यात्री अपनी जान हथेली में लेकर यात्रा करने को मजबूर हैं। डर का आलम यह है कि सिंधी कैंप में शाम के समय नजर आने वाली भीड़ घटकर आधी रह गई है। पढ़ें विकास सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट...
जयपुर: आप चौंक गए? चौंकना लाजमी है, क्योंकि यह सवाल आपकी, हमारी और हर बस यात्री की सुरक्षा से जुड़ा है। बसों में दुर्घटनाओं के बाद पत्रिका लगातार इनवेस्टिगेटिव और ग्राउंड रिपोर्ट को जनता के सामने ला रहा है। पत्रिका टीम ने जयपुर के सिंधी कैंप बस स्टैंड पर सरकारी और प्राइवेट बसों में सुरक्षा मानकों की पड़ताल की तो कुछ ऐसे ही चौंकाने वाले जवाब मिले।
दुर्घटना के बाद शायद एक-दो बसों में फोटो खिंचाने के लिए ट्रेनिंग दी गई थी, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज भी न सरकारी बसों में कोई शिकायत पेटिका है, न ही ड्राइवरों-कंडक्टरों को आपातकालीन स्थिति से निपटने की कोई ट्रेनिंग। पत्रिका इन्वेस्टिगेशन में सुरक्षा के इन दोनों पॉइंट्स पर सभी बसें और उनके क्रू 'फेल' मिले।
यात्री अपनी जान हथेली में लेकर यात्रा करने को मजबूर हैं। डर का आलम यह है कि सिंधी कैंप में शाम के समय नजर आने वाली भीड़ घटकर आधी रह गई है। अब बस से वही यात्रा कर रहा है, जिसे या तो बहुत जरूरी काम है या ट्रेन में टिकट नहीं मिल पा रहा है।
सिंधी कैंप के प्लेटफार्म नंबर-5 से वॉल्वो और डीलक्स बसें लंबी दूरी के लिए चलती हैं। जयपुर से जोधपुर जाने वाली बस जिसका नंबर RJ-14 PD-3384 है। मैंने (विकास सिंह) ड्राइवर से पूछा कि बस में कंप्लेन बॉक्स है क्या? ड्राइवर बोला मतलब? मैंने हिंदी में पूछा “बस में शिकायत पेटिका है?”
उन्होंने जवाब में कहा “वो क्या होती है।” इस दौरान बस कंडक्टर भी पहुचं गए। बोले भाई साहब कहां जाना है? मैंने अपना परिचय देते हुए पूछा, यात्रियों को बस चलने से पहले इमरजेंसी में जान बचाने के लिए बाहर कैसे निकलें, इसके बारे में बताते हैं? कंडक्टर ने कहा- नहीं। मैंने दोबारा पूछा क्या आपको इसकी ट्रेनिंग नहीं मिलती? उन्होंने कहा, भाई साहब मुझे किसी ने सिखाया ही नहीं है तो कैसे बताऊं। आज तक कभी जरूरत नहीं पड़ी।
प्लेटफॉर्म नंबर-5 पर खड़ी स्लीपर बस जिसका नंबर है RJ-09 PA-6938, जो जयपुर से चलकर अहमदाबाद जाने के लिए लगी थी। उसके ड्राइवर से मैंने वही सवाल किया तो उनका जवाब था कि “नहीं है।” आपातकालीन स्थिति में जान बचाने के लिए क्या करना है आप यात्रियों को बताते हैं। मेरी तरफ देखते हुए कुछ देर बाद कहते हैं “ऐसा कुछ नहीं होता है।” उसके बाद वो किसी ग्राहक से उसका सामान लेकर जाने के सौदेबाजी में व्यस्त हो जाते हैं।
