IIT जोधपुर की टीम ने सेंट्रोसोम को नियंत्रित करने वाले नए प्रोटीन की पहचान की है जो कोशिका विभाजन को नियंत्रित करके कैंसर और कुछ दुर्लभ रोगों से बचाव में मदद कर सकता है।
IIT Jodhpur Research: हमारे शरीर में अरबों कोशिकाएं हैं। हर एक-एक छोटा शहर। जहां सड़कें हैं, गाड़ियां हैं और बीच में एक ‘ट्रैफिक कंट्रोल रूम’, जिसका नाम है सेंट्रोसोम। अगर ये पुलिसवाला रिश्वत ले ले या गायब हो जाए तो हादसा पक्का यानी कैंसर या दिमाग का छोटा रह जाना।
आइआइटी जोधपुर की बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग की डॉ. प्रियांका सिंह और उनकी टीम ने इस कंट्रोल रूम का राज काफी हद तक खोल दिया। डॉ. सिंह के मुताबिक सेंट्रोसोम कोशिका का ‘कंट्रोल सेंटर’ होता है यानी वही तय करता है कि कोशिका कब और कैसे विभाजित होगी। अगर यह प्रक्रिया बिगड़ जाए तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी जन्म ले सकती है। टीम ने पीएलके-4 नाम के एक खास प्रोटीन की पहचान की है जो कोशिका विभाजन को ‘ऑन-ऑफ स्विच’ की तरह नियंत्रित करता है। इसी के साथ एसटीआइएल और बीआरसीए-1 नाम के दो प्रोटीनों के बीच एक नया संबंध भी सामने आया है जो कैंसर रोकने में अहम भूमिका निभा सकता है।
सेंट्रोसोम कोशिका, कोशिका विभाजन में सहायता करता है। जब कोशिकाएं विभाजित होती है तो सेंट्रोसोम दोगुना होकर सेल के दोनों छोरों पर पहुंच जाते हैं और सूक्ष्म तंतु (माइक्रोट्यूब्यूल्स) बनाते हैं जो गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) को दो बराबर भागों में बांटते हैं।
यदि सेंट्रोसोम की संख्या ज़्यादा या कम हो जाए तो कोशिकाओं का विभाजन अनियंत्रित हो जाता है यही कैंसर का शुरुआती संकेत है। आइआइटी जोधपुर की टीम ने इस संतुलन को बनाए रखने वाले प्रोटीनों की पहचान की है जिससे बीमारी की जड़ को समझने में मदद मिलेगी।
टीम ने यह भी पाया कि कुछ दुर्लभ बीमारियां जैसे माइक्रोसेफली, सेंट्रोसोम से जुड़ी प्रोटीन में म्यूटेशन के कारण होती हैं। उदाहरण के तौर पर सीपीएपी नामक प्रोटीन में दो तरह के बदलाव पाए गए। एक में सेंट्रोसोम का आकार असामान्य रूप से बड़ा हो गया और दूसरे में उनकी संख्या बढ़ जाती है। यही असंतुलन बच्चे के मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करता है।
आइआइटी जोधपुर ने ऐसे रसायन तैयार किए हैं जो कैंसर कोशिकाओं में बने सेंट्रोसोम क्लस्टर्स को तोड़ सकते हैं। यह नई थैरेपी भविष्य में मौजूदा महंगी कैंसर दवाओं का सस्ता विकल्प बन सकती है। साथ ही, कुछ पुरानी दवाओं को भी नए तरीके से उपयोग में लाने की दिशा में काम चल रहा है, ताकि इलाज और ज्यादा असरदार और सुलभ हो सके।