लखनऊ

Suspension Order: यूपी होम्योपैथिक निदेशक प्रो. अरविंद वर्मा सस्पेंड, तबादला घोटाले में हुई कार्रवाई

Homeopathy Director Suspended: उत्तर प्रदेश सरकार ने होम्योपैथी विभाग के निदेशक प्रो. अरविंद कुमार वर्मा को निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई तब की गई जब विभागीय ट्रांसफर सत्र में एक भी तबादला न किए जाने की अनियमितता सामने आई। प्रमुख सचिव रंजन कुमार ने इस संबंध में निलंबन आदेश जारी किया।

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Jul 18, 2025
तबादला शून्य करने के फैसले से उठे सवाल फोटो सोर्स : Social Media

Homeopathy Director Professor Arvind Verma Suspension Order: उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बड़ा प्रशासनिक कदम उठाते हुए होम्योपैथी विभाग के निदेशक प्रोफेसर अरविंद कुमार वर्मा को उनके पद से निलंबित कर दिया है। इस आशय का आदेश प्रदेश के प्रमुख सचिव आयुष विभाग, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रंजन कुमार द्वारा जारी किया गया है। यह कार्रवाई तब की गई जब प्रो. वर्मा पर आरोप लगे कि उन्होंने विभागीय ट्रांसफर सत्र में एक भी तबादला न कर, 'तबादला शून्य' कर दिया था।

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क्या है मामला

हर वर्ष की भांति 2025 में भी उत्तर प्रदेश सरकार के सभी विभागों में स्थानांतरण सत्र प्रारंभ किया गया था। यह प्रक्रिया एक सुव्यवस्थित और पारदर्शी तरीके से अधिकारियों-कर्मचारियों के कार्य-क्षेत्र में विविधता लाने तथा प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की जाती है। लेकिन होम्योपैथी विभाग के निदेशक प्रोफेसर अरविंद कुमार वर्मा द्वारा पूरे तबादला सत्र को 'शून्य' घोषित कर दिया गया, जिससे न सिर्फ नियमों की अनदेखी हुई बल्कि शासन के दिशा-निर्देशों की भी अवहेलना हुई। प्रमुख सचिव रंजन कुमार द्वारा जांच कराई गई, जिसमें यह पाया गया कि प्रो. वर्मा ने न तो विभागीय स्तर पर कोई फाइल प्रक्रिया अपनाई, न ही संबंधित अफसरों से कोई विचार-विमर्श किया। इसके बजाय उन्होंने एकतरफा फैसला लेते हुए ट्रांसफर सत्र को 'शून्य' घोषित कर दिया।

शासन की सख्ती

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में अनुशासन और पारदर्शिता पर विशेष बल दिया जा रहा है। ऐसे में प्रोफेसर अरविंद कुमार वर्मा द्वारा की गई यह कार्यवाही न केवल प्रशासनिक अनुशासनहीनता थी, बल्कि यह सरकार की कार्य संस्कृति के विरुद्ध भी था। इस वजह से प्रमुख सचिव रंजन कुमार ने उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करते हुए तत्काल प्रभाव से निलंबन का आदेश जारी कर दिया।

प्रो. अरविंद वर्मा का प्रोफाइल

प्रोफेसर अरविंद कुमार वर्मा लंबे समय से होम्योपैथी चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत रहे हैं। उन्हें वर्ष 2023 में निदेशक पद पर नियुक्त किया गया था। इसके पूर्व वे बतौर प्राचार्य व फैकल्टी सदस्य कई चिकित्सा महाविद्यालयों में सेवाएं दे चुके हैं। उनके कार्यकाल में विभाग की कुछ योजनाओं में सुधार देखा गया था, लेकिन हालिया निर्णयों ने उनकी साख को प्रभावित किया है।

निलंबन के बाद आगे की कार्रवाई

सूत्रों के अनुसार, निलंबन के बाद प्रो. वर्मा के विरुद्ध विभागीय जांच की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। शासन द्वारा एक वरिष्ठ अधिकारी को जांच अधिकारी नियुक्त किया जाएगा जो समस्त साक्ष्यों और दस्तावेजों की समीक्षा कर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। रिपोर्ट के आधार पर आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई तय की जाएगी जिसमें सेवा से बर्खास्तगी तक की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।

कर्मचारियों और चिकित्सकों में हलचल

होम्योपैथी विभाग के कर्मचारियों और चिकित्सा शिक्षा से जुड़े लोगों के बीच इस घटनाक्रम को लेकर खलबली मची हुई है। कुछ अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि निदेशक स्तर पर इस प्रकार की कार्यशैली से विभाग की साख पर आंच आती है। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ट्रांसफर शून्य करना अपने आप में गलत नहीं था, परंतु उसे लागू करने की प्रक्रिया गलत थी।

तबादला सत्र

उत्तर प्रदेश शासन प्रत्येक वर्ष अप्रैल से जुलाई के बीच विभिन्न विभागों में स्थानांतरण की प्रक्रिया चलाता है। इसका उद्देश्य न केवल प्रशासनिक दक्षता बढ़ाना होता है, बल्कि एक ही स्थान पर वर्षों से जमे कर्मचारियों में बदलाव लाकर कार्यसंस्कृति को जीवंत बनाए रखना होता है। इसके लिए ऑनलाइन ट्रांसफर पोर्टल पर आवेदन, विभागीय समिति द्वारा समीक्षा और शासन स्तर पर अनुमोदन की व्यवस्था निर्धारित की गई है। ऐसे में किसी विभागाध्यक्ष द्वारा सत्र को शून्य करना शासन की इस मंशा के प्रतिकूल माना गया।

राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिक्रियाएं

इस मुद्दे पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गई हैं। विपक्षी दलों ने इसे सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े करने का अवसर माना है। समाजवादी पार्टी के एक प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा कि सरकार अपने ही अधिकारियों पर भरोसा नहीं कर पा रही है और उनके कामकाज पर नजर रखने की बजाय सस्पेंशन से काम चला रही है।

हालांकि सरकार समर्थक सूत्रों का कहना है कि यह कार्रवाई विभागीय अनुशासन और सुशासन सुनिश्चित करने की दिशा में जरूरी थी। अगर कोई अधिकारी सरकार की नीतियों के विपरीत काम करता है तो उसके खिलाफ सख्त कदम उठाना शासन की जिम्मेदारी बन जाती है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि विभागीय जांच में क्या तथ्य सामने आते हैं। क्या प्रो. अरविंद वर्मा को उनके पद पर पुनः बहाल किया जाएगा, या उनके विरुद्ध और कठोर कार्रवाई की जाएगी? यह सब भविष्य की प्रशासनिक कार्रवाई पर निर्भर करेगा।

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