कोलकाता हाई कोर्ट ने बीरभूम ज़िले की रहने वाली सोनाली बीबी और स्वीटी बीबी और उनके परिवारों को बांग्लादेश भेजने के फैसले को गैरकानूनी बताते हुए, उन्हें 4 हफ्तों में वापस लाने के आदेश दिए है।
पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले की रहने वाली सोनाली बीबी और स्वीटी बीबी और उनके परिवारों को अवैध प्रवासी बताकर बांग्लादेश निर्वासित करने के केंद्र सरकार के फैसले को कोलकाता हाई कोर्ट ने पलट दिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा है कि वह यह सुनिश्चित करे कि निर्वासित किए गए इन सभी छह लोगों को एक महीने के अंदर अंदर भारत वापस लाया जाए। कोर्ट ने इस फैसले पर अस्थायी रोक लगाने की केंद्र सरकार की अपील को भी खारिज कर दिया। जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस रीतोब्रोतो कुमार मित्रा की बेंच ने याचिकाकर्ता भोदू शेख द्वारा दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus petition) पर सुनवाई करते हुए दो फैसले लिए है।
26 जून को कोलकाता हाईकोर्ट में भोदू शेख नामक एक महिला द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus petition) दायर की गई थी। इस याचिका में उन्होंने दावा किया कि उनकी 26 वर्षीय बेटी सोनाली, जो अभी नौ महीने की गर्भवती हैं, उनके पति दानेश शेख, और उनके पांच साल के बेटे को दिल्ली में हिरासत में लिया गया और फिर बांग्लादेश निर्वासित कर दिया गया। इसके बाद अमीर खान नामक एक व्यक्ति ने भी ऐसी ही एक याचिका में अपनी बहन स्वीटी बीबी और उनके दो बच्चों को दिल्ली पुलिस द्वारा हिरासत में लेकर बांग्लादेश भेजने की बात कही।
इन याचिकाओं में दावा किया गया कि, उनका परिवार दो दशक से भी अधिक समय से दिल्ली के रोहिणी इलाके में रह रहा है और दैनिक मज़दूरी से अपना गुज़ारा करता था। इन परिवारों को एएन काटजू मार्ग पुलिस ने 18 जून को बांग्लादेशी होने के शक में हिरासत में लिया था और फिर कई सदस्यों को 27 जून बांग्लादेश भेज दिया, जहां उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। परिवार को यह भी चिंता है कि सोनाली अगर बांग्लादेश में बच्चे को जन्म दिया तो उसकी नागरिकता क्या होगी।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कोर्ट को बताया कि, पीड़िता परिवारों के पैन कार्ड, आधार कार्ड, संपत्ति के मालिकाना हक जैसे कागज़ात के साथ साथ अपने माता-पिता और दादा-दादी के वोटर कार्ड जैसे डॉक्यूमेंट पुलिस को दिए जाने के बावजूद भी उन्होंने यह कार्रवाई की है। इस याचिका के जवाबी/प्रति-शपथपत्र में केंद्र ने दावा किया था कि यह याचिका कलकत्ता हाई कोर्ट में सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि इन्हीं लोगों की अवैध हिरासत के खिलाफ पहले दिल्ली हाई कोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई थी।
केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती का दावा था कि कलकत्ता हाईकोर्ट के पास इस मामले में सुनवाई का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, क्योंकि बांग्लादेश भेजे गए लोगों को दिल्ली से हिरासत में लिया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि, कलकत्ता हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के सामने दायर की गई याचिकाओं को छिपाया गया।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि दिल्ली में स्थित फॉरेनर रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस (FRRO) एक सिविल अथॉरिटी होने के नाते, बांग्लादेश के अवैध प्रवासियों को वापस भेज रहे है। यह कार्य केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक निर्देश पर किया जा रहा है। इस ज्ञापन में बताया गया कि, बांग्लादेशी या म्यांमार के नागरिको को वापस भेजने से पहले जांच की जाएगी, लेकिन याचिकाकर्ताओं के परिवारों को भेजने से पहले यह प्रक्रिया पूरी नहीं की गई। इसके अलावा अन्य कई पहलूओं को देखते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला लिया और केंद्र को भेजे गए छह लोगों को चार हफ्तों में वापस