जयपुर से महेसाणा जाने वाली प्राइवेट स्लीपर बस जिसका नंबर NL-07 B-0859 है। बस में यात्री गुजरात जाने के लिए चढ़ रहे थे। बस में ड्राइविंग सीट पर बैठे ड्राइवर मोहम्मद असलम से पूछा कि बस में शिकायत पेटिका है? उन्होंने सामने शीशे के पास रखे फर्स्ट एड बॉक्स की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यही है भाई साहब। दूसरा सवाल आपातकाल स्थिति यात्रियों के निकलने को लेकर पूछा, उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि ये सब हम नहीं जानते। सभी बसों में शीशा कैसे तोड़ें, पैनिक बटन कहां है, या फर्स्ट-एड कहां है, इसकी कोई जानकारी नहीं थी।
मेहसाणा जा रही बस का मामला सबसे गंभीर था, जहां जान बचाने के रास्ते पर ही सवारियां बिठाई गई थीं। इतनी सख्ती के बावजूद इतनी हिम्मत इन प्राइवेट बस ऑपरेटरों को कहां से मिल रही है। इसी तरह पत्रिका संवाददाता ने 15 से अधिक बसों में यही सवाल बारी-बारी से पूछे, लेकिन, इस पड़ताल के नतीजे बेहद ही चौंकाने वाले मिले हैं।
-किसी भी बस के ड्राइवर और कंडक्टर को शिकायत पेटिका बस में होनी चाहिए इसके बारे में नहीं पता था।
-किसी भी आपातकालीन स्थति में यात्रियों को अपनी जान-माल की सुरक्षा कैसे करनी है, इसके बारे में किसी भी बस के ड्राइवर यात्रियों को इंस्ट्रक्शन नहीं देते हैं।
-जयपुर से मेहसाणा जाने वाली बस में मुझे बहार से इमरजेंसी गेट पीछे की तरफ नहीं दिखा। मैंने अंदर जाकर देखा तो चौंक गया। पीछे की तरफ कोई गेट ही नहीं था। मैंने कंडक्टर को बुलाकर इमरजेंसी गेट के बारे में पूछा तो उसने जो राइट साइड में जो जगह दिखाई वहां इमरजेंसी गेट के नाम पर 2 सीटों की स्लीपर सीट लगी थी और उसमें एक परिवार के कुछ लोग लंच कर रहे थे। यही ऑपरेटर परिवहन विभाग के उन सभी दावों की पोल खोलते हैं, जिनमें उनके अधिकारी ऐसी बसों पर अंकुश लगाने का दावा कर रहे हैं।
इसी बस में यात्रा कर रही 60 साल की तस्नीम कहती हैं, हम जयपुर में सब्जी बेचते हैं। अभी पालनपुर जा रही हूं। मैंने (विकास सिंह) पूछा, इतनी जानलेवा दुर्घटना हो रही है बस में, इसमें मुसीबत में बचने के लिए दरवाजे नहीं हैं। डर नहीं लग रहा है? वह कहती हैं, क्या करें भैया मजबूरी है। अगर ऐसे नहीं गए तो फिर कैसे जायेंगे?
जयपुर से पालनपुर जा रहे इरशाद भी इसी बस में मौजूद थे। उन्होंने कहा, मैंने खबर पढ़ी थी। उसके बाद कुछ सख्ती दिख रही है। लेकिन, अव्यवस्था इतनी बड़ी है कि इतना जल्दी कंट्रोल कर पाना सिस्टम के बस के बहार जाता दिख रहा है।
-क्या हमें किसी दुर्घटना के बाद ही नींद से जागने की आदत पड़ गयी है?
-सरकारी बसों को सरकार द्वारा और और प्राइवेट बस ड्राइवरों को उनके ऑपरेटर द्वारा क्या ये जरूरी सेफ्टी के उपाय की ट्रेनिंग नहीं दी जानी चाहिए?
रोडवेज बसों में कंप्लेन बॉक्स होना चाहिए, यह जरूरी है। प्राइवेट बसों के बारे में है कि नहीं यह नहीं पता। लेकिन उनमें भी होना चाहिए।
-ओपी बुनकर, एडिशनल कमिश्नर, परिवहन विभाग।