BMC Election: महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस बीच कांग्रेस ने बड़ा ऐलान करते हुए उद्धव ठाकरे और शरद पवार को करारा झटका दिया है।
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आया है। मुंबई के बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव की घोषणा से पहले ही कांग्रेस पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह आगामी चुनाव अकेले लड़ेगी। इस फैसले से न केवल महाविकास आघाड़ी (MVA) गठबंधन में हलचल मच गई है, बल्कि भाजपा नीत महायुति गठबंधन को मात देने की उद्धव ठाकरे और शरद पवार की रणनीतियों को भी बड़ा झटका लगा है।
नागपुर में पत्रकारों से बातचीत में कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा, “हमारे स्थानीय नेताओं की राय थी कि पार्टी को अकेले चुनाव लड़ना चाहिए। इस पर हमने हाईकमान से चर्चा की। हाईकमान ने कहा कि स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए निर्णय लें, और मुंबई में उसी हिसाब से तय किया गया है कि कांग्रेस आगामी बीएमसी चुनाव अकेले लड़ेगी।”
भले ही अभी बीएमसी चुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन मुंबई कांग्रेस ने अपनी तैयारी तेज कर दी है। मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष व सांसद वर्षा गायकवाड़ के नेतृत्व में संगठन ने 227 वार्डों के लिए प्रभारी नियुक्त किए हैं। पार्टी ने इच्छुक उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित किए और 1150 से ज्यादा आवेदन प्राप्त हुए हैं।
मुंबई कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेशचंद्र राजहंस ने बताया कि अब तक 1150 से अधिक आवेदन संभावित उम्मीदवारों से प्राप्त हुए हैं। आवेदन की अंतिम तारीख को बढ़ाने पर भी विचार किया जा रहा है, क्योंकि नगर निगम चुनाव के लिए आरक्षण सूची की घोषणा अभी नहीं हुई है।
कांग्रेस के इस कदम से महा विकास आघाड़ी (MVA) के भविष्य पर सवाल उठ गए हैं। इस गठबंधन में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) शामिल हैं। अब कांग्रेस के अलग होने से इस गठबंधन की एकजुटता और तालमेल पर असर पड़ सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अब मुंबई में अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनाना चाहती है। महाराष्ट्र में अगले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी जमीनी स्तर पर संगठन को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है। इसलिए पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता पूरी ताकत से चुनाव की तैयारी में जुटे हैं।
बता दें कि 2012 के मुंबई के बीएमसी चुनाव में कांग्रेस ने 52 सीटें जीती थीं, लेकिन 2017 में यह संख्या घटकर 31 रह गई थी। इस बार कांग्रेस अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़कर इस नुकसान की भरपाई करना चाहती है। कांग्रेस ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने मूल वोट बैंक और विचारधारा से कोई समझौता नहीं करेगी।