राजधानी में दो अफसर आपस में भिड़ गए। दोनों अफसरों में पहले कहा सुनी हुई फिर बात हाथापाई तक आ गई। पहले एक अफसर ने थप्पड़ मारा तो दूसरे ने वहीं पर पड़े पेपर वेट को उठाकर मार दिया। पेपरवेट मारने से अफसर की नाक के पास चोट लग गई।
उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक व्यवस्था की सख्ती और अनुशासन की मिसाल दी जाती है, लेकिन कभी-कभी यही सिस्टम अंदर से दरकता नजर आता है। अफसरशाही के भीतर टकराव की घटनाएं न केवल चौंकाती हैं, बल्कि जनता का भरोसा भी हिला देती हैं। लखनऊ में IRS अफसर गौरव गर्ग पर उनके ही सहयोगी योगेंद्र मिश्र द्वारा हमला करना इस कड़ी का ताजा उदाहरण है।
प्रयागराज में एक प्रशासनिक बैठक के दौरान DM और SSP के बीच तीखी बहस हो गई। कारण बना था एक VIP मूवमेंट की तैयारी, जिसमें दोनों अधिकारी एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने लगे। मामला इतना बढ़ गया कि सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा और दोनों का ट्रांसफर कर दिया गया।
गाजियाबाद में कोविड-19 वैक्सीनेशन ड्राइव के दौरान CMO और SDM की बहस का वीडियो वायरल हो गया। SDM ने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पर सवाल उठाए, जबकि CMO ने कहा कि अधिकारी ‘शो ऑफ’ कर रहे हैं। मामला शासन तक पहुंचा।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को लेकर नगर आयुक्त और मेयर के बीच मीटिंग में बहस इतनी बढ़ी कि दोनों के समर्थक भी आमने-सामने आ गए। अफसर और जनप्रतिनिधि के बीच इस टकराव ने मीडिया की सुर्खियां बटोरीं।
लखनऊ में DIG और एक SP के बीच थानों के चार्ज को लेकर खुला विवाद हुआ। SP ने DIG के निर्देशों को फील्ड में लागू करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद फाइलों में आपसी टकराव की कहानी दर्ज हो गई। अंततः मामला मुख्यालय तक पहुंचा।
वाराणसी के एक भूमि विवाद मामले में SDM और तहसीलदार के बीच न केवल बहस हुई, बल्कि स्थानीय मीडिया ने हाथापाई तक की खबर चलाई। दोनों ने एक-दूसरे पर गलत आचरण और दबाव बनाने का आरोप लगाया।
इन घटनाओं से साफ है कि यूपी में अफसरशाही के भीतर ईगो क्लैश, जिम्मेदारी की टकराहट और राजनीतिक दबाव जैसे कारण बार-बार सिर उठा रहे हैं। ये झगड़े न केवल प्रशासन की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि जनता के भरोसे को भी कमजोर करते हैं।