Suicide Cases Data: राहत की बात है कि राष्ट्रीय औसत 12.4 से राजस्थान काफी पीछे है। यहां औसत आत्महत्या की दर 6.6 प्रति लाख व्यक्ति है।
आशीष जोशी
देश में हर 40 मिनट में एक स्टूडेंट मौत को गले लगा रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम आंकड़ों के विशलेषण से साफ है कि देश के कुल स्टूडेंट सुसाइड के मामलों में से 14 फीसदी केस अकेले महाराष्ट्र के हैं। यहां सर्वाधिक छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। वहीं, राजस्थान दसवें स्थान पर है।
खास बात है कि कोटा शहर कोचिंग हब होने के कारण बेवजह बदनाम हो रहा है जबकि यहां 2024 में 40 फीसदी स्टूडेंट सुसाइड के केस कम हुए हैं। आंकड़ों में कोटा देश में 30वें पायदान पर है। यहां पिछले दस सालों में 127 स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया। देश में सबसे ज्यादा स्टूडेंट सुसाइड वाले शहरों में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कानपुर, नागपुर, हैदराबाद, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, भोपाल और पुणे जैसे शहर शामिल हैं।
‘स्टूडेंट सुसाइड-एन एपिडेमिक स्वीपिंग इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशक में देश में जहां आत्महत्या की दर 2 फीसदी की दर से बढ़ी है, वहीं, विद्यार्थियों में आत्महत्या की दर में 4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में सबसे अधिक स्टूडेंट आत्महत्या कर रहे हैं। जो कुल स्टूडेंट सुसाइड का एक तिहाई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान का स्टूडेंट सुसाइड रेट रेश्यो काफी कम है। राहत की बात है कि राष्ट्रीय औसत 12.4 से राजस्थान काफी पीछे है। यहां औसत आत्महत्या की दर 6.6 प्रति लाख व्यक्ति है।
(- डॉ. तनु गुप्ता, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, एम्स, जोधपुर)
ऐसा नहीं है कि परीक्षा में फेल होने के भय से ही छात्र सुसाइड कर रहे हैं। आइआइटी, आइआइएम, एनआइटी, एम्स और सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में भी 2021 में 10, 2022 में 25 और 2023 में 15 आत्महत्याएं हुईं।
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डिनर विद कलक्टर मुहिम को हुआ एक साल।
कोटा केयर कैम्पेन में कोचिंग स्टूडेंट्स की केयर।
कामयाब कोटा के तहत पीजी-हॉस्टल का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य।
एंटी हेंगिंग डिवाइस नहीं लगे होने पर हो रही सीज की कार्रवाई।
बिना कोचिंग के हॉस्टलों में रह रहे बदमाशों को पुलिस कर रही चिह्नित।
बच्चों के हाव भाव पहचानने को गेट कीपर और फर्स्ट कॉन्टैक्ट पर्सन को किया ट्रेंड।
यों तो विद्यार्थियों की आत्महत्या के अलग-अलग कारण भी हैं लेकिन ज्यादातर केस में मेंटल हेल्थ बड़ी समस्या है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 15 से 24 साल का हर 7 में से एक शख्स खराब मेंटल हेल्थ से जूझ रहा है। चिंताजनक है कि लोग अपनी मेंटल हेल्थ की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते।