Freedom Fighters Memorials in Pakistan: शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की ऐतिहासिक यादगारें अब पाकिस्तान में हैं।
Freedom Fighters Memorials in Pakistan: ऐ मेरे वतन के लोगो! जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी ! कवि प्रदीप का लिखा और लता मंगेशकर का गाया यह गीत सभी भारतीयों में देश प्रेम का जज्बा ताजा कर देता है। आजादी की सालगिरह के मौके पर ,हम वतन पर मर मिटने वाले उन जांबाज जवानों को नहीं भूल सकते,जिन्होंने देश को आजादी दिलाने की खातिर अपनी जान कुर्बान कर दी। इनमें शहीद भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाम प्रमुख (Bhagat Singh history Independence Day)है। ये तीनों शहीद न सिर्फ आज़ादी की लड़ाई के प्रतीक हैं, बल्कि आज भी युवा पीढ़ी के आदर्श हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन तीनों महान क्रांतिकारियों (Indian freedom fighters in Pakistan) से जुड़ी कई ऐतिहासिक जगहें अब पाकिस्तान में हैं? जी हां! देश के विभाजन के साथ इन तीनों शहीदों की यादगारें भी पाकिस्तान में ही रह गईं। जानिए किस शहीद की यादगार (Pakistan historical sites) कहां पर है :
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) के बंगा गांव में हुआ था। वह एक प्रखर क्रांतिकारी थे जिन्होंने अपने सिद्धांतों के लिए जान दे दी। यह मकान आज भी वहां मौजूद है और इसे पाकिस्तान सरकार ने एक ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया हुआ है। हालांकि इसकी हालत समय के साथ बिगड़ती जा रही है।
आज कहां है यादगार: भगत सिंह का पैतृक घर लायलपुर में स्थित है।
लाहौर का शादमान चौक (जहां उन्हें फांसी दी गई) अब भगत सिंह चौक के नाम से जाना जाता है।
मियांवाली जेल, जहां उन्हें कैद में रखा गया था, पाकिस्तान में मौजूद है।
सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना में हुआ था। वे भगत सिंह के घनिष्ठ मित्र और क्रांति के लिए समर्पित सेनानी थे। उस जगह पर अब शादमान चौक है।
आज कहां है यादगार: सुखदेव को लाहौर में ही भगत सिंह और राजगुरु के साथ फांसी दी गई थी।
उनकी फांसी का कक्ष और समाधि स्थल अब पाकिस्तान के लाहौर सेंट्रल जेल परिसर में आता है।
दिसंबर 2024 में पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने पूंछ हाउस में "भगत सिंह गैलरी" की शुरुआत की।
राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के पुणे ज़िले में हुआ था। वे ब्रिटिश अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या में शामिल थे।
आज कहां है यादगार: राजगुरु को भी भगत सिंह और सुखदेव के साथ लाहौर में फांसी दी गई।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को यूनेस्को या सांस्कृतिक कूटनीति के ज़रिये इन स्थलों को संरक्षित करवाने की दिशा में काम करना चाहिए। शहीदों की कुर्बानी सिर्फ एक देश की नहीं, बल्कि मानवता के हक में दी गई कुर्बानी थी। नमन है उन वीरों को जिन्होंने हमें स्वतंत्रता का सूरज दिखाया।