एक अदालत ने अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने में विफल रहने के लिए एक बेटे को जेल की सजा सुनाई है और कहा है कि माता-पिता की देखभाल करना न केवल नैतिक बल्कि कानूनी जिम्मेदारी भी है।
महाराष्ट्र के पुणे जिले की एक अदालत ने अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले के जरिये अदालत ने समाज को यह संदेश देने की कोशिश की है कि माता-पिता की देखभाल सिर्फ उनके बच्चों की नैतिक जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि कानूनी कर्तव्य भी है। जुन्नर तालुका के नारायणगांव पुलिस थाने की सीमा में रहने वाले 80 साल के विट्ठल बाबूराव गाडगे अपने ही दो बेटों की उपेक्षा से इतने परेशान हो गए कि उन्हें पुलिस के दरवाजे तक जाना पड़ा।
गाडगे ने शिकायत में बताया कि सितंबर 2022 से मई 2025 तक उनके दोनों बेटे उसी घर में रहते थे, लेकिन इस दौरान उन्होंने न तो माता-पिता की देखभाल की और न ही कोई जिम्मेदारी निभाई। बेटों ने भोजन, दवा या रखरखाव जैसी कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई। बुजुर्ग दंपति के साथ अपने ही घर में परायों जैसा व्यवहार सहना पड़ा। आखिरकार उन्होंने तय किया कि अपने साथ हुए अपमान और तकलीफ को अदालत तक ले जाना ही सही होगा, ताकि दूसरे लोगों को भी सीख मिल सके।
बुजुर्ग दंपति की शिकायत पर पुलिस ने वरिष्ठ नागरिक और अभिभावकों के संरक्षण एवं कल्याण कानून के तहत केस दर्ज किया। पुलिस ने जांच पूरी कर आरोपपत्र अदालत में पेश किया। प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट अनंत बाजड ने सभी सबूतों और बयानों को परखने के बाद बेटे को दोषी करार दिया और उसे तीन महीने के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। साथ ही पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
अदालत का यह फैसला उन लोगों के लिए सीधी चेतावनी है जो अपने बुजुर्ग माता-पिता को बोझ समझते हैं। स्थानीय लोगों में भी इस निर्णय पर चर्चा हो रही है। उनका कहना है कि यह मामला फिर साबित करता है कि माता-पिता की सेवा हर बेटे-बेटी का मूल कर्तव्य है। बुजुर्गों के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए आया यह फैसला समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश देता है।