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Holi in UP: होली पर मिसाल है UP की ये दरगाह, हिंदू-मुस्लिम साथ में खेलते हैं रंग, ऐसे शुरू हुई थी ये परंपरा

Dewa Sharif Holi: उत्तर प्रदेश में जुमा नमाज और होली को लेकर बवाल मचा है। उसी बीच यूपी के देवा शरीफ दरगाह की होली मिसाल है जहां 100 साल से हिंदू-मुस्लिम साथ में होली खेलते हैं।

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Mar 13, 2025
देवा शरीफ उत्तर प्रदेश में हिंदू मुस्लिम साथ में होली खेलते हैं (फाइल फोटो)

Dewa Sharif Holi: होली को लेकर यूपी में कई तरह की कहानियां हैं। एक तरफ उत्तर प्रदेश में होली और जुमा नमाज को लेकर बहस (Juma Namaz and Holi in UP) चल रही है। वहीं, उसी राज्य में होली पर देवा शरीफ की दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है। यहां पर होली के मौके पर धर्म की दीवार होली के रंग में गुलाबी हो जाती है। होली के रंग में सब एक हो जाते हैं। ये परंपरा करीब 100 साल से चल रही है। लेकिन देवा शरीफ की दरगाह पर होली क्यों मनाई जाती है और ये परंपरा कैसे शुरू हुई थी? इसके बारे में हम देवा शरीफ दरगाह पर होली मनाने की कहानी (Dewa Sharif Ki Holi) को पढ़ेंगे।

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ऐसे शुरू हुई थी देवा शरीफ की होली

बताया जाता है कि देवा शरीफ की होली ब्रिटिश काल से मनाते आ रहे हैं। करीब 100 साल से अधिक समय हो गया जहां पर होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। हर साल यहां पर देश के कोने-कोने से लोग दरगाह पर होली खेलने आते हैं। साथ ही विदेशी इस होली का आनंद लेने के लिए उमड़ते हैं।

1905 में हाजी वारिस अली शाह का दरगाह बना

उत्तर प्रदेश सरकार की जानकारी के मुताबिक, हाजी वारिस अली शाह 19वीं शताब्दी की पहली तिमाही में हुसैनी सय्यदों के एक परिवार में जन्में थे। इनके पिता का नाम सय्यद कुर्बान अली शाह था। हिंदु समुदाय ने उन्हें उच्च सम्मान में रखा तथा उन्हें एक आदर्श सूफी और वेदांत का अनुयायी माना जाता था। हाजी साहब का 7 अप्रैल, 1905 को स्वर्गवास हो गया। उनको उसी स्थान पर दफनाया गया जहां उनका स्वर्गवास हुआ था, और उस जगह पर दरगाह बनाया गया।

हिंदू राजा ने बनाई थी देवा शरीफ की दरगाह

हाजी वारिस अली शाह और राजा पंचम सिंह की मित्रता की मिसाल भी दी जाती है। अपने दोस्त के देहांत के बाद उन्होंने दरगाह का निर्माण कराया था। जानकारी के मुताबिक, हिन्दू मित्र राजा पंचम सिंह द्वारा दरगाह का निर्माण कराया गया था।

वारिस अली शाह ने शुरू की थी ये परंपरा

हाजी वारिस अली शाह धर्म से परे होकर मानवता के लिए सोचते थे और वो हमेशा भाईचारा के लिए काम करते रहे। इसलिए इस होली खेलने की परंपरा हाजी वारिस अली शाह के जमाने से ही शुरू हुई थी। बाद में, इनको चाहने वालों ने इस परंपरा को जिंदा रखा ताकि भाईचारा की मशाल जलती रहे। आज भी होली के मौके पर लोग यहां गुलाब और गुलाल लेकर आते हैं और साथ मिलकर होली खेलते हैं।

'जो रब है वही राम' का संदेश दिया था

वारिश अली शाह की फाइल फोटो

हाजी वारिस अली शाह ने संदेश दिया था कि 'जो रब है वही राम'। आज भी इस संदेश को इनके मानने वाले फॉलो करते हैं। इसलिए यहां पर आने वाला धर्म को भूलकर प्यार के रंग में ढल जाता है। ना केवल होली बल्कि उर्स और अन्य मेला का भी आयोजन किया जाता है।

देवा शरीफ दरगाह पर कैसे जाएं?

अगर आप भी होली के मौके पर हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर जाना चाहते हैं तो यहां पर करीब में बाराबंकी रेलवे स्टेशन है। ये दरगाह देवा नामक स्थान पर है जो बाराबंकी रेलवे स्टेशन करीब 13 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां से आप अपनी सुविधानुसार ऑटोरिक्शा, कार आदि से जा सकते हैं।

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