हीटर व कंबल का भी है वार्ड में अभाव, जिला अस्पताल प्रबंधन वार्ड स्वास्थ्य विभाग नहीं दे रहा ध्यान
कटनी. शहर व जिले में जन्मजात गंभीर बीमारी सिकलसेल व थैलेसीमियां के 184 बच्चे जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। 106 सिकलसेल के मरीज और 78 बच्चे थैलेसीमियां की गंभीर बीमारी से ग्रसित है। जैनेटिक व जन्मजात बीमारियों के कारण परेशान हैं। बीमारी इनके लिए समस्या का सबब तो बनी हुई है साथ ही जिला अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्थाएं भी पीड़ा बढ़ा रही हैं। यहां पर ब्लड सेप्रेशन यूनिट शुरू होने से अभिभावकों को बच्चों को लेकर जबलपुर व अन्य शहर जाने से छुटकारा तो मिला है, लेकिन अभी दवा व सुविधाएं न मिलने कष्ट बढ़ा रही हैं।
जिला अस्पताल में थैलेसीमियां व सिकलसेल के मरीजों को फिल्टर बैग नहीं मिल रहा है, फिल्टर बैग के लिए बजट न होने की बात कही जाती है, इससे ब्लड चढ़ाने पर बच्चों को संक्रमण नहीं होता। बच्चे छोटे रहते हैं, उनके लिए ठंड से बचाव के लिए कंबल आदि की सुविधा नहीं है, हीटर की सुविधा नहीं है। ऐसे बच्चों के लिए जांच के लिए अलग काउंटर होना चाहिए। अभी मरीजों को इनको एक से दो घंटे का इंतजार करना पड़ता है, थैलेसीमियां वाले बच्चों को अलग से सुविधा होने चाहिए, जो नहीं है।
कटनी ब्लड डोनर एंड वेलफेयर सोसायटी 11 वर्षों से थैलेसीमिया व सिकलसेल मरीजों के लिए अनूठी सेवा कर रहे हैं। एक फोन कॉल में रक्तदान कर उनकी जान बचाने पहुंचते हैं। सिकल सेल व थैलेसीमियां पीडि़त बच्चों के अभिभावकों का गु्रप बनाए हुए हैं। मैसेज मिलते ही ग्रुप के सदस्य मदद करते हैं। 75 बच्चों की लगातार मदद की जा रही है। 100 युनिट हर माह बच्चों को खून दिया जा रहा है। साथ ही अन्य मरीजों के लिए रक्तदान कर रहे हैं।
कटनी ब्लड डोनर एंड वेलफयर सोसायटी व ऑल इंडिया थैलेसीमिया जन जागरण समिति के संगठन मंत्री टीनू सचदेवा ने कहा कि पत्रिका समाज के लिए सजग प्रहरी का काम कर रहा है। सतना में जो मुद्दा सामने आया है व गंभीर है, इसकी पुनर्रावृत्ति नहीं होनी चाहिए यह शासन-प्रशासन को सुनिश्चत करना होगा। बच्चों व मरीजों के हित में शानदार पहल की है, जिससे लोगों को बड़ी राहत मिल रही है।
अनिल आसरा ने बताया कि पत्रिका ने एचआइवी संक्रमित खून चढऩे का जो मामला उठाया है, उसे बड़ा मुद्दा है। अस्पतालों में निगरानी सिस्टम कड़ा होना चाहिए। सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि थैलेसीमिया के मरीजों को पहले सिपला कंपनी की दवा कैलफर, डेसीरॉक दवा मिलती थी, अब बजाज कंपनी की दे रहे हैं, जिसमें ठीक से आराम नहीं मिल रहा।
जिला अस्पताल में थैलेसीमियां व सिकलसेल के बच्चों की निगरारी की जा रही है। शारीरिक व मानसिक विकास की जांच की जा रही है। अभिभावकों की काउंसलिंग की जा रही है, शादी के पहले जांच करने कहा जा रहा है। डीएनए में खराबी के कारण यह समस्या हो रही है। खून बनाने वाली कोशिकाएं खराब होने के कारण बच्चे बीमारी से ग्रसित पैदा होते हैं। बच्चों को समस्या न हो, यह व्यवस्था की जाएगी।