UP Power Privatization: उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण का विरोध तेज हो रहा है। कर्मचारियों को नौकरी सुरक्षा की चिंता है, जबकि उपभोक्ता दर वृद्धि से चिंतित हैं। सरकार को संतुलित समाधान निकालना होगा।
UP Power Privatization Loss or Gain: उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण को लेकर विरोध तेज होता जा रहा है। सरकार ने यह कह दिया है कि वह बिजली का प्राइवेटाइजेशन करेगी। इसी को देखते हुए पूरे प्रदेश में हड़ताल की रणनीति बन गई है। कर्मचारियों को डर है कि इससे बहुत सारे लोगों की जॉब चली जाएगी। साथ ही, जॉब सिक्योरिटी जो थी, वो भी चली जाएगी। आइए समझते हैं क्या होगा इस निजीकरण का असर ?
UPPCL ने बिजली निजीकरण के विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है। नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिक एंप्लाइज एंड इंजीनियर्स ने कहा है कि 26 जून को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया गया है। हड़ताल को सफल बनाने के लिए अप्रैल और मई में देश भर के सभी प्रांतों में बड़े सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। उत्तर प्रदेश में पहले से जारी निजीकरण की प्रक्रिया के विरोध में मार्च में चार बड़ी रैलियां निकाली जाएंगी।
उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग को पिछले चार वर्षों में लगभग 29,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। इसका मतलब है कि हर साल औसतन 7,250 करोड़ रुपये और हर महीने लगभग 604 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इस घाटे की भरपाई राज्य सरकार सब्सिडी और वित्तीय सहायता के माध्यम से करती है, ताकि बिजली आपूर्ति जारी रखी जा सके और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार न पड़े।
निजीकरण का सकारात्मक पक्ष ये है कि इससे बेहतर सेवाएं समय पर बिजली की आपूर्ति होगी। निजीकरण का फायदा उपभोक्ताओं को मिलेगा। वहीं नकारात्मक पक्ष यह है कि बिजली, पेट्रोल और अन्य आवश्यक सेवाओं में महंगाई होगी और सरकारी नौकरियों में कटौती हुई और कर्मचारियों की सुरक्षा घटेगी।
राजस्थान में बिजली की अलग अलग कंपनियां बनाई गईं। जयपुर डिस्कॉम के सेवानिवृत एमडी,अर्जुन सिंह ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि डिस्कॉम के गठन के बावजूद, वित्तीय स्थिति में सुधार की उम्मीदें पूरी तरह से साकार नहीं हो पाई हैं। सरकारी बिजली कंपनियाँ उत्पादन (RVUNL), पारेषण (RVPNL), वितरण (JVVNL, JDVVNL, AVVNL), अक्षय ऊर्जा (RRECL) और ऊर्जा प्रबंधन (RUVNL) के तहत कार्य करती हैं। इसके अलावा, कुछ निजी कंपनियां भी कुछ शहरों में बिजली वितरण का काम देख रही हैं। राजस्थान में वितरण कंपनियां आज भी वित्तीय चुनौतियों से जूझ रही हैं। इससे संकेत मिलता है कि केवल डिस्कॉम बनाने से समस्याओं का समाधान नहीं होता। प्रभावी प्रबंधन और नीति सुधार भी आवश्यक हैं।
बिजली विभाग के निजीकरण के प्रस्ताव के चलते उत्तर प्रदेश में कर्मचारियों और उपभोक्ताओं दोनों में चिंता बढ़ रही है। कर्मचारियों को नौकरी की सुरक्षा और पेंशन लाभों के नुकसान का डर है, जबकि उपभोक्ताओं को बिजली दरों में संभावित वृद्धि की चिंता सता रही है। सरकार को इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए संतुलित निर्णय लेना होगा, ताकि वित्तीय घाटा कम हो सके और सभी हितधारकों के हितों की रक्षा हो सके।