Kota News: कोटा के 15 साल के प्रत्यक्ष ने अप्रत्याशित कार्य किया है। उसने पहले दुनिया की ऊंची पर्वत चोटियों में से एक माउंट किलिमंजारो पर अपने साथियों के साथ चढ़ाई करने में सफलता अर्जित की, फिर अपनी यात्रा पर पुस्तक ही लिख ड़ाली।
कोटा. अनूठे व साहसिक कार्यों को अंजाम देने में कोटा के युवा भी पीछे नहीं हैं। इन्ही में से एक है प्रत्यक्ष भांगडिया। महज 15 साल के 10वीं कक्षा के विद्यार्थी प्रत्यक्ष ने मार्च में विश्व की उच्चतम पर्वत चोटियों में से एक माउंट किलिमंजारो को फतह किया था, अब अपनी उसी साहसिक यात्रा पर ‘मायट्रिस्ट विद माउंट किलिमंजारो-ए ट्रेक फुल ऑफ एडवेंचर एंड लर्निंग’ पुस्तक लिख डाली। प्रत्यक्ष के साहसिक कार्य व सृजनात्मकता पर 15 अगस्त को शिक्षा मंत्री ने सम्मानित किया। जिला कलक्टर ने पुस्तक का विमोचन किया।
धीरे-धीरे रे मना...
पर्वतारोहण में उन्होंने कोई जल्दबाजी नहीं की। चढ़ाई में जल्दबाजी थकान दे सकती थी, इसे देखते हुए धीरे धीरे चढ़ाई की और यात्रा का पूरा लुत्फ उठाया। पहली पुस्तक के विमोचन पर खुशी जाहिर करते हुए प्रत्यक्ष ने कहा कि यह पुस्तक उनकी तैयारी, तंजानिया की यात्रा और पर्वत पर की गई जीवन बदलने वाली ट्रेक को विस्तार से बताती है। अंग्रेजी में लिखी गई पुस्तक 83 पेज की है। प्रत्यक्ष ने इसी शीर्षक के साथ 37 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री पहले ही सोशल मीडिया पर रिलीज की है।
मार्च में मिली उपलब्धि
प्रत्यक्ष ने मार्च में अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट किलिमंजारो पर चढ़ाई की थी। उसने यह यात्रा अपने पिता के साथ 12 मार्च को कोटा से शुरू की थी। वह 14 मार्च को मुंबई और फिर केन्या की राजधानी नैरोबी होते हुए तंजानिया गए थे, जहां माउंट किलिमंजारो स्थित है। भारत से प्रत्यक्ष व उनके पिता महेश भांगडिया के अलावा जर्मनी से तीन, कनाडा से एक समेत छह पर्वतारोहियों ने 15 मार्च को पदयात्रा शुरू की। समूह में सबसे कम आयु के प्रत्यक्ष थे। साहस व धैर्य का परिचय देते हुए 20 मार्च को वे 5895 मीटर (19340 फीट) की ऊंचाई पर पर्वत की चोटी पर पहुंचे।
भय नहीं, रोमांच था
यह जीवन बदलने वाला अनुभव था। प्रतिदिन लगभग 8-10 घंटे यात्रा करते थे। स्लीपिंग बैग में सोना और पहाड़ पर रहते हुए संसाधनों का बेहतर उपयोग करना कठिन था। ऊंचाई पर सर्दी परेशान करने वाली थी। हाइपोथर्मिया के खतरे के कारण उन्हें अपनी शिखर यात्रा उहुरू चोटी से ठीक पहले समाप्त करनी पड़ी, लेकिन माउंट किलिमंजारो के अधिकारियों ने उनकी उपलब्धि को प्रमाणित करते हुए उनकी उम्र, 15 वर्ष से कम का हवाला देते हुए शिखर तक उनकी चढ़ाई पर विचार किया। प्रत्यक्ष ने बताया कि हर यात्रा एक सीख देती है। इस यात्रा से पहले वे काफी रोमांचित थे। पापा का साथ था तो कोई भय नहीं था। मां प्रगति भांगड़िया हमेशा मोटिवेट करती हैं।