Nineteen open mines of Katni pose a threat
कटनी. शहर में 19 खुली खदानें रहवासियों के लिए खतरे का सबब बन रही है। इन खदानों में सुरक्षा इंतजाम न होने के कारण हादसा होने का खतरा मंडराता है। वर्षों खनिज का दोहन होने के बाद इन खदानों को खनन कारोबारियों ने सुरक्षित भी नहीं कराया। जानकारी के अनुसार नगरनिगम ने इन खदानों में सुरक्षा उपायों के तहत फेसिंग, घाट निर्माण, सौंदर्यीकरण व वर्षा जल संग्रहण संबंधी कार्यों के लिए प्रस्ताव तो बनाया है। इस प्रस्ताव में करीब 163.34 लाख रुपए खर्च होना बताया गया है लेकिन इतनी राशि का बजट न होने के कारण यह योजना मूर्त रूप नहीं ले पा रही है। उल्लेखनीय है कि खुली खदाने होने से 24 घंटे बच्चों व बड़ों की आवाजाही के कारण खतरा बना रहता है। बच्चे बिना रोक-टोक नहाते है और सुरक्षात्मक उपाय के अभाव मे डूबने जैसी घटनाओं की आशंका बनी रहती है।
राहत आयुक्त से मांगा गया था बजट
बीते वर्ष तत्कालीन कलेक्टर अवि प्रसाद ने खदानों में सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से बैरीकेटिंग, घाट निर्माण, सौदर्यीकरण और वर्षा जल संग्रहण संबंधी कार्यो हेतु राज्य आपदा प्राधिकरण द्वारा न्यूनीकरण अंतर्गत संरक्षित राशि से 163.34 लाख रुपए की राशि स्वीकृत करने का प्रस्ताव भेजा था। पत्र में नगर निगम क्षेत्र की खुली खदानों की वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया है।
नगरनिगम के वरिष्ठ पार्षद ने उठाई आवाज
नगर निगम के वरिष्ठ पार्षद एडवोकेट मिथलेश जैन द्वारा कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, एसडीएम, आयुक्त सहित अन्य को पत्र लिखकर नगर निगम सीमा क्षेत्रांतर्गत् विभिन्न खदानों (जल स्त्रोतों) को संरक्षित करने एवं धारा 133 दप्रसं में पारित आदेश का पालन कराए जाने की मांग की गई है । पत्र में बताया है कि कुल 19 पुरानी खदानें है। इन खदानों में अथाह जल भरा हुआ है तथा इनमें से अनेकों खदानों में नगर निगम द्वारा पानी भी प्राप्त कर नागरिकों को सप्लाई किया जाता है। खदानों के कारण क्षेत्र में जमीन का जल स्तर काफी ऊंचा है और लोगों को ट्यूबवेल खनन करने पर जल्द ही पानी प्राप्त हो जाता है । यह खदानों नगर निगम के जल स्तर को उचित रुप से संधारित किये हुए हैं। उन सभी खदानों में माइनिंग का काम नहीं होता है तथा यह खदानें बंद पड़ी है । शासन का आदेश होने एवं नियमों में व्यवस्था होने के बावजूद भी उक्त खदानों को चारों तरफ बेरिकेट करके संरक्षित किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया गया, जिससे खदानों में बच्चे, नागरिक, जानवर इत्यादि गिरकर मर भी जाते हैं और पानी प्रदूषित होता है। इन खदानों के पानी का उपयोग नागरिकों द्वारा नहाने-धोने व अन्य उपयोग में लिया जाता है ।
मलबा डालकर खदान पूरने के हो रहे प्रयास
पत्र में उन्होंने यह भी कहा है कि खादानों को पूर्व में कचड़ा व मलमा डालकर पूरने (भरने) का कार्य किया जा रहा था तथा जमीन विक्रय करने का प्रयास किया जा रहा था जिससे न्यूसेंस फैल रहा था। इस पर आवेदक कमलेश जैन वगै0 द्वारा नगर निगम कटनी, उप क्षेत्रीय अधिकारी, म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कटनी, तहसील कटनी एवं विभिन्न खदान धारकों को पक्षकार बनाकर खदान (जलाशय - जल स्त्रोत) न पूरने (भरने) के लिए अनुविभागीय दंडाधिकारी कटनी के समक्ष धारा 133 द.प्र.सं. का प्रकरण क्रमांक - 417/2008 प्रस्तुत किया गया था। इस प्रकरण में अनुविभागीय दंड़ाधिकारी के द्वारा दिनांक 7 जून 2010 को अंतिम आदेश पारित किया गया है कि खदानों को किसी भी प्रकार से पूरने (भरने) एवं कचड़ा इत्यादि डालने पर प्रतिबंध लगा दिया तथा नगर निगम एवं मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह भी आदेशित किया गया कि वे खदानों में गंदगी व लोक न्यूसेंस न होने दें तथा खदानों को सुरक्षित किया जाए लेकिन आदेश का पालन अबतक नहंी कराया गया।
यहां है खुली खदानें