गणेश महोत्सव की तैयारियां इस बार खास अंदाज में हो रही है। पीओपी ( प्लास्टर ऑफ पेरिस) की मूर्तियों पर लगी रोक के चलते बाजार में मिट्टी की मूर्तियों की मांग तेजी से बढ़ी है। जयपुर, इंदौर, जबलपुर जैसे शहरों से आईं आकर्षक प्रतिमाएं बाजार में छाई हुई हैं।
पीओपी ( प्लास्टर ऑफ पेरिस ) की मूर्तियों पर लगी रोक के चलते बाजार में मिट्टी की मूर्तियों की मांग तेजी से बढ़ी है। जयपुर, इंदौर, जबलपुर जैसे शहरों से आईं आकर्षक प्रतिमाएं बाजार में छाई हुई हैं। खास बात यह है कि इस बार खजराना के गणेश जी की मूर्ति का स्वरूप लोगों को आकर्षित कर रहा है।
गणेश महोत्सव की तैयारियां इस बार खास अंदाज में हो रही है। पीओपी ( प्लास्टर ऑफ पेरिस) की मूर्तियों पर लगी रोक के चलते बाजार में मिट्टी की मूर्तियों की मांग तेजी से बढ़ी है। जयपुर, इंदौर, जबलपुर जैसे शहरों से आईं आकर्षक प्रतिमाएं बाजार में छाई हुई हैं। खास बात यह है कि इस बार खजराना के गणेश जी की मूर्ति का स्वरूप लोगों को आकर्षित कर रहा है। जबलपुर के नगर सेट और शिव मूर्ति के साथ गणेश जी की प्रतिमाएं लोगों को खूब पसंद आ रही हैं।
मिट्टी की मूर्तियों में इस बार नवाचार भी देखने को मिल रहा है। जयपुर से आए मूषक की मूर्तियों ने पहली बार बाजार में जगह बनाई है। गणेश जी के सिंहासन, मूषक, शिव की पिंडी के साथ सजाई गई प्रतिमाएं न केवल देखने में सुंदर हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। गाय के गोबर युक्त मिट्टी से बनी ये मूर्तियां विसर्जन के बाद जल स्रोतों को प्रदूषित नहीं करतीं।
बाजार में तीन इंच से लेकर ढाई फीट तक की मूर्तियां उपलब्ध हैं। इनकी कीमत 100 रुपए से शुरू होकर 2100 रुपए तक है। 20 वर्षों से मूर्तियां बेच रहे राजेंद्र दशोरे बताते हैं कि इस बार मिट्टी की मूर्तियों की डिमांड है। जबलपुर से मूर्तियां लेकर आए विक्रेताओं का कहना है कि खंडवा में इस बार पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ी है। खंडवा में जयपुर, इंदौर और जबलपुर की पारंपरिक मूर्तियों ने सांस्कृतिक विविधता को नया आयाम दिया है। खजराना के गणेश स्वरूप और शिव-पिंडी के साथ मूर्तियों की सजावट ने धार्मिक भावनाओं को गहराई देगी। मूषक की मूर्तियों का समावेश पहली बार हुआ है, जो पौराणिकता को आधुनिकता जोड़ती है।
पर्यावरण सहेजना जरुरी
मिट्टी और गोबर से बनी मूर्तियां जल स्रोतों को प्रदूषित नहीं करतीं। पानी में आसानी से घुल जाती हैं। इससे नदियां और तालाबों की स्वच्छता बनी रहती है। मूर्तियों के निर्माण में रासायनिक रंगों की जगह प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया गया है। यह बदलाव न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि आने वाली पीढिय़ों को भी जागरूक करता है।