अंबाह-दिमनी के 100 पुलिसकर्मियों के लिए महज 26 कंडम आवास, नगरा में पुलिस क्वार्टर ही नहीं, जिम्मेदारों ने नहीं कराई क्षतिग्रस्त आवासों की मरम्मत, रहती है दुर्घटना की आशंका
मुरैना. जिस विभाग को समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है उसी विभाग के कर्मचारी हर समय खौफ के साए में रहते हैं। पुलिसकर्मियों को मिले शासकीय आवासों की स्थिति इतनी खस्ता है कि वह किस दिन धराशायी हो जाए इसका ठिकाना नहीं। हालांकि इसके बाद भी विभाग द्वारा पुलिसकर्मियों को इन जर्जर आवासों से निजात दिलाने की व्यवस्था नहीं की गई है। ऐसे में पुलिस कर्मचारी और उनके परिवार को खासी दिक्कतें होती है। लेकिन फिर भी मजबूरन रहना पड़ रहा है।
थाना परिसरों में कई ऐसे आवास है जहां पर सालों से मेंटेनेंस और पुताई नहीं कराई गई। अंबाह अनुविभाग में पुलिसकर्मी सिर्फ विपरीत स्थितियों में काम ही नहीं करते बल्कि परिवार के साथ ऐसे घरों में रहने को मजबूर है जो कंडम स्थिति में है। जिलेभर के दर्जनभर से अधिक थानों में मौजूद पुलिसकर्मियों के आवास पूरी तरह से जर्जर है। इनमें शौचालय, पेयजल सहित अन्य बुनियादी सुविधाएं भी मौजूद नहीं हैं। इनमें रहने वाले पुलिसकर्मी हर समय दहशत के साए में जीवन गुजारते हैं। अंबाह, दिमनी, नगरा, सिहोनिया, महुआ में बने पुलिस आवासों में कई जर्जर आवास रहने लायक नहीं बचे है। मजबूरी में पुलिसकर्मी इन आवासों में रहते हैं। पुलिसकर्मी किसी भी दिन भीषण हादसे का शिकार बन सकते हैं। जिस तरह से अधिकारी इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।
अंबाह थाने में वर्तमान में 70 पुलिसकर्मी पदस्थ हैं जबकि यहां 100 पुलिसकर्मियों की आवश्यकता हैं। जिनके लिए यहां महज 16 आवास हैं, वह भी जर्र्जर हालत में हैं। दिमनी के 30 पुलिसकर्मियों के लिए महज 08 आवास ही हैं जिन्हें विभाग कंडम घोषित कर चुका हैं। नगरा में आवास की व्यवस्था ही नहीं हैं। वही महुआ, सिहोनिया और पोरसा थाने में भी संख्याबल के हिसाब से कम ही आवास हैं।
अंबाह अनुविभाग के नगरा थाने में पदस्थ पुलिसकर्मियों के लिए आवास की समस्या काफी जटिल है। यहां पुलिसकर्मियों के पास रहने का ठिकाना नहीं है जिससे उनकी रात थाने में ही गुजर जाती है। मजबूरी में पुलिसकर्मियों ने थाने में रहने का जुगाड़ कर लिया है।
शहरी सहित ग्रामीण क्षेत्रों में बने शासकीय आवास काफी जर्जर हालत में है। इसके बाद भी इन आवासों को आज तक कंडम घोषित नहीं किया और न ही उनमें पुलिसकर्मियों को रहने से रोका गया। करीब दो दर्जन से अधिक आवास जर्जर हालत में है जिनको आज तक डिसमेंटल नहीं किया है।
थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों को नाममात्र का भत्ता मिलता है। पुलिसकर्मियों को सात सौ रुपए लेकर दो हजार रुपए तक भत्ता मिलता है। आरक्षकों को सात सौ रुपए और उपनिरीक्षक व टीआई स्तर के अधिकारियों को दो हजार रुपए तक मिलता है। इतने पैसों में आवास की व्यवस्था करना आसान नहीं रहता है। हालांकि ग्रामीण इलाकों में किराए से कमरा मिलना जटिल समस्या होती है। बड़ी मुश्किल से पुलिसकर्मी को रहने के लिए आशियाना मिल पाता है।
अंबाह, दिमनी, नगरा, महुआ, सिहोनिया और पोरसा में मौजूद थाना प्रभारी, इंस्पेक्टर, हेड कॉन्स्टेबल व कॉन्स्टेबल की संख्या को देखा जाए तो यहां 200 से अधिक है। जबकि इनके लिए मौजूदा आवासों की संख्या महज 50 के करीब ही है। यानि जितनी जरूरत उसके आधे भी नहीं है। ऊपर से इन आवासों में आधे से ज्यादा कंडम हो चुके है। पुलिस महकमा नए मकान बनाने की बात कर रहा है लेकिन जब तक मकान बनेंगे तब तक पुलिस फोर्स में नए जवानों की भर्ती भी हो जाएगी, तब तक मकानों को लेकर कतार और लंबी हो जाएगी।
अंबाह और दिमनी में पुलिस लाइन के कई क्वार्टर बेहद जर्जर हालत में हैं। बरसात के दौरान छतों से पानी टपकता है, दीवारों में सीलन भर जाती है और घरों के भीतर पानी जमा हो जाता है। परिवारों को छतों पर पॉलिथीन डालकर बचाव करना पड़ता है।
बताया गया है कि जर्जर क्वार्टरों का सर्वे हुआ था और मरम्मत का आश्वासन दिया गया था, लेकिन आज तक काम शुरू नहीं हुआ। अंबाह पुलिस थाना ही नहीं, अनुविभाग के कई थानों के क्वार्टर भी खस्ताहाल हैं। ऐसे में पुलिसकर्मी और उनके परिवार खुद असुरक्षित हालात में जीने को मजबूर हैं।
अंबाह एवं दिमनी के पुलिस थाना परिसर में बने आवासों का प्लास्टर दीवार व छतों से स्वत: ही गिर रहा है। बिजली की वायरिंग उखड़ी पड़ी है। विद्युत व्यवस्था भी जुगाड़ से ही चल रही है। वहीं पेयजल का भी सही इंतजाम नहीं है। शौचालय क्षतिग्रस्त होने पर खुले में शौच को जाना पड़ रहा है। वहीं बारिश में तो छत के अलावा दीवारों से भी पानी आ जाता है।
पुलिसकर्मियों की संख्याबल के हिसाब से अनुविभाग में आवासों की संख्या कम हैं, लेकिन पुलिस के आवास संबंधी व्यवस्था मुख्यालय से ही होती हैं। जो क्वार्टर जर्जर हो चुके हैं उन्हें कंडम घोषित करने के लिए पीडब्ल्यूडी अधिकारियों से बात करेंगे।