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Aravalli Hills: केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव पर अशोक गहलोत का बड़ा आरोप, कहा- वे लोगों को गुमराह कर रहे

पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अरावली मामले को लेकर कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा, देश भर में चला जन आंदोलन और सेव अरावली मुहिम की वजह से कोर्ट ने खुद इस पर संज्ञान लिया।

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Aravalli Hills

भूपेंद्र यादव और अशोक गहलोत (फोटो- पत्रिका)

Aravalli Hills: जयपुर: पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव पर बड़ा आरोप लगाया है। पूर्व सीएम ने कहा कि वे लोगों को गुमराह कर रहे हैं।

बता दें कि अरावली पहाड़ियों को बचाने के विवाद में अब एक नया मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 29 दिसंबर को अपने 20 नवंबर के फैसले पर रोक लगा दी। उस फैसले में केंद्र सरकार की कमेटी की सिफारिश मानकर अरावली पहाड़ियों की परिभाषा तय की गई थी।

इसमें 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंची जगहों को ही अरावली माना गया था। इससे पहाड़ियों के बड़े हिस्से (लगभग 90 प्रतिशत) को खनन और विकास की सुरक्षा से बाहर कर दिया गया था, जिससे लोगों में गुस्सा भड़क उठा था।

पूर्व सीएम ने पर्यावरण मंत्री पर लगाया आरोप

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि देश भर में चला जन आंदोलन और सेव अरावली मुहिम की वजह से कोर्ट ने खुद इस पर संज्ञान लिया। गहलोत ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव पर आरोप लगाया कि वे लोगों को गुमराह कर रहे हैं। गहलोत ने कहा, उन्होंने अपने ही जिले अलवर में इस जून में सरिस्का टाइगर रिजर्व का संरक्षित क्षेत्र का दर्जा बदलकर वहां खनन शुरू करने की कोशिश की थी। वहीं, दूसरी तरफ मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि अरावली की सुरक्षा के लिए सरकार पूरी मदद करेगी। अभी नई खदानों पर पूरी तरह रोक है।

21 जनवरी को होगी सुनवाई

कोर्ट ने जनता के विरोध और कुछ अहम मुद्दों पर स्पष्टता न होने का हवाला देते हुए यह रोक लगाई। अब एक नई हाई पावर कमेटी बनाई जाएगी, जिसमें विशेषज्ञ होंगे। यह कमेटी पूरे मुद्दे की जांच करेगी और अरावली की सही परिभाषा तय करने में मदद करेगी। अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी। तब तक पुराना फैसला लागू नहीं होगा, ताकि कोई स्थाई नुकसान न हो।

जानिए कैसे हुआ विवाद

यह विवाद तब शुरू हुआ, जब केंद्र ने 13 अक्टूबर को नई परिभाषा सुझाई और कोर्ट ने 20 नवंबर को उसे मान लिया। इसके खिलाफ लोग प्रदर्शन किए और सोशल मीडिया पर मुहिम चलाई। साथ ही विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि इससे दिल्ली-एनसीआर की हवा, पानी और पर्यावरण को बहुत खतरा होगा। अब कोर्ट की रोक से पर्यावरण प्रेमियों को राहत मिली है, लेकिन अंतिम फैसला नई समिति की रिपोर्ट पर होगा।