एमडीएम अस्पताल की नई बनी बिल्डिंग में अलार्म और स्मॉक डिटेक्टर हैं, जबकि पुरानी बिल्डिंग अब भी भगवान भरोसे है।
जोधपुर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल मथुरादास माथुर (MDM) में जयपुर के एसएमएस अस्पताल अग्निकांड जैसे गंभीर हादसे को रोकने के लिए जाग हुई। अस्पताल अधीक्षक की मौजूदगी में स्टाफ ने मॉक ड्रिल की है। इस ड्रिल के जरिए स्मॉक डिटेक्टर जांचे गए और कर्मचारियों को आग बुझाने के यंत्रों के बारे में जानकारी दी गई।
इससे पहले राजस्थान पत्रिका ने अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था परखने के साथ सत्यता उजागर की थी। इसमें सामने आया कि न तो फायर एग्जिट जैसी व्यवस्था है और न ही अलार्म काम करते हैं। पिछली बार जब जनाना विंग में आग लगी तो इन सभी उपकरणों की जांच की गई थी। इसके बाद अब मंगलवार को एक बार फिर से वर्कशॉप टीम ने एमडीएम की नई विंग में लगे स्मॉक डिटेक्टर व अलार्म की जांच की है।
कई मंजिल पर यह अलार्म चल रहे थे। इसके अलावा टीम के सदस्यों व अन्य कर्मचारियों को फायर एक्सटिंग्विशर चलाने का प्रशिक्षण भी दिया गया। इस मौके पर चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. विकास राजपुरोहित, वर्कशॉप चिकित्सा अधिकारी डॉ. अंकित सोनी, डॉ. सुभाष बलारा, वर्कशॉप के विपिन पुरोहित, गोपाल व्यास सहित अन्य मौजूद रहे।
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एमडीएम अस्पताल की नई बनी बिल्डिंग में अलार्म और स्मॉक डिटेक्टर हैं, जबकि पुरानी बिल्डिंग अब भी भगवान भरोसे है। वहां सिस्टम अपग्रेड करने के लिए लाखों रुपए का बजट चाहिए, जिसकी अनुमति नहीं मिल रही। अभी भी कई वार्ड और जांच केन्द्र पुराने भवन में ही संचालित होते हैं।