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इस आईलैंड पर 130 साल तक जिंदा रहीं रास्ता भूली हुई ये गायें, जानें क्या है भारत कनेक्शन ?

Genetic Evolution: एम्स्टर्डम द्वीप पर 130 साल तक बिना इंसानों के जीवित रहीं जंगली गायें। भारतीय 'जेबू' नस्ल से जुड़ा मिला कनेक्शन, 2010 में क्यों किया गया इनका खात्मा?

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Dec 19, 2025
एम्स्टर्डम द्वीप पर 130 साल तक बिना इंसानों के जीवित रहीं जंगली गायें। (प्रतीकात्मक फोटो: AI Generated)

Evolutionary Journey Adaptation and Survival: कभी-कभी कुदरत हमें ऐसे चमत्कार दिखाती है जो विज्ञान की समझ से परे होते हैं। हिंद महासागर के सुदूर दक्षिणी छोर पर स्थित एम्स्टर्डम द्वीप (Amsterdam Island) एक ऐसी ही अनोखी कहानी का गवाह बना। उन्नीसवीं सदी के अंत में गलती से यहां मवेशियों का एक छोटा सा झुंड पीछे छूट गया था। दिन महीने साल बीते, मानवीय मदद और पीने के साफ पानी की कमी के बावजूद, इन गायों ने न केवल 130 बरसों तक खुद को जीवित रखा, बल्कि एक पूरी नई 'जंगली' नस्ल को जन्म दिया।

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भारत की गो-माता से क्या है कनेक्शन ?

वैज्ञानिकों ने जब इन मवेशियों का आनुवंशिक अध्ययन (Genetic Study) किया, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। शोधकर्ताओं के अनुसार, इन गायों के पूर्वज उन जहाजों के माध्यम से यहां पहुंचे थे, जो उस दौर में भारत और यूरोप के बीच व्यापारिक मार्गों पर चलते थे। इन गायों के डीएनए (DNA) में भारत के 'जेबू' (Zebu) मवेशियों के लक्षण पाए गए। भारतीय नस्ल की गायों की प्रतिकूल मौसम और कम संसाधनों में जीवित रहने की अद्भुत क्षमता ने ही शायद उन्हें इस बर्फीले और पथरीले द्वीप पर टिके रहने की ताकत दी।

कठिन परिस्थितियों में ढलने का हुनर

यह बात किसी करिश्मे से कम नहीं कि मेडागास्कर से हजारों किलोमीटर दूर इस द्वीप पर न तो कोई नदी थी और न ही स्थायी तालाब, उसके बावजूद ये गायें जीवित रहीं। सर्दियों की बारिश और नमी वाली घास ही उनके अस्तित्व का आधार बनी। सन 1871 में छोड़े गए चंद जानवरों से शुरू हुआ यह सफर 2,000 की संख्या तक पहुंच गया था। वैज्ञानिकों ने पाया कि इन गायों ने अपनी शारीरिक संरचना और प्रजनन के तरीकों को द्वीप के पारिस्थितिकी तंत्र के अनुसार पूरी तरह ढाल कर ​कर बदल लिया था, जिसे विज्ञान की भाषा में 'फेरल' (Feral) होना कहा जाता है।

2010 का दुखद अंत और नैतिक बहस

एम्स्टर्डम द्वीप को जब यूनेस्को विश्व धरोहर और राष्ट्रीय प्रकृति अभ्यारण्य घोषित किया गया, तो संरक्षणवादियों के सामने एक बड़ी चुनौती आई। तर्क दिया गया कि ये गायें द्वीप की स्थानीय वनस्पतियों और पक्षियों (जैसे एम्स्टर्डम अल्बाट्रॉस) को नुकसान पहुंचा रही हैं। भारी विरोध और बहस के बीच,आखिरकार 2010 में इस पूरी जंगली आबादी को समाप्त (Eradicate) कर दिया गया। आज वैज्ञानिक इस बात पर विभाजित हैं कि क्या जैव विविधता के नाम पर एक ऐसी अनूठी नस्ल को खत्म करना सही था, जिसने शून्य से अपना साम्राज्य खड़ा किया था।

उनके पास "सुपर-सर्वाइवल" जींस थे

पशु प्रेमियों और कई वैज्ञानिकों का मानना है कि इन गायों को खत्म करने के बजाय उन्हें एक अलग संरक्षित क्षेत्र में ले जाया जा सकता था, क्योंकि उनके पास "सुपर-सर्वाइवल" जींस थे। इधर शोधकर्ता अब उन 18 संरक्षित आनुवंशिक नमूनों का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि यह समझा जा सके कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के दौरान अन्य मवेशियों को बचाने में यह डेटा कैसे काम आ सकता है।

ये भारतवंशी गायें हैं, विदेशी गायें नहीं

बहरहाल, बर्फीली और पथरीली जगह पर भूखी प्यासी गायों का न केवल जीवित रहना,बल्कि नई नस्ल तक पहुंचना कुदरत का ​करिश्मा है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे मानवीय हस्तक्षेप अनजाने में नई प्रजातियां बनाता है और फिर संरक्षण की नीतियों के कारण उन्हें ही 'विदेशी' मान कर खत्म कर दिया जाता है।

(इनपुट क्रेडिट: INRAE के पशु आनुवंशिकी विभाग के शोधकर्ताओं और TAAF फ्रांसीसी दक्षिणी भूमि के ऐतिहासिक अभिलेखों पर आधारित।)

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