना है कि रेस्ट हाउस में बने बड़े-बड़े लग्जरी कमरे बेकार पड़े हैं। गार्डन की हालत ऐसी है कि अब वह जंगल की शक्ल ले चुका है। उनका कहना है कि यदि इसे शुरू किया जाए तो दिल्ली रोड जैसे पर्यटन क्षेत्र में ठहरने के लिए एक बेहतर विकल्प मिल सकता है और सरकार को भी राजस्व प्राप्त होगा।
रेस्ट हाउस को शुरू करने के लिए लंबे समय से प्रयास चल रहे हैं। इसे आरटीडीसी (राजस्थान टूरिज्म डवलपमेंट कॉरपोरेशन) को संचालन के लिए देने की तैयारी है। एमओयू की बातचीत हो रही है, लेकिन यह कब तक मूर्त रूप लेगा, कहा नहीं जा सकता। - प्राची चौधरी, एसीएफ, वन विभाग, हाथीगांव
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