KGMU Report Mobile Overuse Causing Mental Health Disorders in Children: बढ़ते मोबाइल और इंटरनेट के इस्तेमाल ने छोटे बच्चों के मानसिक विकास पर बुरा असर डालना शुरू कर दिया है। KGMU की रिपोर्ट के अनुसार, 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मोबाइल की लत बोलने, सामाजिक व्यवहार और मानसिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव डाल रही है। डॉक्टरों ने चेतावनी जारी की है।
KGMU Expert Report: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU) के मानसिक स्वास्थ्य विभाग ने बच्चों में मोबाइल और इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है। विभागाध्यक्ष डॉ. विवेक अग्रवाल ने बताया कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मोबाइल की लत न केवल मानसिक विकास को प्रभावित कर रही है, बल्कि यह गंभीर मनोवैज्ञानिक विकारों का कारण भी बन रही है।
केजीएमयू के मानसिक स्वास्थ्य विभाग के प्रेक्षागृह में "मोबाइल और इंटरनेट के अत्याधिक प्रयोग से स्कूली बच्चों पर असर" विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न स्कूलों के शिक्षकों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि डिजिटल डिवाइसेस का अत्यधिक उपयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए कितना हानिकारक हो सकता है।
1. मस्तिष्क विकास में बाधा
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का मस्तिष्क अत्यधिक तेजी से विकसित होता है। इस दौरान यदि बच्चे को मोबाइल या टैबलेट की आदत लग जाए, तो स्क्रीन की लत उसकी याददाश्त, समझ, भाषाई क्षमता और सामाजिक कौशल को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
2. बोलने में देरी और संकोच
ऐसे बच्चे जिन्हें मोबाइल देखने की आदत होती है, वो बोलने में देरी करते हैं। उन्हें अपनी बात कहने में परेशानी होती है और वे दूसरों से घुलने-मिलने से कतराते हैं। उनका भावनात्मक विकास भी धीमा हो सकता है।
3. बिना मोबाइल के खाना नहीं खाते
अक्सर देखा गया है कि बच्चे भोजन तभी करते हैं जब उन्हें मोबाइल दिया जाए। यह स्थिति न केवल उनकी खानपान की आदतों को प्रभावित करती है, बल्कि पोषण की कमी, कमजोर इम्यून सिस्टम और अन्य शारीरिक समस्याओं को भी जन्म देती है।
4. गेमिंग और पोर्नोग्राफी की लत
बड़े बच्चों में ऑनलाइन गेम्स की लत, पोर्नोग्राफी, और सोशल मीडिया की अधिकता मानसिक स्वास्थ्य को और भी नुकसान पहुंचाती है। कई मामलों में किशोर बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति, अत्यधिक चिड़चिड़ापन, और आत्ममुग्धता के लक्षण देखे गए हैं।
डॉ. अग्रवाल ने यह भी बताया कि केजीएमयू की मानसिक स्वास्थ्य विभाग की ओपीडी में ऐसे बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिन्हें मोबाइल और इंटरनेट की लत है। इनमें कुछ बच्चे "साइबर कोंड्रिया" से भी ग्रसित हो रहे हैं, एक ऐसी स्थिति जिसमें बच्चा इंटरनेट पर स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों को पढ़कर खुद को बीमार समझने लगता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 90% मामलों में बच्चों की स्क्रीन लत का कारण उनके माता-पिता होते हैं, जो व्यस्तता के चलते उन्हें मोबाइल पकड़ा देते हैं। यह आदत धीरे-धीरे मानसिक समस्या बन जाती है, जिससे निकलना कठिन होता है। जरूरी है कि माता-पिता खुद जिम्मेदारी से व्यवहार करें।
डॉ. अग्रवाल ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार और विद्यालय मिलकर इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाएं। स्कूलों में स्क्रीन एडिक्शन से बचाव के लिए कार्यक्रम चलाए जाएं और मनोवैज्ञानिक परामर्श (Counseling) की सुविधा दी जाए।