थार की सुनहरी रेत में बसा जैसलमेर आज पर्यटन का बड़ा केन्द्र है। यहां आने वाले देशी सैलानियों से संवाद का सबसे सरल माध्यम हिन्दी बन गया है।
थार की सुनहरी रेत में बसा जैसलमेर आज पर्यटन का बड़ा केन्द्र है। यहां आने वाले देशी सैलानियों से संवाद का सबसे सरल माध्यम हिन्दी बन गया है। यही वजह है कि टूर गाइड, शिल्पकार और लोकगायक जैसे कई वर्गों को हिन्दी भाषा के सहारे रोजगार और पहचान दोनों मिल रहे हैं। स्थानीय गाइड राजू सिंह भाटी कहते हैं—हिन्दी के बिना हम अपना काम ही नहीं कर सकते। विदेशी पर्यटक भी आजकल हिन्दी शब्द सीखकर बातचीत करते हैं। अंग्रेज़ी काम आती है, पर असली जुड़ाव हिन्दी से ही होता है। जैसलमेर बाजार में हस्तशिल्प से जुड़े हाजी खां शिल्पकार बताते हैं—देशभर से ग्राहक आते हैं। वे हिन्दी में बात करके सामान समझते और खरीदते हैं मंगणियार समुदाय के लोकगायक इकराम खान का कहना है—हम राजस्थानी और सूफियाना गीत गाते हैं, पर जब हिन्दी में गाते हैं तो श्रोताओं की तालियां दोगुनी हो जाती हैं। हिन्दी गीत हमें बड़े मंचों तक ले जाते हैं।
मुख्य बाजार पर दुकान चलाने वाले रामस्वरूप वैश्य कहते हैं—सैलानियों से भाव-ताव और भरोसा हिन्दी में ही बनता है। कई बार विदेशी भी टूटी-फूटी हिन्दी बोलकर सौदा करते हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है।
थार की सुनहरी धरती पर अब तकनीक के साथ हिन्दी का मेल देखने को मिल रहा है। मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में जैसलमेर के युवा हिन्दी में अपनी रचनात्मकता व्यक्त कर रहे हैं। यूट्यूब चैनल, ब्लॉगिंग, इंस्टाग्राम रील्स और फेसबुक पेज के माध्यम से यह नई पीढ़ी हिन्दी को न केवल जीवित रख रही है बल्कि रोजगार और पहचान भी बना रही है। जैसलमेर के कई युवाओं ने यूट्यूब चैनल शुरू कर लोककला, लोकसंगीत और रेगिस्तानी जीवन पर वीडियो डाले। उनकी लोकप्रियता का बड़ा कारण हिन्दी भाषा में सरल व सहज संवाद है। इसके अलावा ब्लॉगिंग और फेसबुक पेज पर युवा हिन्दी कविताएं, कहानियां और लोककथाएं लिख रहे हैं। इससे न केवल स्थानीय संस्कृति को नया मंच मिल रहा है बल्कि पाठक वर्ग भी बढ़ रहा है। ब्लॉगर आकाश राजपुरोहित के अनुसार हिन्दी में लिखने से मुझे अपने विचार ज्यादा प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का मौका मिलता है। पाठक भी जुड़ाव महसूस करते हैं। इसी तरह यू- ट्यूबर नीलम भाटी बताती है कि वह राजस्थानी लोकगीतों पर आधारित वीडियो हिन्दी में समझाकर अपलोड करती है। हिन्दी मेरी पहचान भी है और उसकी रोज़ी-रोटी भी।
पर्यटन विशेषज्ञ सुमेरसिंह राजपुरोहित का कहना है कि हिन्दी और तकनीक का मेल युवाओं के लिए अवसर का नया दरवाज़ा खोल रहा है। इससे भाषा भी जीवित रहेगी और रोजगार भी मिलेगा। मरुस्थल की यह धरती तकनीक के सहारे हिन्दी की नई पहचान गढ़ रही है। जैसलमेर के युवा यह साबित कर रहे हैं कि भाषा और तकनीक का संगम भविष्य की सबसे बड़ी ताकत बन सकता है।