गरीब मजदूर की बेटी सुदामा चक्रवर्ती ने फिर बढ़ाया जिले का मान, सीएम से मुलाकात का सपना अब भी अधूरा
कटनी. ढीमरखेड़ा तहसील क्षेत्र के ग्राम दशरमन में एक गरीब मजदूर के घर जन्मी आंखों से दिव्यांग बेटी सुदामा चक्रवर्ती ने अपने हौसले, मेहनत और आत्मविश्वास से न सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि पूरे क्षेत्र का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है। कभी जिसे परिस्थितियों के कारण परिवार के लिए बोझ समझ लिया गया था, वही सुदामा आज दिव्यांगजनों के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन चुकी है। 21 और 22 दिसंबर को राजस्थान के श्रीगंगानगर में आयोजित 2025 नेशनल जूडो चैंपियनशिप में सुदामा चक्रवर्ती ने नॉन ओलंपिक एवं सीनियर कैटेगरी में शानदार प्रदर्शन करते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया। इससे पहले भी वह ब्लाइंड जूडो एवं कराटे प्रतियोगिताओं में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं।
24 वर्षीय आंखों से दिव्यांग सुदामा वर्तमान में स्कूलों और छात्रावासों में छात्राओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे रही हैं। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र-छात्राओं को आत्म सुरक्षा के गुर सिखाकर समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य भी कर रही हैं। उनका यह समर्पण उन्हें एक खिलाड़ी के साथ-साथ सामाजिक मार्गदर्शक भी बनाता है। सुदामा की प्रतिभा और सामाजिक योगदान को देखते हुए 8 मार्च 2022 को तत्कालीन कलेक्टर प्रियंक मिश्रा के कार्यकाल में उन्हें एक दिन का कलेक्टर भी बनाया गया था। उनके सराहनीय कार्यों की चर्चा आए दिन होती रहती है और वे लगातार नई उपलब्धियां हासिल कर रही हैं।
पत्रिका से विशेष बातचीत में सुदामा ने बताया कि उनके संघर्ष और उपलब्धियों को मीडिया के माध्यम से लगातार शासन-प्रशासन तक पहुंचाया गया, लेकिन इसके बावजूद वे अब तक मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से मुलाकात नहीं कर सकी हैं। सुदामा ने बताया कि वे बड़वारा में आयोजित सीएम राइज स्कूल के लोकार्पण कार्यक्रम में भी पहुंची थीं, जहां पीएसओ ने उनका पत्र तो ले लिया, लेकिन आज तक किसी प्रकार की जानकारी या जवाब नहीं मिला। इससे पहले बड़वारा विधायक द्वारा भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सुदामा की मुलाकात कराने का अनुरोध किया गया था, बावजूद इसके मुलाकात नहीं हो सकी। राष्ट्रीय स्तर पर जिले और प्रदेश का नाम रोशन करने वाली दिव्यांग बेटी के मन में मुख्यमंत्री से मिलने की इच्छा अब भी अधूरी है। इस उपेक्षा से सुदामा के मन में कहीं न कहीं निराशा जरूर है, लेकिन उनका हौसला आज भी मजबूत है। सीमित संसाधनों और शारीरिक बाधाओं के बावजूद सुदामा चक्रवर्ती का जज्बा यह साबित करता है कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा सफलता को रोक नहीं सकती।