भारतीय नौसेना का पोत आईएनएसवी कौंडिन्य सोमवार को अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय समुद्री यात्रा पर रवाना हुआ।
भारतीय नौसेना का पोत आईएनएसवी कौंडिन्य (INSV Kaundinya) सोमवार को अपनी पहली विदेशी समुद्री यात्रा पर रवाना हुआ। यह जहाज गुजरात के पोरबंदर से ओमान के मस्कट तक जाएगा। यह यात्रा उन प्राचीन समुद्री मार्गों से गुजरेगी जो कभी भारत को पश्चिम एशिया और पूरे हिंद महासागर क्षेत्र से जोड़ते थे। इस अभियान का मकसद एक हजार साल से भी पुरानी पारंपरिक जहाज निर्माण तकनीक की क्षमता को परखना है।
कौंडिन्य एक गैर-लड़ाकू पालपोत है, जिसका निर्माण कम से कम 2000 साल पुरानी तकनीक से किया गया है। इसके लकड़ी के तख्तों को नारियल के रेशे से बनी कोयर रस्सी से सिला गया है। इसमें न तो इंजन है, न धातु के कील-पेंच और न ही कोई आधुनिक सिस्टम। जहाज केवल हवा और पाल के सहारे समुद्र में आगे बढ़ेगा, ठीक वैसे ही जैसे प्राचीन भारतीय नाविक लंबी समुद्री यात्राएं करते थे।
जहाज का डिजाइन अजंता की गुफाओं की चित्रकारी, प्राचीन ग्रंथों और विदेशी यात्रियों के विवरणों से प्रेरित है। आईआइटी मद्रास जैसे संस्थानों ने इसे बनाने में मदद की। कौंडिन्य पर भारत की समुद्री विरासत से जुड़े कई प्रतीक हैं, जैसे कदंब वंश का गंडभेरुंड, पालों पर सूर्य चिन्ह, आगे की ओर सिंह-याली आकृति और डेक पर हड़प्पा शैली का पत्थर का लंगर।
इस जहाज का नाम कौंडिन्य नामक एक प्रसिद्ध भारतीय नाविक के नाम पर रखा गया है, जिनका उल्लेख दक्षिण-पूर्व एशियाई और चीनी अभिलेखों में मिलता है। कहा जाता है कि उन्होंने पहली शताब्दी में मेकोंग डेल्टा तक यात्रा की और कंबोडिया के प्राचीन फुनान साम्राज्य की स्थापना में भूमिका निभाई। पोरबंदर से मस्कट तक का मार्ग कभी व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रमुख केंद्र था। इस मार्ग पर फिर से यात्रा कर कौंडिन्य प्राचीन परंपरा को दुनिया के सामने दोबारा स्थापित करेगा।